आबकारी नीति पर आखिर क्यों 'लौट के AAP घर को आए'?
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) ने नई आबकारी नीति (Excise Policy) को लेकर भाजपा पर आरोपों की झड़ी लगा दी है. लेकिन, ये बताना भूल गए हैं कि जब नई शराब नीति इतनी ही पारदर्शी थी. तो, इसे वापस लेने की जरूरत क्यों पड़ी? जबकि, अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) तो भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी से खुलेआम पंगा लेने के लिए ही मशहूर हैं.
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खबर है कि केजरीवाल सरकार की नई आबकारी नीति पर रोक लगाकर सरकारी दुकानों के जरिये ही शराब बेची जाएगी. दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा है कि 'भाजपा शराब की दुकानों के लाइसेंसधारकों और अधिकारियों को सीबीआई और ईडी के नाम से धमका रही है. गुजरात की तरह ही दिल्ली में भी ये लोग शराब का अवैध कारोबार करना चाहते हैं. जबकि, केजरीवाल सरकार की नई और पारदर्शी आबकारी नीति की वजह से राज्य का रेवेन्यू 9300 करोड़ हो गया था. जो पहले 6 हजार करोड़ ही था. नई आबकारी नीति से भ्रष्टाचार पर रोक लगी है.'
वैसे, केजरीवाल सरकार की ओर से ये फैसला उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा नई आबकारी नीति में नियमों की अनदेखी से जुड़े कुछ मामलों में सीबीआई जांच की सिफारिश के बाद लिया गया है. बताना जरूरी है कि पुरानी आबकारी नीति लागू करने से एक दिन पहले ही दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल सक्सेना से मुलाकात की थी. जिसके बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि 'सरकार और उपराज्यपाल के बीच कोई तनाव नही हैं. और, हम लोग मिलकर काम करेंगे.' इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आबकारी नीति पर आखिर क्यों 'लौट के AAP घर को आए'?
दिल्ली की नई आबकारी नीति ने अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम करने की जगह बढ़ा दी थीं.
क्या सीबीआई जांच के डर से बैकफुट पर आई AAP?
भाजपा का आरोप है कि सीएम अरविंद केजरीवाल ने नई आबकारी नीति को वापस लेने का फैसला सीबीआई जांच के डर से लिया है. क्योंकि, भाजपा ने ही नई आबकारी नीति में टेंडर प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी के आरोप लगाए थे. साथ ही कुछ कंपनियों को आर्थिक फायदा पहुंचाने, कॉर्टल यानी दो-तीन कंपनियों को एक करने की परमिशन न देने, ब्लैक लिस्टेड कंपनियों और शराब निर्माता कंपनियों को लाइसेंस न देने जैसे नियमों को नजरअंदाज करने के आरोप लगाए थे. मनीष सिसोदिया ने दावा किया था कि नई शराब नीति से दिल्ली सरकार का रेवेन्यू बढ़ा है. लेकिन, भाजपा ने पॉलिसी को फेल करने का मन बना लिया है. खैर, यहां सवाल ये उठ रहा है कि जब नई शराब नीति में पारदर्शी ढंग से नीलामी हुई. और, 9300 करोड़ का रेवेन्यू आया. तो, केजरीवाल सरकार को पुरानी शराब नीति को लागू क्यों करना पड़ा?
पारदर्शी व्यवस्था, तो डर किस बात का?
मनीष सिसोदिया ने दावा किया है कि केजरीवाल सरकार की नई आबकारी नीति पूरी तरह से पारदर्शी है. जिससे भ्रष्टाचार खत्म हो गया है. लेकिन, उन्होंने ये भी कहा कि लाइसेंसधारकों और अधिकारियों को सीबीआई और ई़डी का खौफ दिखाया जा रहा है. वैसे, यहां जरूरी सवाल ये है कि जब पारदर्शी व्यवस्था के चलते भ्रष्टाचार जैसी चीजें हो नही पा रही हैं. तो, भाजपा किस बिनाह पर लाइसेंसधारकों और अधिकारियों को डरा रही है? लाइसेंसधारकों ने साफ-सुथरी टेंडर प्रक्रिया के तहत लाइसेंस पाए हैं. तो, वे भाजपा से डर क्यों रहे हैं?
मुख्य सचिव की रिपोर्ट में क्या था?
दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने आम आदमी पार्टी सरकार की नई आबकारी नीति पर रिपोर्ट तलब की थी. दिल्ली के मुख्य सचिव ने ये रिपोर्ट उपराज्यपाल को सौंपी थी. जिस पर सीबीआई जांच के आदेश दिए गए थे. इस रिपोर्ट में नई आबकारी नीति बनाने में नियमों के उल्लंघन तथा टेंडर प्रक्रिया में खामियों का जिक्र किया गया था. साथ ही कुछ वित्तीय अनियमितताओं का भी दावा किया गया था.
नई आबकारी नीति से उठी कई समस्याएं
केजरीवाल सरकार की नई शराब नीति में दिल्ली को 32 जोन में बांटकर केवल 16 कंपनियों को ही डिस्ट्रीब्यूशन दिया गया था. इससे प्रतिस्पर्धा खत्म होनी की संभावना बढ़ गई थी. इतना ही नहीं, नई शराब नीति में बड़ी कंपनियों की दुकानों पर तगड़ा डिस्काउंट मिलने की वजह से कई छोटे वेंडर्स को अपना लाइसेंस सरेंडर करना पड़ा था. वहीं, एक वार्ड में तीन ठेके खोलने के नियम की वजह से कई जगहों पर लोगों ने भी इसका विरोध किया था. जिसकी वजह से महंगी बोली लगाकर लाइसेंस लेने वालों को तगड़ा नुकसान हुआ था.
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