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Updated: 07 जून, 2017 04:37 PM
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भारत गणराज्य के 14वें राष्ट्रपति को चुनने के लिए देश मे राजनीतिक गहमागहमी अब तेज हो जाएगी. विपक्ष साझा उम्मीदवार तय करने में तो सत्ता पक्ष आम सहमति के आधार पर उम्मीदवार उतारने की जद्दोजहद में पिछले महीने से लगे हैं. हर पक्ष क्षेत्र, धर्म जाति और जनजाति के समीकरण में उम्मीदवार को फिट करने में मशगूल है.

उधर, चुनाव आयोग बुधवार शाम 5 बजे राष्ट्रपति चुनाव के कार्यक्रम का एलान करेगा. यानी तारीखों के साथ साथ राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया की जानकारी भी देगा. क्योंकि अपने देश में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया अन्य चुनाव से अलग यानी अप्रत्यक्ष पद्धति से होती है. संविधान के मुताबिक ये आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली है.

भारत के मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 25 जुलाई 2017 तक है. उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले यानी जुलाई मध्य तक ही देश के 14वें राष्ट्रपति का चुनाव कर लिया जाएगा.

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विपक्षी दलों में अब तक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई है. उधर सरकार भी अपनी पार्टी और सहयोगी दलों के साथ राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने की कवायद में जुटी है. राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारों को लेकर पार्टियों में गहन मंथन चल रहा है. ऐसे में आम नागरिक के लिए भी यह जानना जरूरी हो जाता है कि हमारे देश में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया कितनी सरल और कितनी जटिल है.

तो राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष मतदान से होता है. जनता की जगह जनता के चुने हुए प्रतिनिधि राष्ट्रपति को चुनते हैं. भारत के राष्ट्रपति निर्वाचन कॉलेज द्वारा चुने जाते हैं. संविधान के अनुच्छेद 54 में इसका विस्तार से उल्लेख है. इसमें संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं. दो केंद्रशासित प्रदेशों, दिल्ली और पुद्दुचेरी, के विधायक भी चुनाव में हिस्सा लेते हैं जिनकी अपनी विधानसभाएं हैं.

सभी सांसदों और विधायकों के पास निश्चित संख्या में मत हैं. हालांकि, हर निर्वाचित विधायक और सांसद के वोटों के मूल्य की लंबी गणना होती हैं. इसी आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के आधार पर राष्‍ट्रपति चुना जाएगा.

इस बार राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए मतों के मूल्य का निर्धारण 1971 की जनगणना के आधार पर ही किया जाएगा. उस वक्त देश की आबादी लगभग 55 करोड़ थी. 2011 की जनगणना में आबादी का आंकड़ा 121 करोड़ से ज़्यादा है. अभी ये 125 करोड़ के आसपास होगा. लेकिन तब से अब तक सरकारें तो कई बदलीं पर वोटों का मूल्य नहीं बदला.

तो फार्मूले के मुताबिक राज्यों के विधायकों के मत की गणना के लिए उस राज्य की जनसंख्या देखी जाती है. साथ ही उस राज्य के विधानसभा सदस्यों की संख्या के मुताबिक वोट का अनुपात निकालने के लिए राज्य की कुल आबादी से चुने गए विधायकों की संख्या से विभाजित किया जाता है. जो शेष बचता है, उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है. फिर जो अंक प्राप्त होता है, उसी से राज्य के एक विधायक के वोट का अनुपात निकलता है.

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सांसदों के मतों का मूल्य तय करने का तरीका थोड़ा अलग है. सबसे पहले पूरे देश के सभी विधायकों के वोटों का मूल्य जोड़ा जाता है. उसमें लोकसभा और राज्यसभा में चुने हुए सांसदों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है. फिर जो अंक बचता है, उसी से राज्य के एक सांसद के वोट का मूल्य निकलता है. अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो मूल्य में एक मत का इजाफा हो जाता है.

राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार की जीत सिर्फ सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से नहीं होती. उसे सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल मूल्य का आधे से ज्यादा हिस्सा हासिल भी करना पड़ता है. आसान शब्दों में चुनाव से पहले तय हो जाता है कि जीतने के लिए उम्मीदवार को कितने वोट या वेटेज हासिल करने होंगे. मिसाल के तौर पर यदि 10,000 वैध वोट हैं, तो जीतने वाले उम्मीदवार को (10,000 / 2) +1 यानी 5001 वोट तो पाने ही होंगे.

राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 776 सांसदों के अलावा विधानसभाओं के 4120 विधायक वोट डालेंगे. यानी कुल 4896 लोग मिलकर नया राष्ट्रपति चुनेंगे. राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के मुताबिक इन वोटों की कुल कीमत 10.98 लाख है.

बीजेपी को अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनवाने के लिए 5.49 लाख कीमत के बराबर वोटों की दरकार है. एनडीए (23 पार्टियों के सांसद और राज्यों की विधान सभाओं/विधान परिषदों के सदस्य मिलाकर) के पास राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित इलेक्टोरल कॉलेज में तकरीबन 48.64 फीसदी वोट हैं. बीजेपी 5 लाख 32 हजार 19 मगर इनमें से करीब 20 हजार कीमत के वोट एनडीए की सहयोगी पार्टियों के हैं. योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य और पर्रिकर के इस्तीफे रुकवाकर बीजेपी ने 2100 वोटों की कमी पूरी कर ली है. देश के 29 राज्यों में से भाजपा 12 पर काबिज है. भाजपा के साथ मिलकर एनडीए 15 राज्यों पर काबिज है.

विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के साथ वामपंथी दल समेत तृणमूल जैसी पार्टियां हैं. इसके विपरीत राज्य या केंद्र में राजनीतिक समीकरणों के आधार पर कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष के साथ जा सकने वाली 23 पार्टियों का वोट प्रतिशत 35.47 फीसदी के लगभग है. विपक्षी दलों के पास 3,91,000 अनुमानित मत हैं. इनमें से 6 दलों आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल, भारतीय राष्ट्रीय लोकदल, वाईएसआर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और एआईएडीएम ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. इन 6 दलों का वोट प्रतिशत भी 13 के ही आसपास है. आकडों में 1,70,000 अनुमानित वोट हैं.

ये तो हुआ वोटों का गणित. अब शुरू होगा उम्मीदवार तय करने का खेल. देश के राष्ट्रपति पद के सर्वोच्च आसन पर कौन बैठे...आदिवासी, दलित, पिछड़ा या महिला... उत्तर से या दक्षिण से...

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लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

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