रूस के खिलाफ अमेरिका का साथ न देने पर भारत को धमकी देने वाले दलीप सिंह कौन हैं?
दो दिन के भारत दौरे पर आए अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े मामलों के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह (Daleep Singh) ने रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों (US sanctions on Russia) में गतिरोध पैदा करने वाले देशों को अंजाम भुगतने की बात कही.
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दो दिन के भारत दौरे पर आए अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह (Daleep Singh) ने रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों (US sanctions on Russia) में गतिरोध पैदा करने वाले देशों को अंजाम भुगतने की बात कही. अमेरिकी डिप्टी एनएसए दलीप सिंह का ये बयान रूस से तेल खरीदने और भुगतान के लिए नया तंत्र बनाने की कोशिश कर रहे भारत के लिए परोक्ष रूप से सख्त चेतावनी के ही शब्द थे. दलीप सिंह ने अपने बयान में ये भी कहा कि 'वह (अमेरिका) रूस से ऊर्जा और दूसरी चीजों का भारत के आयात में 'तीव्र' बढ़ोतरी नहीं देखना चाहेगा.' दलीप सिंह ने अमेरिका की तिलमिलाहट को दर्शाते हुए भारत को नसीहत दी कि 'ये उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि अगर चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन किया, तो रूस उसकी रक्षा के लिए दौड़ा चला आएगा.' आइए जानते हैं कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के 'अनुचित युद्ध' के 'नतीजों' पर भारत से गहन परामर्श करने के आए दलीप सिंह कौन हैं?
अमेरिकी डिप्टी एनएसए दलीप सिंह को उनकी धमकी का जवाब उनकी ही भाषा में भारत ने भी दिया है.
कौन हैं दलीप सिंह?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के करीबियों में शुमार दलीप सिंह रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को डिजाइन करने वाले आर्किटेक्ट के तौर पर जाने जाते हैं. दलीप सिंह, जो बाइडेन प्रशासन में अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े मामलों के डिप्टी एनएसए हैं. 46 साल के दलीप सिंह अमेरिकी संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई-अमेरिकी दलीप सिंह सौंद के परपोते हैं. इससे पहले ओबामा प्रशासन के दौरान दलीप सिंह ट्रेजरी फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स में डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी और ट्रेजरी फॉर फाइनेंशियल मार्केट्स में कार्यकारी असिस्टेंट सेक्रेटरी थे.
खुद को अमेरिकी साबित करने के लिए इस्तेमाल किए कठोर शब्द
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दलीप सिंह को शायद इसी उम्मीद में भारत भेजा होगा कि उनके भारतीय मूल के होने से वह नई दिल्ली को अपने साथ खड़ा करने में सफल होंगे. लेकिन, अमेरिका की ये उम्मीद धराशायी हो गई. वैसे, दलीप सिंह की सख्त भाषा की बात की जाए, तो यह साफ है कि उन्होंने खुद को पूरी तरह से अमेरिकी घोषित करने के लिए ही ऐसे शब्दों का चयन किया था. क्योंकि, भारत, रूस से तेल-गैस आयात कर किसी भी तरह से अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं कर रहा है. और, कई यूरोपीय देश रूस से तेल-गैस की खरीद कर रहे हैं.
वैसे, अमेरिका ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने से लेकर संयुक्त राष्ट्र में उसे घेरने की कोशिश की है. लेकिन, रूस को लेकर भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर आगे बढ़ते हुए उसके साथ अपने संबंधों को बरकरार रखा है. यहां तक की संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ वोटिंग से भी भारत ने दूरी बना रखी है. निश्चित तौर पर अमेरिका के लिए भारत का ये कदम किसी झटके से कम नहीं है. क्योंकि, भारत ने हाल ही में रूस से एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम (S-400) के साथ ही बड़ी मात्रा में तेल की खरीद की है.
क्या भरोसेमंद है चीन पर नसीहत देने वाला अमेरिका?
दलीप सिंह ने भले ही भारत को नसीहत दी हो कि चीन के अतिक्रमण पर रूस उसके समर्थन में नहीं आएगा. लेकिन, सवाल यही है कि क्या अमेरिका को भरोसेमंद मानकर भारत के फैसले लेने चाहिए? इस बात में कोई दो राय नहीं है कि यूक्रेन को युद्ध में झोंकने वाले अमेरिका और अन्य पश्चिम देश ही हैं. क्योंकि, अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने ही यूक्रेन के खिलाफ किसी हरकत पर सैन्य संगठन नाटो से मदद का भरोसा दिया था. लेकिन, युद्ध छिड़ने के बाद रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों और यूक्रेन को हथियार उपलब्ध कराने से इतर अमेरिका ने कुछ नहीं किया. पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे पीएम इमरान खान ने भी अमेरिका पर आंख मूंद भरोसा किए जाने के खिलाफ अपनी जबान खोल ही दी. अमेरिका इतना ही भरोसेमंद होता, तो गलवान घाटी में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच हुई हिंसक झड़प पर चीन के खिलाफ मुंह खोलने में क्यों कतराता? कई दशकों से चीन ने भारत की सीमाओं का उल्लंघन किया है. लेकिन, अमेरिका ने भारत का समर्थन करते हुए चीन के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
रूसी विदेश मंत्री से मुलाकात पर दबाव खत्म कर गए दलीप
तमाम कोशिशों के बावजूद भी अमेरिका अब तक भारत को रूस के खिलाफ खड़ा होने के लिए तैयार नहीं कर पाया है. और, दलीप सिंह के भड़कने की एक वजह ये भी मानी जा सकती है कि रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी भारत की दो दिवसीय यात्रा पर आए हैं. लेकिन, दलीप सिंह ने भारत को सख्त चेतावनी देकर रूस के विदेश मंत्री से मुलाकात को लेकर अमेरिकी दबाव को खत्म कर दिया. क्योंकि, भारत ने अब तक गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति को बनाए रखा है. और, भारत एकतरफा तरीके से किसी खेमे में खड़ा होकर नजर नहीं आना चाहती है. जबकि, अमेरिका चाहता है कि भारत आर्थिक प्रतिबंधों पर उसके हिसाब से चले. रूस के साथ तेल-गैस की खरीद के साथ भारत वैसे भी किसी अमेरिकी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं कर रहा है. और, दलीप सिंह के इस बयान के बाद रूस चाहेगा कि परोक्ष तौर से ही सही भारत का समर्थन उसे मिलता रहे. दरअसल, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की भारत यात्रा में रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदने को लेकर ज्यादा छूट और व्यापार के लिए रुपये-रूबल में भुगतान के नया सिस्टम तैयार किए जाने पर चर्चा कर रहे हैं.
दलीप सिंह की भाषा में ही उन्हें वापस मिला जवाब
अमेरिकी डिप्टी एनएसए दलीप सिंह को उनकी धमकी का जवाब उनकी ही भाषा में भारत ने भी दिया है. दलीप सिंह चाह रहे थे कि भारत को धमका कर वो अमेरिका के साथ रूस के खिलाफ खड़े होने के लिए मना लेंगे. लेकिन, उनका ये दांव उलटा पड़ गया. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे सैयद अकबरूद्दीन (Syed Akbaruddin) ने डिप्टी एनएसए दलीप सिंह की कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए ट्वीट किया है कि 'तो ये हमारा दोस्त है. ये कूटनीति की भाषा नहीं है. ये जबरदस्ती की भाषा है. कोई इस युवक को बताए कि एकतरफा दंडात्मक प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है.'
So this is our friend…?This is not the language of diplomacy…This is the language of coercion…Somebody tell this young man that punitive unilateral economic measures are a breach of customary international law… pic.twitter.com/9Kdd6VDYOh
— Syed Akbaruddin (@AkbaruddinIndia) April 1, 2022
दलीप सिंह ने भारत में जिस लहजे में चेतावनी दी. उसके ठीक उलट व्हाइट हाउस ने इस मामले पर रचनात्मक बातचीत होने का दावा किया. यहां तक कि व्हाइट हाउस को ये भी कहना पड़ा कि 'विभिन्न देशों के रूसी संघ के साथ अपने संबंध हैं. यह एक ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्य है. हम इसको बदलने के लिए काम नहीं कर रहे हैं.'
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