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Updated: 18 फरवरी, 2022 11:31 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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यह दबा-छुपा नहीं है कि पंजाब में एक तबका है, जो अब भी भिंडरावाले के प्रति सहानुभूति रखता है. जो सिख अस्मिता की बात करते हुए दिल्ली को दुश्मन मानता है. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल पर ऐसे विचार वालों से तालमेल रखने का आरोप कोई नया नहीं है. हां, कुमार विश्वास ने तो केजरीवाल की सोच को शब्दश: बयां ही करने का दावा किया है. लेकिन, क्या ये केजरीवाल के लिए चिंता की बात है?

Kumar Vishwas Arvind Kejriwal कुमार विश्वास के बयान ने आम आदमी पार्टी को उस तबके के करीब ला दिया है जो अलगाववादी सोच रखता है.

कुमार विश्वास के बयान का केजरीवाल को पंजाब में कुछ हद तक फायदा ही है. उन्होंने आम आदमी पार्टी को उस तबके के करीब ला दिया है जो अलगाववादी सोच रखता है. हां, उन्हें देश के दूसरे हिस्से में नफरत का सामना करना पड़ेगा, लेकिन अभी कहीं और इसकी कीमत चुकाने डर उन्हें नहीं होगा. शायद इसी वजह से वे कुमार विश्वास की बात का तगड़ा विरोध नहीं कर रहे हैं. न ही उनकी पार्टी खुलकर ये कह रही है कि उसका खालिस्तानियों के साथ कोई संबंध नहीं है. कुमार विश्वास ने तो उन पर 'आतंकी' होने का आरोप नहीं लगाया है, लेकिन केजरीवाल ने खुद ये तमगा अपने साथ जोड़ लिया है. वे खुद को 'स्वीट आतंकी' कह रहे हैं. खुद को आतंकवादी कहकर वे उन पंजाब के उन किसानों से समर्थन की उम्मीद कर रहे होंगे, जिन्होंने पिछले दिनों किसान आंदोलन के चलते खालिस्तानी कनेक्शन का आरोप सुना. और, आतंकवादी भी कहे गए.

आम आदमी पार्टी को पंजाब के मालवा क्षेत्र में दलितों और गैर सिख बिरादरियों का तगड़ा समर्थन रहा है. वहीं, पिछले कुछ समय से केजरीवाल ने उत्तरी पंजाब के उस तबके में पैठ बनाई है, जो कांग्रेस और अकालियों की राजनीति में भारी मन के साथ हिस्सा लेता था. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल इस तबके के साथ संवाद तो बना रहे हैं, लेकिन यह आग से खेलने वाली राजनीति होगी. भले खालिस्तान समर्थित चिंगारियों पर सरकारें राख डालती रही हों, लेकिन अबब भी पंजाब के कई इलाकों में भिंडरावाले के समर्थन में पोस्टर लगाए जाते हैं.

वैसे, अरविंद केजरीवाल ही क्यों, पंजाब में कोई भी पार्टी अलगाववाद के खिलाफ लड़ने को मुद्दा नहीं बना रही है. कैप्टन अमरिंदर सिंह जरूर बॉर्डर स्टेट होने के कारण पाकिस्तानी खतरे की बात कर रहे हैं, लेकिन असली समस्या पर तो वे भी सीधे हाथ नहीं धर रहे. केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को लेकर जो आरोप कुमार विश्वास ने लगाए हैं, उसको दोनों तरह से देखा जा सकता है. एक तो यह कि केजरीवाल ने अलगाववादियों की तरफ से आंख मूंद ली है. और दूसरा यह कि बाकी पार्टियों की तरह वे भी इस तबके के साथ तालमेल बैठाना चाहते हैं.

सितंबर 2020 में कनाडाई थिंक टैंक मैकडॉनल्ड लॉरियर इंस्टीट्यूट ने एक पेपर पब्लिश किया था- 'खालिस्तान: एक प्रोजेक्ट ऑफ पाकिस्तान'. कनाडा के वरिष्ठ पत्रकार टेरी मिलेव्स्की ने इस पेपर में भारत और कनाडा को पुनर्जीवित होते खालिस्तान आंदोलन को लेकर चेताया है. ऐसे समय जब पंजाब में ये आंदोलन ठंडा पड़ा होता है तो पाकिस्तान कनाडा में मौजूद खालिस्तानी आतंकियों को सक्रिय होने में लगा रहता है.

भारत के खिलाफ पाकिस्तान की K2 (कश्मीर-खालिस्तान) नीति में पंजाब हमेशा से टारगेट पर रहा है. केजरीवाल पर लगाए गए कुमार विश्वास के आरोप कितने सही हैं, ये तो शायद ही साबित हो पाए. लेकिन केजरीवाल और बाकी पार्टियों के लिए संदेश इतना ही है कि यदि किसी ने भी अलगाववादियों की तरफ नरमी बरती, तो सूबे में हालात बिगड़ते देर नहीं लगेगी.

चुनाव जीतना राजनीतिक दलों की आवश्यक जिम्मेदारी है, लेकिन इसे निभाने में राष्ट्र की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जाना चाहिए. पूर्व में पंजाब और देश नेबड़ी कीमत चुकाई है. अब और नहीं.

लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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