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Updated: 24 फरवरी, 2022 10:41 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी चुनाव 2022 (UP Election 2022) में इस बार अब तक हुए हर चरण में मतदान प्रतिशत गिरा है. चौथे चरण में 9 जिलों की 59 सीटों पर हुए मतदान का आंकड़ा भी 61.65 फीसदी रहा. जो 2017 के मुकाबले करीब एक फीसदी कम है. चौथे चरण को भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा कहा जा रहा था. क्योंकि, शुरुआती दो चरणों के बाद भाजपा को एक बार फिर से चौथे चरण में किसान आंदोलन की तपिश और किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के आरोपों से घिरे आशीष मिश्रा की वजह से समीकरण बिगड़ने की संभावना जताई जा रही थी. किसान आंदोलन के प्रभाव वाले जिलों में हुई बंपर वोटिंग को सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है. वहीं, शहरी क्षेत्रों में भी पहले के चरणों की तरह ही मतदान प्रतिशत कम रहा है. माना जा रहा है कि इसका सीधा फायदा समाजवादी पार्टी को मिलने की संभावना है. हालांकि, इन इलाकों में बसपा और कांग्रेस ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी है. यूं तो सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. लेकिन, सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका फैसला 10 मार्च को आने वाले चुनावी नतीजे ही तय करेंगे. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या चौथे चरण में भाजपा को नुकसान हुआ है या बहुकोणीय मुकाबले ने एक बार फिर भाजपा की राह आसान कर दी है. आइए जानते हैं कि यूपी चुनाव 2022 के चौथे चरण का वोटिंग ट्रेंड क्या कहता है... 

UP Election 2022 Fourth Phase Voting Trendयूपी चुनाव 2022 के अब तक हुए हर चरण में वोटिंग प्रतिशत में करीब 1 फीसदी के आसपास की गिरावट दर्ज की गई है.

किसान बहुल इलाकों में बंपर वोटिंग क्या कहती है?

चुनाव आयोग की वोटर टर्नआउट एप के अनुसार, सबसे ज्यादा 67.16 फीसदी मतदान पीलीभीत में हुआ है. किसानों को गाड़ी से कुचलने के आरोपों से घिरे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के लखीमपुर खीरी जिले में 67.15 फीसदी मतदान दर्ज किया गया है. वहीं, सीतापुर जिले में 62.66 फीसदी लोगों ने वोट डाला है. पीलीभीत और लखीमपुर खीरी में पिछली बार भी तकरीबन 67 फीसदी मतदान ही हुआ था. इस स्थिति में ये कहना कि किसान आंदोलन और आशीष मिश्रा के मामले ने मतदान पर बहुत ज्यादा प्रभाव डाला है, कहीं से भी दिखाई नहीं पड़ता है. क्योंकि, सीतापुर में 2017 के चुनाव में 68.59 फीसदी मतदान हुआ था. लेकिन, यूपी चुनाव के चौथे चरण में इस बार सीतापुर में 62.66 फीसदी ही मतदान हुआ है. ये करीब 6 फीसदी की कमी है. इसी तरह हरदोई और उन्नाव में भी मतदान प्रतिशत गिरा है. वहीं, लखनऊ में पिछली बार के 58 फीसदी मतदान की तुलना में 60.05 फीसदी मतदान हुआ है. लखनऊ में सवर्ण जातियों का बोलबाला है. तो, बढ़ा मतदान प्रतिशत किसके खाते में गया इसका अंदाजा लगाना इतना आसान नहीं है.

कम मतदान किसको पहुंचाएगा फायदा?

चौथे चरण में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के 9 जिलों में 59 सीटों पर 61.52 फीसदी मतदान हुआ. जो 2017 के विधानसभा चुनाव में 62.55 फीसदी रहा था. वहीं, 2012 में इन 59 सीटों पर 61.55 फीसदी मतदान हुआ था. 2017 के चुनावी नतीजों की बात करें, तो भाजपा ने इन 59 सीटों में से 50 पर जीत दर्ज की थी. और, एक सीट उसकी सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के खाते में गई थी. वहीं, सपा को 4 और कांग्रेस-बसपा को 2-2 सीट मिली थीं. यूपी चुनाव 2022 में भाजपा और समाजवादी पार्टी को ही मुख्य प्रतिद्वंदियों के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन, इन सबसे इतर बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का पूरा फोकस भाजपा से नाराज मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में लगा हुआ है. ये सभी राजनीतिक दल भी अपने सियासी समीकरणों के साथ चुनावी मैदान में हैं. माना जाता है कि मतदान प्रतिशत बढ़ना हमेशा से ही विपक्षी दलों को फायदा पहुंचाता है. लेकिन, लोगों के सामने पश्चिम बंगाल का उदाहरण भी है. जहां मतदान बढ़ने का फायदा ममता बनर्जी को मिला था.

वहीं, यूपी चुनाव 2022 के चौथे चरण के वोटिंग ट्रेंड की बात की जाए, तो मतदान में एक फीसदी की गिरावट कोई बहुत बड़ा संकेत देती नजर नहीं आती है. क्योंकि, इस बार हर दल अलग-अलग होकर सियासी मैदान में हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का छोटे दलों के साथ गठबंधन मजबूत नजर आता है. लेकिन, कानून-व्यवस्था और अपराधियों को टिकट जैसे मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के पास कोई जवाब नही है. भाजपा के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर होने का दावा मतदान प्रतिशत में कुछ खास नजर नहीं आ रहा है. बहुत हद तक संभावना है कि भाजपा को उसकी कल्याणकारी योजनाओं का फायदा लेने वाले बड़े वर्ग का साथ अभी भी मिल रहा हो. क्योंकि, चुनावी मैदान में समाजवादी पार्टी के साथ बसपा और कांग्रेस की भी बराबर मौजूदगी है, तो इन पार्टियों के प्रदर्शन को नकारा नहीं जा सकता है. अगर कांग्रेस और बसपा अपने सियासी समीकरणों की वजह से अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो यह समाजवादी पार्टी के लिए ही नुकसानदायक माना जाएगा.

'मिनी पंजाब' में क्या बिगड़ गए भाजपा के समीकरण?

चौथे चरण के वोटिंग ट्रेंड को समझने के लिए अगर सीटवार बात की जाए, तो सामने आता है कि सिख समुदाय की अच्छी-खासी संख्या वाली लखीमपुर खीरी और पीलीभीत की कुछ सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा है. पीलीभीत की पूरनपुर विधानसभा में सबसे ज्यादा सिख है. और, यहां 66.50 फीसदी मतदान हुआ है. जो पिछली बार की तुलना में करीब आठ फीसदी ज्यादा रहा. लेकिन, यहां गौर करने वाली बात है कि सिख समुदाय तो पहले से ही मतदान को लेकर जागरुक रहा है. तो, इस बार किन लोगों की वजह से मतदान प्रतिशत बढ़ गया. पीलीभीत के भाजपा सांसद वरुण गांधी लंबे समय से बागी तेवर दिखा रहे हैं. क्या पीलीभीत की इस सीट पर मतदान प्रतिशत बढ़ने की वजह वही हैं? अगर ऐसा है, तो भाजपा के लिए यह एक बड़ी समस्या हो सकती है. हालांकि, भाजपा ने हर चरण में ध्रुवीकरण के साथ ही लॉ एंड ऑर्डर का सियासी दांव खेला है, जो मतदाताओं को उसके पक्ष में लामबंद करने के लिए काफी कहा जा सकता है.

ओबीसी और दलित वोटों की लड़ाई में हिस्सेदारी बढ़ी

यूपी चुनाव 2022 में ओबीसी और दलित मतदाताओं को ही निर्णायक माना जा रहा है. लेकिन, ओबीसी और दलित मतदाताओं का अब तक के हुए चार चरणों के मतदान में रुख एकतरफा समर्थन या विरोध वाला नहीं दिखाई दिया है. भाजपा ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं के जरिये जो वोटबैंक तैयार किया है, उसे हिलाने के लिए समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बसपा समेत अन्य राजनीतिक दल पूरी कोशिश कर रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो ओबीसी और दलित वोटों की लड़ाई में हिस्सेदारी बढ़ गई है. मुस्लिम मतदाताओं की बात करें, तो अभी तक के वोटिंग पैटर्न को देखते हुए यह मतदाता वर्ग समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा नजर आता है. लेकिन, हर सीट के अलग-अलग सियासी समीकरणों के चलते मुस्लिम वोटबैंक के बंटने की संभावना कहीं ज्यादा बढ़ जाती है. वैसे, चौथे चरण में भी मतदान में एक फीसदी की कमी का इशारा किसी बड़े बदलाव का संकेत नजर नहीं आता है. हालांकि, सभी दल अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. लेकिन, इसका फैसला 10 मार्च को ही होगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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