जानिए हिजाब बनाम भगवा गमछा की जंग पर संविधान क्या कहता है
कर्नाटक (Karnataka) में हिजाब बनाम भगवा गमछा का विवाद (Hijab Row) लगातार बढ़ता जा रहा है. राज्य के उडुपी में एक कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर स्कूल में प्रवेश करने से रोकने का ये मामला अब कर्नाटक के कई हिस्सों में फैल गया है. कर्नाटक में हिजाब पहनने की स्वतंत्रता को संवैधानिक अधिकार बताने वाली याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है.
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कर्नाटक में हिजाब बनाम भगवा गमछा का विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. राज्य के उडुपी में एक कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर स्कूल में प्रवेश करने से रोकने का ये मामला अब कर्नाटक के कई हिस्सों में फैल गया है. दरअसल, इस मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के एक ट्वीट ने सोशल मीडिया पर ऐसे मामलों को हाथोंहाथ लेने वाले कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को एक्टिव कर दिया है. हिजाब बनाम भगवा गमछा विवाद में अब हर बदलते दिन के साथ नए-नए वीडियो सामने आ रहे हैं. हाल ही में एक वीडियो सामने आया है, जिसमें कुछ भगवा गमछे वाले छात्र एक हिजाब पहने हुए लड़के के सामने 'जय श्री राम' के नारे लगा रहे हैं. इसके जवाब में हिजाब वाली लड़की भी 'अल्लाह-हू-अकबर' का नारा लगाकर अपना विरोध दर्शा रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो हिजाब बनाम भगवा गमछे के इस विवाद से पूरे कर्नाटक में जबरदस्त हंगामा मचा हुआ है. फिलहाल इस मामले की सुनवाई कर्नाटक हाईकोर्ट में चल रही है. तो, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या संविधान में छात्राओं को हिजाब पहनने की स्वतंत्रता दी गई है? आइए जानते हैं कि हिजाब बनाम भगवा गमछा की इस जंग पर संविधान क्या कहता है?
इससे पहले भी कई मौकों पर लोगों ने हिजाब पहनने की स्वतंत्रता को लेकर अदालतों का रुख किया है.
क्या कहता है संविधान?
हिजाब बनाम भगवा गमछा के इस विवाद में संविधान की बात करना बहुत जरूरी हो जाता है. क्योंकि, हमारे देश में सभी फैसलों संविधान के हिसाब से ही लिए जाते हैं. संविधान का अनुच्छेद 25 (1) 'अंतरात्मा की स्वतंत्रता, धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के लिए स्वतंत्र रूप से अधिकार' की गारंटी देता है. यह एक ऐसा अधिकार है, जो नकारात्मक स्वतंत्रता की गारंटी देता है- जिसका अर्थ है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा न हो. हालांकि, सभी मौलिक अधिकारों की तरह राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य हितों के आधार पर अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो किसा को भी उसके धर्म से जुड़ी चीजों को मानने का पूरा हक है. लेकिन, अगर इसकी वजह से किसी तरह का माहौल बिगड़ने आदि की संभावना रहती है, तो राज्य को अधिकार है कि वह इस पर रोक लगा सकता है. गौरतलब है कि कर्नाटक सरकार ने 5 फरवरी को एक आदेश जारी कर कर्नाटक शिक्षा कानून 1983 के सेक्शन 133 (2) को लागू किया था. इसके अनुसार, सरकारी स्कल-कॉलेज के सभी स्टूडेंट एक समान ड्रेस कोड का पालन करेंगे. वहीं, निजी स्कूल का मैनेजमेंट अपनी पसंद के आधार पर ड्रेस को लेकर फैसला ले सकता है.
हिजाब पर क्या कह चुकी हैं अदालतें?
हिजाब पहनने का मुद्दा इससे पहले भी कई बार सुर्खियों में आ चुका है. कई मौकों पर लोगों ने हिजाब पहनने की स्वतंत्रता को लेकर अदालतों का रुख किया है. लेकिन, ये तमाम मामले हाईकोर्ट तक ही सीमित रहे हैं, तो इसे हिजाब पहनने को लेकर किया गया 'अंतिम फैसला' नहीं माना जा सकता है. क्योंकि, इसका अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास सुरक्षित है. वैसे, हिजाब विवाद मामले में केरल हाईकोर्ट के दो फैसलों का जिक्र करना जरूरी हो जाता है. जो हिजाब को लेकर परस्पर विरोधी फैसले कहे जा सकते हैं.
2016 में आमना बशीर बनाम सीबीएसई मामले में याचिकाकर्ता की ओर से सीबीएसई की ओर से तय किए गए ड्रेस कोड को चुनौती दी गई थी. केरल हाई कोर्ट में 2016 में आमना बशीर बनाम सीबीएसई के इस मामले में हिजाब पहनने को एक जरूरी धार्मिक प्रथा माना था. लेकिन, सीबीएसई के नियमों को रद्द नहीं किया था. हाईकोर्ट ने सीबीएसई के तर्क को स्वीकार किया था कि नियम अभ्यर्थियों को कपड़ों के भीतर वस्तुओं को छुपाकर अनुचित तरीकों का इस्तेमाल नहीं करने से रोकने के लिए था. हाईकोर्ट ने सीबीएसई को निर्देश दिया था कि हिजाब पहनकर परीक्षा देने वालों की अनुचित साधनों के लिए अतिरिक्त जांच के उपाय किए जाएं.
वहीं, फातिमा तनसीन बनाम केरल राज्य के मामले में केरल हाई कोर्ट की एक सिंगल बेंच ने एक प्राइवेट स्कूल को हिजाब के साथ छात्राओं को प्रवेश देने के लिए निर्देश देने से मना कर दिया था. हाईकोर्ट ने इस मामले पर कहा था कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर तरजीह दी जाएगी. दरअसल, ये स्कूल ईसाई समुदाय द्वारा चलाया जा रहा था.
हाईकोर्ट में मामला, तीन दिन के लिए स्कूल-कॉलेज बंद
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस मामले में फैसला लेते हुए तीन दिनों के लिए स्कूल-कॉलेजों को बंद करने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही बसवराज बोम्मई ने छात्रों, शिक्षकों और स्कूल-कॉलेज मैनेजमेंट से शांति बनाए रखने की अपील की है. दरअसल, हिजाब विवाद के मामले पर कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. बहुत हद तक संभव है कि कर्नाटक सरकार ने मामले की सुनवाई के मद्देनजर ही स्कूल-कॉलेज को तीन दिनों के लिए बंद रखने का फैसला लिया हो. क्योंकि, 8 फरवरी को हिजाब विवाद के मामले पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि 'हम तर्क और कानून से चलेंगे, न कि भावनाओं और जुनून से. देश के संविधान में जो व्यवस्था दी गई है, हम उसके मुताबिक चलेंगे. संविधान हमारे लिए भगवद्गीता की तरह है.' इस मामले की लगातार सुनवाई होनी है. तो, हिजाब विवाद पर जल्द ही निर्णय आने की संभावना जताई जा सकती है.
गौरतलब है कि इस मामले पर कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल ने हाईकोर्ट से कहा कि 'यूनिफॉर्म के बारे में फैसला लेने की स्वतंत्रता छात्रों को दी गई है. जो इसमें छूट चाहते हैं, उन्हें कॉलेज की डेवलपमेंट कमेटी के पास जाना चाहिए.' वहीं, हिजाब पहनने की मांग कर रही याचिकाकर्ता छात्राओं की ओर से पैरवी करते हुए वकील देवदत्त कामत ने कहा, 'पांच फरवरी 2022 को राज्य सरकार ने जो नोटिफिकेशन जारी किया है, वह तीन हाई कोर्ट के तीन फैसलों पर आधारित है. लेकिन, ये मामले हिजाब से जुड़े नहीं थे. पवित्र कुरान में हिजाब पहनने को आवश्यक धार्मिक परंपरा बताया गया है.' इसके लिए कामत ने कुरान की आयत का हवाला दिया है, जो कथित रूप से हिजाब को इस्लाम का अभिन्न अंग बताती है.
क्या कहती है कुरान की आयत?
छात्राओं की ओर से पैरवी कर रहे वकील देवदत्त कामत ने कुरान की दो आयतों का हवाला दिया है. कुरान की वर्स 24 की सूरा 31 और वर्स 24 की सूरा 33 का उल्लेख किया है. Quraninhindi.com के अनुसार, कुरान की वर्स 24 की सूरा 31 कहती है कि 'और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें. और अपने श्रृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है. और अपने सीनों (वक्षस्थलों) पर अपने दुपट्टे डाले रहें और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों. और स्त्रियां अपने पांव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए. ऐ ईमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो.'
वर्स 24 की सूरा 33 कहती है कि 'और जो विवाह का अवसर न पा रहे हों उन्हें चाहिए कि पाकदामनी अपनाए रहें, यहां तक कि अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर दे. और जिन लोगों पर तुम्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो उनमें से जो लोग लिखा-पढ़ी के इच्छुक हो उनसे लिखा-पढ़ी कर लो, यदि तुम्हें मालूम हो कि उनमें भलाई है. और उन्हें अल्लाह के माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है. और अपनी लौंडियों को सांसारिक जीवन-सामग्री की चाह में व्यविचार के लिए बाध्य न करो, जबकि वे पाकदामन रहना भी चाहती हों. औऱ इसके लिए जो कोई उन्हें बाध्य करेगा, तो निश्चय ही अल्लाह उनके बाध्य किए जाने के पश्चात अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है.'
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