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Updated: 14 फरवरी, 2020 02:50 PM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) द्वारा शाहीन बाग (शाहीनबाग) में चल रहे नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध प्रदर्शन (Anti-CAA protest ) को लेकर तीखी आलोचना की गई. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने 50 जनसभाएं और रैलियां की. साथ ही पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) की तरफ से भी मेहनत खूब हुई लेकिन इन तमाम चीजों के बावजूद भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) में हार का मुंह देखना पड़ा. फिर भी, दिल्ली चुनाव परिणाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा (BJP) के लिए एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है. पार्टी में इसे लेकर बातें हो रही हैं. जिक्र 2024 के चुनावों का हो रहा है. कहा जा रहा है कि 2024 के चुनावों के लिहाज से ये भाजपा के लिए अच्छी खबर है. ऐसा क्यों? कारण है कांग्रेस का दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक भी सीट न ला पाना.

Arvind Kejriwal, Delhi Election Result, AAP, BJP, Congress तमाम कारण हैं जो बताते हैं कि केजरीवाल शायद ही कभी विपक्ष का चेहरा बन पाएं

ऐसा बिलकुल नहीं है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सिर्फ सीट लाने में नाकाम रही है. 2015 के मुकाबले पार्टी का वोट शेयर भी आधे के आस पास कम हुआ है. 2015 में कांग्रेस को 9.7% वोट मिले थे जो कि 2020 में 4.26 था. यही भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अच्छी खबर है.

पैन इंडिया लेवल पर भाजपा सिवाए कांग्रेस के किसी से नहीं डरती. ये सिर्फ कांग्रेस ही है जो पूरे विपक्ष को एकसाथ एक ही छाते के नीचे ला सकती है. विपक्ष के लिहाज से ममता बनर्जी या शरद पवार अपने आप में एक कद्दावर नेता हो सकते हैं. लेकिन न तो तृणमूल कांग्रेस और न ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में वो काबिलियत है कि वो राष्ट्रीय स्तर पर आए और भाजपा को गंभीर चुनौती देने के लिए नेतृत्व प्रदान करे.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने तीसरे कार्यकाल में हैं. और राष्ट्रीय राजधानी में होने के कारण हर जरूरी मुद्दे पर उनकी उपस्थिति मीडिया में सुनाई देती है. वो पीएम मोदी को बड़ी ही आसानी के साथ चुनौती दे सकते हैं. मगर ये चुनौती सिर्फ अख़बारों की हेडलाइन और टीवी स्टूडियो की डिबेट्स तक ही सीमित रहेगी. विपक्षी गठबंधन का नेता होने के लिए केजरीवाल को अपनी आम आदमी पार्टी का बेस भारत के अन्य राज्यों में बढ़ाना होगा.

गौरतलब है कि आने वाले वर्षों में बिहार और पश्चिम बंगाल के रूप में दो बड़े चुनाव होने हैं. बिहार में इसी साल 2020 में चुनाव होगा. लेकिन केजरीवाल एक ऐसे राज्य में आम आदमी पार्टी के उदय के सपने नहीं देख सकते जहां बीजेपी-जदयू गठबंधन अपने अगले टर्म के लिए सपने देख रहा है.

नीतीश कुमार की साफ़ सुथरी छवि ब्रांड केजरीवाल के लिए बिहार में एक बड़ा काउंटर होगी. ध्यान रहे कि बिहार एक ऐसा राज्य है जहां आम आदमी पार्टी का न तो काडर है और न ही यहां इनका वालंटियर बेस मौजूद है. साथ ही अगर बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ केजरीवाल आते हैं तो इससे उनका नुकसान ही है. बता दें कि नीतीश कुमार वो नेता हैं जिनको विपक्ष हमेशा ही अपने पाले में कर पीएम मोदी के खिलाफ सामने खड़ा देखना चाहता है. नीतीश ने 2013-17 तक अपने को इस पाले में रखा भी था मगर समीकरण सही नहीं हुए और उन्हें एनडीए में वापस आना पड़ा.

बिहार जैसा ही हाल केजरीवाल का बंगाल में भी होने की सम्भावना है. अगर केजरीवाल बंगाल में अपना विस्तार करते हैं तो वह ममता बनर्जी को राष्ट्रीय राजनीति में अपने प्रतिद्वंद्वी बनाने का जोखिम उठाएंगे. ममता बनर्जी का शुमार एक ऐसे नेता के रूप में होता है जो कभी भी बंगाल की राजनीति में किसी को पांव जमाने का मौका नहीं देंगी. इस बात को समझने के लिए हम भाजपा का रुख कर सकते हैं जो बंगाल में ममता को लगातर चुनौती दे रही है. बता दें कि बंगाल को मोदी और शाह की जोड़ी के लिए 2021 में एक बड़े किले के रूप में देखा जा रहा है.

अन्य राज्यों में पर्याप्त उपस्थिति के बिना, केजरीवाल किसी भी संघीय मोर्चे या तीसरे मोर्चे के लिए अस्वीकार्य प्रधानमंत्री उम्मीदवार हैं, जो देश की राजनीति में 1990 के मध्य से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है. ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, तेलुगु देशम पार्टी के एन चंद्रबाबू नायडू और शरद पवार अन्य नेता हैं जो 2024 में पीएम मोदी के लिए एक चुनौती बनकर उभर सकते हैं. हालांकि, यही नेता 2019 में पीएम के चेहरे के लिए एक कॉमन उम्मीदवार के नाम पर सहमती दर्ज कराने में बुरी तरह विफल रहे हैं.

इन तमाम बातों के बाद 2024 के आम चुनावों में पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए हमें सिर्फ कांग्रेस और राहुल गांधी आगे आते दिखाई देते हैं. ध्यान रहे कि सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों में 50 से अधिक ऐसे लोग होंगे जिन्हें यदि अपने बीच से प्रधानमंत्री उम्मीदवार का नाम चुनना हो तो वो राहुल गांधी के नाम पर अपनी सहमती दर्ज करा देंगे.

लेकिन तब तक 2018-19 में बीजेपी से प्रमुख राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और झारखंड को छीनने वाली कांग्रेस को इन राज्यों में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है. ज्ञात हो कि इन राज्यों में कुल 127 लोकसभा सीटें हैं.  और, पीएम मोदी ने पिछले छह वर्षों में ये साबित किया है कि उनके अन्दर सत्ता विरोधी वोटों को लेने का हुनर खूब है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का विनाशकारी नुकसान, भले ही यह सामरिक हो- इसने तमाम तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं और कांग्रेस को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जो उसके लिए कहीं से भी फायदेमंद नहीं है. खैर भाजपा और पीएम मोदी के लिए 2024 का खेल निर्धारित हो चुका है.

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लेखक

प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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