प्रधानमंत्री की डिग्री में उलझे केजरीवाल
क्या मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर सवाल उठाना शोभा देता है? यह ठीक है कि प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में लोगों को पता होना चाहिए, परंतु केजरीवाल को यह समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री की डिग्री राजनीति का विषय नहीं हैं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्रियों पर लगातार बढ़ते सियासी बवंडर में नया मोड़ सामने आया है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पीएम की बीए और एमए की डिग्रियां सार्वजनिक करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से माफी मांगने को कहा है.
अमित शाह ने जहां केजरीवाल पर पीएम की डिग्रियों को फर्जी बताकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है. वहीं 'आप' पार्टी ने डिग्रियों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि पीएम की बीए और एमए की डिग्रियों में नरेंद्र दामोदर दास मोदी लिखा है, जबकि बीए की मार्कशीट पर नरेंद्र कुमार दामोदर दास मोदी लिखा है. 'आप'ने यह भी कहा कि बीए की मार्कशीट का साल 1977 की जगह 1978 दर्ज किया गया है और रोल नंबर भी अलग—अलग हैं. बीजेपी ने इसके जवाब में 1978 की डिग्रियों और मार्कशीट में आए अंतर को'क्लेरिकल एरर'बताते हुए इसे उचित ठहराया है.
बीजेपी के जारी दस्तावेजों के अनुसार, नरेंद्र मोदी डीयू के स्कूल आॅफ कॉरस्पोॅन्डेंस के छात्र थे, जो कि 1976 में सेंकड इयर में फेल हो गए थे, जिसके चलते उन्हें 1977 में फिर से सेकंड इयर की परीक्षा देनी पड़ी थी. वह 1200 में से 489 नंबर लेकर पास थर्ड डिविजन में ग्रैजुएट हैं.
डिग्रियों पर जारी इस राजनीतिक अखाड़े में नेताओं के साथ—साथ सोशल मीडिया भी कूद पड़ा है. हर कोई अपनी—अपनी तरफ से मामले को भुनाने में लगा हुआ है. इस मामले पर खुलकर सामने आए बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने मोदी का पक्ष लेते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की शैक्षणिक डिग्रियों को लेकर उठा विवाद कोई मुद्दा नहीं है. देश की राजनीति में आजकल व्यक्तिगत आक्षेप का दौर कुछ ज्यादा ही चल पड़ा है, नीतियों पर बात नहीं होती है.
प्रधानमत्री मोदी की डिग्री पर सवाल खड़ा कर फंसे केजरीवाल |
वहीं सपा के बड़बोले संसदीय कार्य मंत्री आजम खां ने पीएम की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए कहा कि मोदी की बीए और एमए की डिग्रियां फर्जी हैं. वह केवल दसवीं तक ही उत्तीर्ण हैं.
डिग्री विवाद को इतना महत्व देने वाली पार्टियां शायद देश की मुख्य समस्याओं को भूल गई हैं. वह देश में भूख और प्यास से मर रहे लोगों नजरअंदाज कर डिग्रियों का भंवर जाल बुनने की कोशिश कर रही हैं. जहां इस समय समूचा भारत सूखे की मार झेल रहा है और मानव, पशु—पक्षी एक एक बूंद के लिए तरस रहे हैं, वहां सत्ता के गलियारों में ऐसी राजनीति देश के वजूद पर सवालिया निशान पैदा कर रही है.
सार्वजनिक बहस और राजनीति के गिरते स्तर की वजह से आज कई समस्याएं मुंह बाए खड़ी हो गई हैं,क्यों कोई भी पार्टी उनसे पार पाने की जद्दोजहद करती नहीं दिखाई दे रही है. अब केवल एक पार्टी आरोप लगाने का काम कर रही है और दूसरी उसे गलत ठहराने के लिए सबूतों को जुटाने में अपना कीमती समय बर्बाद कर रही है.
इन सबसे कहीं न कहीं मूल समस्या से भटकाव हो रहा है जिसे नकारा नहीं जा सकता है. रही बात केजरीवाल सरकार की तो वह शुरू से ही यूटर्न लेने में माहिर रहे हैं फिर चाहे वह दिल्ली की सत्ता हो या फिर उनके मंत्रियों का बचाव हो. यह तो जगजाहिर है कि दिल्ली के सीएम ने भी अपनी पार्टी में फर्जी डिग्रीधारियों को बड़े पद से नवाजा उन्हें कानून मंत्री की गद्दी पर काबिज किया, यदि तब वह पीएम की डिग्रियों की जैसी जांच कर लेते तो शायद उनकी इस तरह की किरकिरी तब न होती. जीतेंद्र तोमर,सोमनाथ को कानून की बागडोर देकर उन्होंने सोचा था कि वह बहुत ही काबिलेतारीफ काम कर रहे हैं, पर वह भूल गए थे कि उनकी वजह से उनकी पार्टी की छवि भी दागदार हुई थी.
केजरीवाल और उनकी पार्टी शुरू से ही आरोपों की बिसात पर राजनीति करने में माहिर रहे हैं. विवादों को हवा देकर मीडिया में बने रहना तो जैसे इनके लिए आम हो गया है.
आरोप केवल दो-चार दिन के लिए होता है उसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक सुचिता और मर्यादा को ताक पर रखना बेहद शर्मनाक कृत्य है. क्या मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर सवाल उठाना शोभा देता है? यह ठीक है कि प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में लोगों को पता होना चाहिए, परंतु केजरीवाल को यह समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री की डिग्री राजनीति का विषय नहीं हैं.
उस समय की परिस्थिति और अब की परिस्थिति में बहुत अंतर है. अब केजरीवाल एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं. उन्हें अपने पद की मर्यादा के साथ प्रधानमंत्री के पद की गरिमा का भी ख्याल रखना चाहिए. जहां तक मोदी की डिग्री का सवाल हैं तो उन्होंने 2014 के आम चुनाव के दौरान बतौर उम्मीदवार जो हलफनामा दाखिल किया है,उसमें जानकारी दी थी.
उस हलफनामे के अनुसार, उन्होंने साल 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद से मास्टर्स ऑफ आर्ट्स की डिग्री ली थी जबकि उससे पहले 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बैचेलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की. इस पूरे विवाद की जड़ की बात करें तो केवल प्रधानमंत्री की वेबसाइट से डिग्री संबंधी दस्तावेजों को हटा लेना है.
केजरीवाल शायद भूल गए हैं कि उनकी द्वारा उठाया गया डिग्री विवाद दिन—प्रतिदिन नया मोड़ ले रहा है, जिससे देश के महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने में बाधा उत्पन्न हो रही है. अब उन्हें शांत हो जाना चाहिए. पीएम की डिग्रियां अब चाहे सही हो या फिर न हो? जनता इन सबसे ज्यादा धरातल पर किए गए कार्यों को देखना चाहती है. अब उसने पांच सालों के लिए अपना पीएम चुन लिया है. अब वह डिग्री नहीं उनका काम देखना चाहती है. इन दो सालों में पीएम द्वारा किए गए कार्यों से वह कहीं न कहीं संतुष्ट नजर आए हैं और आगामी तीन सालों में भी उनके कार्यों पर जनता की पैनी नजर रहेगी. इसलिए केजरीवाल को भी जनता को बरगलाने से पहले जमीनी काम करके दिखाने होंगे, जिसके लिए वह अपनी बड़ी—बड़ी डिग्रियों और पद को छोड़कर राजनीति में आए हैं.
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