ईदगाह की जमीन के दो अलग-अलग मामले और उनपर दो अलग-अलग फैसले...
कर्नाटक में दो जगहों पर ईदगाह की जमीन पर गणेश उत्सव मनाए जाने के मामले चल रहे थे. हुबली के अलावा कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भी ईदगाह की जमीन पर विवाद चल रहा है और उसमें कोर्ट का फैसला अलग है क्योंकि वो मुद्दा भी अलग है.
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इस आर्टिकल का मुद्दा आपको पेचीदा लग सकता है लेकिन हम प्यार-मोहब्बत और धार्मिक सद्भाव की बात करने की कोशिश करेंगे. ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव मनाने के मुद्दे को आराम से समझेंगे. कर्नाटक में हुबली के ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव मनाने के बारे में विवाद चल रहा था और मामला कर्नाटक हाई कोर्ट तक पहुंचा हुआ था. हाई कोर्ट ने मंगलवार रात सुनवाई के दौरान गणेश चतुर्थी के जश्न की अनुमति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद बुधवार को हुबली के ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी उत्सव की शुरुआत कर दी गई. ईदगाह मैदान में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे और फिर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच श्रीराम सेना प्रमुख प्रमोद मुतालिक ने अपने समर्थकों के साथ भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना की और पूजा अर्चना की. प्रमोद मुतालिक ने पत्रकारों को बताया कि, ‘कानूनी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए हमने पूजा-अर्चना की. कुछ असामाजिक तत्वों ने हमें रोकने की कोशिश, लेकिन फिर भी हमने पूजा की जो न केवल हुबली के लोगों के लिए बल्कि पूरे उत्तरी कर्नाटक के लिए खुशी की बात है. हिंदू समुदाय लंबे समय से इसका सपना देख रहा था, ये एक ऐतिहासिक क्षण है. जिला प्रशासन ने तीन दिन तक यहां पूजा करने की इजाजत दी है.’
हुबली के ईदगाह मैदान में गणेश उत्सव मनाने के बारे में विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा
ईदगाह मैदान में किसी भी तरह की अप्रिय घटना से बचने के लिए सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए गए हैं. कर्नाटक हाई कोर्ट की धारवाड़ बेंच ने मंगलवार को हुबली मेयर के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें हुबली ईदगाह मैदान पर गणेश चतुर्थी उत्सव मनाने की अनुमति दी थी. कोर्ट ने हुबली मेयर के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया था.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब एक घंटे की जिरह के बाद जस्टिस अशोक एस किनागी ने मंगलवार रात पौने 12 बजे अपना फैसला सुनाया. जस्टिस किनागी ने कहा- ‘मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश मान्य नहीं है. मुझे याचिकाकर्ता की ओर से अंतरिम आदेश पारित करने की अर्जी में कोई आधार नहीं दिखता. इसलिए इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अंतरिम आदेश की मांग को खारिज किया जाता है.’
कर्नाटक हाई कोर्ट ने ये कहते हुए हुबली के ईदगाह मैदान में गणेश महोत्सव की अनुमति दी कि बेंगलुरू के चामराजपेट ईदगाह मामले की तरह इस मामले में जमीन के मालिकाना हक को लेकर कोई विवाद नहीं है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के चामराजपेट ईदगाह मैदान पर आए फैसले को देखते हुए अंजुमन-ए-इस्लाम ने कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया था और गणेश चतुर्थी उत्सव मनाने पर रोक लगाने की मांग की थी.
अब चूंकि बात चामराजपेट ईदगाह मैदान और सुप्रीम कोर्ट की चल पड़ी है तो वो मामला समझना भी जरूरी हो जाता है. दरअसल, कर्नाटक में दो जगहों पर ईदगाह की जमीन पर गणेश उत्सव मनाए जाने के मामले चल रहे थे. हुबली के अलावा कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भी ईदगाह की जमीन पर विवाद चल रहा है और उसमें कोर्ट का फैसला अलग है क्योंकि वो मुद्दा भी अलग है.
बेंगलुरु के चामराजपेट में स्थित ईदगाह में गणेश पूजा होने जा रही थी लेकिन इस पर दायर याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूजा रुकवाई. साथ ही यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. ये आदेश कर्नाटक वक्फ बोर्ड की उस याचिका पर दिया, जिसमें कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी. कर्नाटक हाई कोर्ट ने बेंगलुरु के चामराजपेट ईदगाह मैदान पर गणेश चतुर्थी मनाने की अनुमति दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. यानी न यहां पूजा हो सकेगी और न ही नमाज.
मामला यूं हुआ कि बेंगलुरु में चामराजपेट ईदगाह मैदान पर गणेश उत्सव मनाने की अनुमति बेंगलुरु डिप्टी कमिश्नर से मांगी गई थी. बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका- बीबीएमपी के जॉइंट कमिश्नर ने इसे राजस्व विभाग की संपत्ति बताते हुए गणेश उत्सव मनाने की अनुमति दे दी थी. कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने बेंगलुरु बीबीएमपी के जॉइंट कमिश्नर के आदेश के खिलाफ कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया था. 25 अगस्त को हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने आदेश दिया था कि मामले का निपटारा होने तक ईदगाह की 2 एकड़ की जमीन का इस्तेमाल सिर्फ खेल के मैदान और मुस्लिमों को दो त्योहारों बकरीद और रमजान पर नमाज पढ़ने की इजाजत होगी.
कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. हालांकि, हाई कोर्ट की डबल बेंच ने सिंगल बेंच के अंतरिम आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि सरकार वहां 31 अगस्त के बाद सीमित समय के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों की अनुमति दे सकती है. हाई कोर्ट की डबल बेंच के फैसले को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने ईदगाह मैदान पर 31 अगस्त और 1 सितंबर को पूजा की इजाजत दे दी. इसके बाद वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर मैदान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. साथ ही मामले के पक्षों को विवाद निवारण के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया. उधर, वक्फ बोर्ड की ओर से कहा गया कि ईदगाह मैदान वक्फ बोर्ड का है. यहां 200 साल से नमाज हो रही है.एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि किसी को भी शांति भंग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सख्ती से पालन होगा.
ये तो हुई चामराजपेट ईदगाह की बात. कर्नाटक हाई कोर्ट ने इसीलिए अपने आदेश में कहा था कि हुबली ईदगाह मैदान का मामला बेंगलुरु के चामराजपेट ईदगाह जैसा मालिकाना हक का विवाद नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में फैक्ट अलग हैं. ऐसे में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का बेंगलुरु ईदगाह मैदान पर दिया फैसला लागू नहीं हो सकता और न ही मुस्लिम पक्ष अंजुमन-ए-इस्लाम को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का लाभ मिल सकता है.
हाई कोर्ट ने कहा कि हुबली में ईदगाह मैदान हुबली नगर निगम का है और ये भूमि अंजुमन-ए-इस्लाम को 999 सालों के लिए पट्टे पर दी गई है. ऐसे में अभी भी नगर निगम पर भूमि के उपयोग का अधिकार है.यही कारण है कि हुबली मैदान में गणेश चतुर्थी उत्सव मनाया जाने लगा है. मूर्ति स्थापना भी हो गई. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी हाई कोर्ट के आदेश के बाद हुबली मैदान पहुंचे.
उन्होंने कोर्ट के फैसले को सही बताया और कहा-‘मैं इसका स्वागत करता हूं. ये अनावश्यक रूप से विवाद पैदा करने का प्रयास किया गया. ईदगाह मैदान एक सार्वजनिक संपत्ति है. दो मौकों पर नमाज की इजाजत देने के अलावा ये संपत्ति निगम की है. इसलिए इसपर कोई विवाद नहीं होना चाहिए.’वैसे किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए दोनों ही ईदगाह मैदान पर भारी पुलिसबल तैनात कर दिया गया है.
अब हमारे विश्लेषण का समय..
ईदगाह की जमीन के दो अलग-अलग मामले और उनपर अलग-अलग फैसले आए हैं. लेकिन हमारा ये मानना है कि कितना अच्छा होता जो ये मामले कोर्ट तक न जाते, आपस में सुलझा लिए जाते और समाज के लिए मिसाल बनते. जमीन किसी हिन्दू समिति की हो या मुस्लिम बोर्ड की या सरकारी हो और निगम के अधीन हो. कोशिश तो ये होनी चाहिए कि जब दुर्गा पंडाल लगाने हों या नवरात्रि का मेला या अभी की तरह गणेश उत्सव मनाना हो. जमीन उपलब्ध करवा दी जाए. या जब ईद का मौका आये तो हिंदू-मुस्लिम मिलकर एक दूसरे को गले लगाएं और मिलजुलकर त्यौहार मनाएं.
ताकि तब प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के हमीद की तरह फिर कोई बच्चा अपनी दादी-नानी या मां-पिताजी के लिए कोई जरूरी सामान लाए और उनका और ऊपरवाले का आशीर्वाद पाए. ये हमीद भी केवल इंसान का नाम है. वो चाहे कोई हिंदू हो या मुस्लिम.. मेले में जाए या ईदगाह में. खिलौने खरीदे या जरूरी सामान. मजे से खाए-पीए या दर्शन लाभ ले. मकसद ये होना चाहिए कि वहाँ लोग एक-दूसरे से मोहब्बत से मिल सकें और नफरत मिटाकर प्यार बढ़ा सकें. जमीन ऐसी हो जिसका इस्तेमाल सब लोग अपनी जरूरत के हिसाब से कर सकें और आपसी झगड़ों से दूर रह सकें.
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