कोश्यारी के इस्तीफे से महाराष्ट्र में विपक्ष से ज्यादा खुश तो बीजेपी ही होगी
भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने महाराष्ट्र का राज भवन ही नहीं, अपने साथ विवादों की एक लंबी फेहरिस्त भी छोड़ी है - और जाते जाते विपक्ष (Opposition) को जश्न मनाने का मौका भी दे गये, लेकिन महाराष्ट्र बीजेपी (Maharashtra BJP) के नेता भी काफी राहत महसूस कर रहे होंगे.
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भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) का इस्तीफा अलग से चर्चा का विषय नहीं होता, अगर वो अपने पीछे विवादों का पुलिंदा नहीं छोड़े होते. जैसे देश के बाकी राज्यों में गवर्नर की नियुक्ति की खबर आयी है, महाराष्ट्र के राजभवन का मामला भी रूटीन का हिस्सा ही लगता - और महाराष्ट्र की जगह आंध्र प्रदेश का राजभवन सुर्खियों में सबसे ऊपर होता.
महीने भर पहले रिटायर हुए जस्टिस एस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है. अयोध्या मसले पर फैसला सुनाने वाली पीठ के ये दूसरे जज हैं जिनको ये सेवा से हटते ही बड़ा सरकारी सम्मान मिला है. जस्टिस नजीर से पहले देश के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस रंजन गोगोई को भी करीब करीब ऐसे ही राज्य सभा सांसद बनाया गया था.
अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ के अकेले मुस्लिम जज रहे, जस्टिस नजीर तीन तलाक को अवैध ठहराने और मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराने वाली खंडपीठ का भी हिस्सा रहे हैं.
भगत सिंह कोश्यारी की जगह झारखंड के राज्यपाल रहे रमेश बैस को महाराष्ट्र का गवर्नर बनाया गया है - और झारखंड में जिसे राज्यपाल बनाया गया है, उसकी अलग ही राजनीतिक अहमियत है. झारखंड के नये राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं. राज्यपाल बनाये जाने से पहले वो बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और केरल के प्रभारी रहे. वो कोयंबटूर से दो बार लोक सभा सांसद भी रह चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोक सभा क्षेत्र वाराणसी में हुए काशी-तमिल संगमम् के बाद तमिलनाडु को खास तवज्जो देने की ये भी एक कोशिश ही है.
2019 के महाराष्ट्र (Maharashtra BJP) विधानसभा चुनावों से ठीक जब भगत सिंह कोश्यारी को राज्यपाल बनाया गया तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस थे. चुनाव नतीजे आने के बाद शिवसेना के साथ बीजेपी का गठबंधन टूट जाने के बाद एक दिन अचानक सुबह सुबह खबर आयी कि देवेंद्र फडणवीस ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. फडणवीस के साथ एनसीपी से बगावत कर अजीत पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी, लेकिन ये सब ज्यादा नहीं चला - और शिवसेना से एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद ऐसी स्थिति आयी कि देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलानी पड़ी.
कुल जमा यही दो वाकये रहे जिसमें बीजेपी के मन की बात हुई थी. अव्वल तो अपनी तरफ से भगत सिंह कोश्यारी अपने पूरे कार्यकाल में पार्टी लाइन को ही तरजीह देते रहे. उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहते उनको राजधर्म की तरह हिंदुत्व की याद दिलाने वाला भगत सिंह कोश्यारी का पत्र भी खासा चर्चित रहा - लेकिन कोश्यारी के कई बयान ऐसे भी रहे जिसके बाद बीजेपी नेताओं की ही बोलती बंद हो जाती रही.
भगत सिंह कोश्यारी के महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफे का विपक्ष (Opposition) तो जश्न मना ही रहा है, महाराष्ट्र बीजेपी के नेता भी मन ही मन काफी राहत महसूस कर रहे होंगे - और यही उम्मीद कर रहे होंगे कि नये राज्यपाल रमेश बैस कम से कम ऐसी स्थिति तो नहीं ही पैदा होने देंगे कि बीजेपी को बचाव की मुद्रा में आने को मजबूर होना पड़े.
कोश्यारी का इस्तीफा
करीब साल भर से पूरा विपक्ष भगत सिंह कोश्यारी को हटाये जाने की मांग कर रहा था. और ये भी मान कर चल सकते हैं कि महाराष्ट्र बीजेपी के नेता इंतजार कर रहे थे. जाहिर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके साथी सीनियर मंत्री अमित शाह को भी तो सब पता ही होगा.
राजभवन का विवादों का केंद्र बन जाना परंपरा सी बन गयी है, लेकिन भगत सिंह कोश्यारी का कार्यकाल अलग तरीके से याद किया जाएगा.
भगत सिंह कोश्यारी के इस्तीफ के जीत करार देने वाले आदित्य ठाकरे ने हाल ही में महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की गठबंधन सरकार को नयी चुनौती दे रखी थी - अगर महाराष्ट्र सरकार में दम है तो बजट सेशन से पहले राज्यपाल बदल कर दिखाये. ये काम राज्य की सरकार या मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र के तो बाहर है, लेकिन आदित्य ठाकरे सरकार की तरफ से भी केंद्र की मोदी सरकार से ऐसी मांग करने के लिए चैलेंज कर रहे होंगे.
बहरहाल, महाराष्ट्र के बजट सत्र से पहले ही भगत सिंह कोश्यारी का महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफा मंजूर हो गया है. महाराष्ट्र में 9 मार्च को बजट पेश किया जाएगा, जबकि बजट सेशन 27 फरवरी से शुरू होकर 25 मार्च तक चलेगा.
शिवसेना (उद्धव-बालासाहेब) के नेता आदित्य ठाकरे ने एक बार भगत सिंह कोश्यारी को हटाये जाने को लेकर राज्यपाल के खिलाफ ट्विटर पर पोल भी कराया था - और पोल में राज्यपाल को हटाने को लेकर लोगों से तीन विकल्प देकर राय मांगी थी.
ट्विटर पोल में आदित्य ठाकरे की तरफ से मराठी में ऑप्शन दिये गये थे. सवाल था - क्या महाराष्ट्र के राज्यपाल को हटाया जाना चाहिये? और जवाब के लिए तीन विकल्प थे - 1. हां, 2. ऐसा करने में बहुत देर हो चुकी है, और 3. नहीं, मैं महाराष्ट्र विरोधी हूं.
महाराष्ट्रद्वेषी राज्यपालांना आपल्या देशाच्या राष्ट्रपती महोदयांनी पदमुक्त केले पाहिजे का?
— Aaditya Thackeray (@AUThackeray) November 21, 2022
बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जब जनवरी, 2023 में मुंबई दौरे पर गये थे तभी भगत सिंह कोश्यारी ने गुजारिश की थी कि वो सभी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं. इस्तीफा तो कोश्यारी ने तभी भेज दिया था, लेकिन करीब एक महीने रखा रहा - और आखिरकार जब एक साथ कई राज्यपालों की नियुक्ति हुई तो स्वीकार कर लिया गया.
अब अगर उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस कोश्यारी के इस्तीफे को अपनी मुहिम का असर मानते हों तो बहुत गलत भी नहीं कहे जा सकते, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे रूटीन वर्क के हिस्से के रूप में ही पेश किया है.
एक जोरदार चर्चा ये भी रही कि पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को बीजेपी में वेलकम नोट के रूप में महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया जा सकता है, लेकिन लगता है हिसाब किताब सही जगह नहीं बैठ सका.
शिवाजी से कोश्यारी को चिढ़ क्यों है?
उद्धव ठाकरे के निशाने पर तो भगत सिंह कोश्यारी फिल्म स्टार कंगना रनौत से राज भवन में मुलाकात के लिए भी रहे, लेकिन छत्रपति शिवाजी को लेकर उनकी टिप्पणियों ने कहीं ज्यादा ही बवाल कराया.
कंगना रनौत की पीओके वाली टिप्पणी ऐसी रही कि देवेंद्र फडणवीस और बाकी बीजेपी नेताओं के लिए रिएक्शन देना मुश्किल हो रहा था, लेकिन छत्रपति शिवाजी पर कोश्यारी की टिप्पणी ने तो जैसे बोलती ही बंद कर दी. हालांकि, देवेंद्र फडणवीस ने अपनी तरफ से कोश्यारी का बचाव भी किया था, लेकिन शिवाजी के मामले में वो दो दो बार विवादित टिप्पणी कर चुके थे - आखिर कोश्यारी को शिवाजी से किस बात को लेकर चिढ़ रही होगी?
शिवाजी विश्वविद्यालय के 59वें दीक्षांत समारोह में शिरकत करने कोल्हापुर पहुंचे भगत सिंह कोश्यारी ने तो अलग ही बवाल खड़ा कर दिया. कोश्यारी के बयान के खिलाफ उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना ने तो जेल भरो विरोध प्रदर्शन किया ही, एनसीपी और कांग्रेस की तरफ से भी जोरदार मुखालफत हुई थी. छत्रपति शिवाजी के अनुयायी तो अलग ही नाराजगी जताते रहे.
अब एक बार वो भी जान लीजिये जो भगत सिंह कोश्यारी ने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कहा था, "पहले जब हम स्कूल-कॉलेज में पढ़ते थे, तो हमसे पूछा जाता था... आपका पसंदीदा हीरो, पसंदीदा नेता कौन है? हम सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू और गांधीजी कहते थे... मुझे लगता है कि अगर कोई आपसे पूछे कि आपका आइकॉन कौन है? आपका पसंदीदा हीरो कौन है? तो महाराष्ट्र के बाहर जाने की जरूरत नहीं है... ये आपको महाराष्ट्र में मिल जाएंगे... शिवाजी उनमें से एक हैं, हालांकि, वो अब पुरानी पीढ़ी के हैं... तो बात करते हैं नई पीढ़ी की जो आपको यहां डॉक्टर अंबेडकर से लेकर डॉ. गडकरी यानी नितिन गडकरी जी तक मिलेंगे."
कोश्यारी के बयान पर शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले की भी काफी कड़ी प्रतिक्रिया आयी. भोसले ने राज्यपाल को हटाने की मांग की और ये भी चेतावनी दे डाली कि अगर उनकी मांग पर कोई फैसला नहीं हुआ तो वो अपने भविष्य की रणनीति तय करेंगे. उदयनराजे भोसले फिलहाल बीजेपी के राज्य सभा सांसद हैं. जाहिर है ये बात बीजेपी नेतृत्व तक को भी परेशान की होगी.
विवादित मुद्दों पर काफी नाप तौल कर बोलने या फिर चुप रह जाने वाले देवेंद्र फडणवीस को कोश्यारी के बचाव में आगे आना पड़ा था. फडणवीस ने ये समझाने की कोशिश की कि कोश्यारी की टिप्पणियों का अलग अलग अर्थ निकाला गया. देवेंद्र फडणवीस की तरफ से कहा गया, 'एक बात साफ है कि छत्रपति शिवाजी महाराज सूर्य और चंद्रमा के अस्तित्व तक महाराष्ट्र और हमारे देश के नायक और आइकॉन बने रहेंगे... यहां तक कि कोश्यारी के मन में भी इस बारे में कोई संदेह नहीं है.'
एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने आश्चर्य जताते हुए पूछा कि आखिर देवेंद्र फडणवीस छत्रपति शिवाजी के अपमान का बचाव कैसे कर सकते हैं? बोलीं, मैं फडणवीस जी से ज्यादा की उम्मीद कर रही थी... बीजेपी को मराठा राजा का नाम लेने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.
कोल्हापुर की तरह ही औरंगाबाद के एक कार्यक्रम में भी भगत सिंह कोश्यारी ने बयान देकर बवाल करा दिया था. कोश्यारी ने दावा किया कि छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु स्वामी समर्थ रामदास थे.
और फिर स्वामी समर्थ रामदास की चाणक्य से तुलना कर छत्रपति शिवाजी के महत्व को कम बताने लगे. कोश्यारी कह रहे थे, चाणक्य के बिना चंद्रगुप्त को कौन पूछेगा? और वैसे ही स्वामी समर्थ के बिना शिवाजी को कौन पूछेगा?
कोश्यारी के बयान पर सुप्रिया सुले ने बॉम्बे हाईकोर्ट के औरंगाबाद बेंच के एक आदेश की कॉपी भी ट्विटर पर शेयर करते हुए कोश्यारी के दावे को झुठला दिया था. हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया है कि शिवाजी महाराज और स्वामी समर्थ रामदास के बीच गुरु और शिष्य जैसा कोई रिश्ता नहीं था.
आखिर भगत सिंह कोश्यारी को छत्रपति शिवाजी से किस बात की चिढ़ रही होगी? अभी तो ये समझना मुश्किल है, हो सकता है कोश्यारी अपना कोई स्मृतिग्रंथ लिखें तो अपना पक्ष रखने की कोशिश करें. या फिर किसी इंटरव्यू में अपनी सफाई दें.
मुद्दा सिर्फ छत्रपति शिवाजी पर टिप्पणी का ही नहीं है, अंबेडकर की तुलना में बीजेपी नेता नितिन गडकरी को खड़ा कर देना भी काफी अजीब लगता है. अगर अंबेडकर की तुलना में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम लिये होते तो कम ही लोगों को आपत्ति होती - लेकिन नितिन गडकरी की किस उपलब्धि ने कोश्यारी को अंबेडकर की श्रेणी में खड़ा कर देने को मजबूर किया, समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है.
ये सोच भी तो बाल विवाह जैसी ही है
भगत सिंह कोश्यारी के विवादित बयानों की लिस्ट काफी लंबी है, लेकिन महाराष्ट्र के लोगों के बीच खड़े होकर गुजरातियों और राजस्थान के लोगों की तारीफ करने का औचित्य भी समझ में नहीं आया था.
उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहने के दौरान भगत सिंह कोश्यारी ने राज भवन की गरिमा से कुछ स्पेस चुरा कर कुछ निजी और कुछ नैतिक दायित्वों का निर्वहन तो किया ही, महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन होते ही ऐसा झटका दिया कि नये मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बोलना पड़ा कि राज्यपाल को ऐसे बयान से परहेज करना चाहिये - बाद में कोश्यारी को सॉरी भी बोलना पड़ा था.
अंधेरी में एक कार्यक्रम में भगत सिंह कोश्यारी ने अपने मन की बात शेयर करते हुए कहा था, 'अगर गुजराती और राजस्थानी लोगों को मुंबई और ठाणे से हटा दिया जाये तो मायानगरी में पैसा नहीं बचेगा.'
लेकिन सावित्रीबाई फुले के मामले में तो जैसे सारी हदें ही लांघ डाली थी. कोश्यारी ने पहले अपनी तरफ से जानकारी दी कि सावित्रीबाई फुले का जन्म 1833 में हुआ था. जब वो 10 साल की रहीं तभी उनकी शादी हो गयी, और तब उनके पति ज्योतिबा फुले की उम्र 13 साल थी - यहां तक तो कोई बात नहीं, आगे जो कहा वो राज्यपाल जैसे पद पर रहते हुए कोई कैसे कह सकता है, जिसके नाम से पहले महामहिम लगाये जाने की परंपरा है.
फुले दंपती की उम्र बताने के बाद भगत सिंह कोश्यारी का सवाल था, "अब आप सोचिये... इतने छोटे लड़के-लड़की शादी के बाद क्या करते होंगे?"
क्या बाल विवाह के बारे में समझाने का यही तरीका है. तरीका तो वो भी सही नहीं लगता जिस तरह से असम में नाबालिगों की शादी के बाद सरकारी फरमान पर पुलिस की कार्रवाई चल रही है - असम में जो कुछ हो रहा है, वो भी पुलिस एनकाउंटर से जरा भी अलग नहीं लगता.
जिस दुनिया में एक रेप पीड़ित को भी गर्भपात के लिए इजाजत लेनी पड़ती हो. गर्भ में पल रहे शिशु को मानवता के नाते कोर्ट की अनुमति न मिल पाने की सूरत में बच्चे को जन्म देने तक हमले का दर्द बर्दाश्त करना पड़ता हो - वहां अपनी मर्जी से शादी कर चुके लड़के-लड़कियों को जेल की हवा खानी पड़ रही है या फिर छिपना पड़ रहा है!
जन्म के समय बच्चे की मौतों की तादाद की दुहाई देकर भी सरकारी फरमान का नतीजा तो वैसा ही है. इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसी ही एक गर्भवती लड़की की पीड़ा को प्रकाशित किया है, जो जरूरत महसूस होने के बावजूद अस्पताल नहीं जा रही है, क्योंकि उसके घरवालों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा - ऊपर से उसे ये चिंता भी खाये जा रही है कि उसके बच्चे का क्या हाल होगा?
ये ठीक है कि बाल विवाह जैसी बुराइयों को रोकने की कोशिश होनी चाहिये, लेकिन जो शादियां हो चुकी हैं और जो लड़कियां मां बनने वाली हैं - क्या वे ऐसे ही ट्रीटमेंट की हकदार हैं जो असर सरकार की तरफ से फिलहाल मुहैया कराया जा रहा है?
लगता तो नहीं कि बाल विवाह को लेकर हिमंत बिस्वा सरमा के एक्शन और भगत सिंह कोश्यारी की टिप्पणी में कोई फर्क भी है?
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