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Updated: 15 फरवरी, 2020 12:08 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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जीत जिम्मेदारियां सिखाती है और हार सबक देती है. दिल्ली चुनाव नतीजे (Delhi election results) आने के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के रिश्तों में ऐसे बदलाव के संकेत मिल रहे हैं. संजीदगी के साथ अरविंद केजरीवाल चुनाव जीत कर अपनी परिपक्वता के सबूत दे चुके हैं - और बीजेपी भी जनादेश को अहमियत और सहयोगी की राजनीति के संकेत दे रही है. अब सवाल ये उठता है कि दिल्ली का आगे क्या हाल रहने वाला है - केंद्र की मोदी सरकार और केजरीवाल की दिल्ली सरकार में चली आ रही जंग जारी रहेगी - या अब थम जाएगी?

बुलावे में संदेश भी है

16 फरवरी, 2020 रविवार को अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं - और समारोह के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बुलाया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समारोह में शामिल होंगे या नहीं अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है. वैसे 16 तारीख को ही प्रधानमंत्री मोदी का उनके संसदीय क्षेत्र में लंबा चौड़ा कार्यक्रम बन चुका है जिसमें 63 फीट की दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति के अनावरण से लेकर इंदौर के लिए एक ट्रेन को हरी झंडी दिखाया जाना तक शुमार है.

ये तो पहले ही मालूम चल गया था कि अरविंद केजरीवाल के शपथग्रहण समारोह में किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया जा रहा है - क्योंकि इवेंट का खास तौर पर दिल्ली के लिए बनाना है. वैसे भी अरविंद केजरीवाल शपथग्रहण के मौके को भला राजनीतिक अखाड़ा बनने का मौका क्यों दें, जबकि पूरी दिल्ली को रामलीला मैदान में बुला रखा हो. प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में बीजेपी के सभी सात सांसदों और चुन कर आये सभी 8 विधायकों को भी बुलावा भेजा है.

अरविंद केजरीवाल को भले ही अब तक अमित शाह की ओर से ट्विटर पर बधाई न मिल पायी हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ये काम नतीजे वाले दिन ही कर दिया था - और अरविंद केजरीवाल ने भी शुकराने का ट्वीट फौरन कर दिया था.

अपने ट्वीट में अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ी उम्मीद भी जतायी है - दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने को लेकर. ये भी कहा है कि उम्मीद है इस काम में केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों ही मिल कर काम करेंगे.

सवाल है कि ये ट्विटर पर रस्मअदायगी भर ही है या फिर अंदर से ऐसी ही राजनीतिक इच्छाशक्ति भी काम करने लगी है? सवाल तो ये भी है कि क्या दिल्ली की हार के बाद बीजेपी की केंद्र की मोदी सरकार नये दौर में नये मिजाज के साथ सहयोगी रुख अपनाते हुए काम की राजनीति को बढ़ावा देने को राजी होगी?

टकराव थमने की वजह भी है

जब से अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव की तैयारी शुरू की उनका अंदाज बदलने लगा था. एक वक्त ऐसा रहा कि प्रधानमंत्री मोदी पर हमले में राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के बीच होड़ मची रहती थी. राहुल गांधी तो अपने स्टैंड पर कायम हैं लेकिन अरविंद केजरीवाल ने रास्ता बदल लिया. जब अर्थव्यवस्था को लेकर राहुल गांधी PM मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ आक्रामकर रुख अख्तियार किये हुए थे तो अरविंद केजरीवाल कहते - सब ठीक हो जाएगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सब ठीक कर लेंगी.

narendra modi, arvind kejriwalदिल्ली वालों के अच्छे दिन आने वाले हैं!

धारा 370 पर कांग्रेस ने कितना शोर मचाया, लेकिन अरविंद केजरीवाल से जब भी पूछा जाता, बस इतना ही कहते - जरूरत ही क्या थी? बहुत सारी समस्याएं, बहुत सारे काम पड़े हुए हैं. पहले उन पर ध्यान दिया जाना चाहिये. ऐसा रुख अपना कर अरविंद केजरीवाल ने इतना तो संकेत दे ही दिया है कि वो अब रोज रोज भिड़ने की जगह लंबी पारी खेलने का इरादा कर चुके हैं. दिल्ली से बाहर का आम आदमी पार्टी का क्या प्लान है, औपचारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताया गया है लेकिन ये तो साफ है कि आगे से अरविंद केजरीवाल पुरानी गलतियां नहीं दोहराने वाले हैं.

ताली एक हाथ से नहीं बजती - और जब दोनों हाथ आमने सामने हों, मौका भी मजबूरी और जरूरत का हो तो ताली बजानी ही पड़ती है - मन से या बिना मन के बहुत फर्क नहीं पड़ता है. फिलहाल तो दिल्ली और केंद्र के रिश्ते ऐसे ही मोड़ पर आ चुके हैं.

बीजेपी भी हार की समीक्षा कर रही है. एक टीवी प्रोग्राम में अमित शाह भी स्वीकार कर चुके हैं कि दिल्ली में चुनाव के दौरान जो बयानबाजी हुई नतीजों पर उसका असर निश्चित तौर पर पड़ा है. फिर तो मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी भी टकराव का पुराना रास्ता छोड़ने को लेकर विचार कर रही रही होगी. संयोग और प्रयोग के चक्कर में हार का स्वाद चख चुकी बीजेपी आगे से दिल्ली में फिर से और भारी जनादेश के साथ चुन कर आयी सरकार को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं ही लेना चाहेगी.

दिल्ली चुनाव जीत कर अरविंद केजरीवाल ने साबित कर दिया है कि वो काम भी करते हैं. आगे से अगर अरविंद केजरीवाल किसी काम में केंद्र पर रोड़ा अटकाने का आरोप लगाते हैं तो लोग ध्यान से सुनेंगे भी और सपोर्ट में रिएक्ट भी करेंगे.

जब काम की बात होगी तो अरविंद केजरीवाल को भी केंद्रीय योजनाओं के मामले में सही तरीका अपनाना होगा. यूं ही किसी स्कीम को लागू नहीं होने देने का फैसला मुश्किलें खड़ी कर सकता है अगर वो स्कीम लोक हित से जुड़ी हो और उसका फायदा बड़ी आबादी तक पहुंचता हो. आयुष्मान भारत ऐसी ही एक स्कीम है जो टकराव के चलते दिल्ली में लागू नहीं हो सकी है.

एक रिपोर्ट में बीजेपी के उपाध्यक्ष और दिल्ली के प्रभारी, श्याम जाजू ने कहा भी है कि केंद्र सरकार दिल्ली को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का शहर बनाने में अरविंद केजरीवाल की पूरी मदद करेगी, साथ ही याद भी दिलाते हैं कि केजरीवाल सरकार को भी मोदी सरकार की योजनाओं को लागू करने में तत्परता दिखानी चाहिये.

दिल्ली की जंग तभी शुरू हो गयी थी जब नजीब जंग के उप राज्यपाल रहते अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने - और आखिरी साल में प्रवेश से कुछ पहले तक ये सिलसिला चलता रहा. पंजाब और गोवा चुनाव के बाद 2017 में ही MCD चुनाव में मिली हार के बाद अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों के तेवर थोड़े नरम पड़े और फिर आपसी कलह भी जोर पकड़ने लगी. साथियों की बगावत और मानहानि के मुकदमों में सुलह का रास्ता अख्तियार कर अरविंद केजरीवाल ने तमाम चीजों को समेटना शुरू किया - और पूरी कैबिनेट के साथ जून, 2018 में एलजी ऑफिस में धरना देने वाले अरविंद केजरीवाल को राजनीति में शासन और आंदोलन का फर्क समझ में आने लगा.

कार्यकाल के आखिरी साल अरविंद केजरीवाल चुनावी वादों पर फोकस करने लगे - और तकरार का रास्ता छोड़ काम पर ध्यान देने लगे. जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती गयी, अरविंद केजरीवाल ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से टकराव का रास्ता पूरी तरह छोड़ दिया. 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच साल के शासन के बाद सत्ता में वापसी की - और अब उसी स्थिति में अरविंद केजरीवाल भी पहुंच चुके हैं. सीटों के नंबर की तुलना छोड़ दें तो दिल्ली में आप की बंपर जीत भी आम चुनाव में बीजेपी जैसी ही रही.

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#दिल्ली, #अरविंद केजरीवाल, #नरेंद्र मोदी, Arvind Kejriwal, Narendra Modi, Politics Of Cooperation Than Confrontation

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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