स्पोर्ट्स डे पर 'कौमी एकता' के नाम पर अजान गीत का ड्रामा... लोग तो आहत होंगे ही!
उडुपी के प्राइवेट स्कूल में अज़ान गीत ने एक नए विवाद को जन्म देते हुए हिंदूवादी संगठनों को एकजुट कर दिया. स्कूल में अजान गीत को लेकर विवाद कुछ इस हद तक बढ़ा की बाद में स्कूल को मैटर ख़त्म करने के माफ़ी तक मांगनी पड़ी. सवाल ये है कि स्कूल को कौमी एकता का ये ड्रामा करने की जरूरत क्या थी?
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कर्नाटक में भले ही विधासभा चुनाव का बिगुल 2023 में बजे. मगर ध्रुवीकरण ने अभी से धार पकड़ ली है और केंद्र में उडुपी है. जिस तरह हर बीतते दिन के साथ उडुपी में नए नए मुद्दे उठ रहे हैं और जैसे उनका विरोध हो रहा है. स्वतः इस बात की पुष्टि हो जाती है कि, कर्नाटक चुनाव में विकास, स्वास्थ्य ,शिक्षा जैसे मुद्दे सब एक तरफ होंगे. चुनाव का केंद्र ध्रुवीकरण ही रहेगा. ये बात किसी से भी छिपी नहीं है कि चाहे वो हिजाब हो या फिर स्थानीय मस्जिदों में लगे लाउड स्पीकर चुनाव पूर्व उडुपी में जिस तरह सियासी सरगर्मियां तेज हुई हैं माना यही जा रहा है कि चुनाव के निकट आते आते राज्य में ऐसा बहुत कुछ होगा जो हिंदू और मुसलमानों के बीच किसी गहरी खाई से कम न होगा. स्थिति क्या होगी? भले ही उसका अंदाजा लगा पाना अभी मुश्किल हो, मगर संकेत मिलने शुरू हो गए हैं.
उपरोक्त लिखी तमाम बातों को समझने के लिए हमें उडुपी के ही उस प्राइवेट स्कूल में चलना होगा. जहां अज़ान गीत ने एक नए विवाद को जन्म देते हुए हिंदूवादी संगठनों को एकजुट कर दिया. स्कूल में अजान गीत को लेकर विवाद कुछ इस हद तक बढ़ा की बाद में स्कूल को मैटर ख़त्म करने के माफ़ी तक मांगनी पड़ी.
कर्नाटक के उडुपी में अजान गीत पर भले ही स्कूल ने माफ़ी मांग ली हो लेकिन सवाल तो खड़े होंगे ही
मामला उडुपी के मदर टेरेसा मेमोरियल स्कूल का है. हर साल की तरह इस साल भी स्कूल ने अपना एनुअल स्पोर्ट्स डे आयोजित किया. लेकिन फिर स्कूल को अपने को सेक्युलर दिखाने का कीड़ा काट गया और स्वागत गीत के रूप में उसने अलग अलग धर्मों के गीत बाजवा दिए जिसपर छात्रों ने अपनी प्रस्तुति दी. बाकी धर्मों तक सब ठीक था लेकिन विवाद का कारण बना अजान गीत जिसे लेकर स्कूल हिंदूवादी संगठन सामने आ गए और उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया.
बाद में स्कूल को भी अपनी 'गलती' का एहसास हुआ और उसने माफ़ी मांग कर मामला रफा दफा करने का प्रयास किया. मामले में दिलचस्प ये भी रहा कि स्कूल नहीं चाहता था कि मुद्दा गर्म हो और इसपर किसी तरह की कोई राजनीति हो.
यूं तो इस विषय पर कहने बताने के लिए कई बातें हैं. लेकिन सबसे पहले जिक्र स्कूल की माफ़ी का. स्कूल नहीं चाहता था कि मुद्दा भड़के. विवाद हो. लोग सड़कों पर आएं. स्कूल ने माफ़ी मांग ली. अच्छी बात है. बहुत अच्छी बात है. लेकिन कोई पूछे स्कूल से कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो उन्हें कौमी एकता के नाम पर इतना तूफानी करने की सूझी?
यूं तो इस सवाल की कोई माकूल वजह नहीं है लेकिन ये सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जो मामला हुआ है वो स्कूल के स्पोर्ट्स डे पर हुआ है. स्पोर्ट्स डे पर धार्मिक चीजों का औचित्य वाक़ई समझ से परे है. दूसरी बात ये कि जब स्कूल में 'धर्म' नाम का कोई पीरियड नहीं है. हर रोज धर्म से जुडी पढ़ाई या धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती तो फिर ये फर्जी का कौमी एकता को प्रदर्शित करने वाला ड्रामा किसलिए?
हो सकता है ऊपर लिखी बातें कड़वी लगें. या फिर ऐसा भी हो सकता है कि इनको समझते हुए आप गंभीर रूप से आहत हो जाएं. मगर जिस बात पर हमें गौर करना है वो ये कि आखिर भजन पर मुस्लिम बच्चों को और अजान के जरिये हिंदू बच्चों से रंगारंग कार्यक्रम में ठुमके लगवाकर आजकल स्कूल साबित क्या करना चाहते हैं. स्कूल का काम पढ़ाना है वो पढ़ाए. करे बच्चों का सर्वांगीण विकास. लेकिन फिर सवाल ये है कि क्या इस तरह के विकास का पैमाना या मानक ऐसे आयोजन ही हैं?
अब भी देर नहीं हुई है. बेहतर यही है कि चाहे कर्णाटक स्थित उडुपी का मदर टेरेसा मेमोरियल स्कूल हो या फिर हमारे शहरों के बड़े छोटे और गली मोहल्ले के स्कूल. सभी को इस बात को न केवल समझना होगा बल्कि गांठ बांध के रख लेना होगा कि जब तक धर्म, स्कूली शिक्षा के बीच आएगा ऐसे विवाद होते रहेंगे. हम फिर इस बात को यह रहे हैं और डंके की चोट पर कह रहे हैं कि वर्तमान राजनीतिक सामाजिक परिदृश्य में 'कौमी एकता' की बातें कोरी लफ्फाजी से कम नहीं हैं और उसूलन तो स्कूलों को भी इससे जितना हो सके बचकर रहना चाहिए.
अंत में हम अपनी बातों को विराम देते हुए बस यही कहेंगे कि स्कूल ने उड़ता तीर खुद लिया था और फिर जब विवाद हुआ और जिस तरह उसने माफ़ी मांगी अपनी मिटटी उसने खुद पलीद कराई है.
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