अधर में लटकी लालू की राजनीति
फिलहाल लालू यादव जिस दौर से गुजर रहे हैं, अगर नितीश लालू को छोड़ फिर से बीजेपी का दामन थामते हैं तो यह लालू के राजनीतिक करियर में पूर्ण विराम न सही अल्प विराम जरूर साबित हो सकता है.
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लालू यादव चौतरफा घिर चुके हैं. एक तरफ जहां खुद लालू पर रेलमंत्री रहते हुए बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप में कई जगहों पर छापेमारी की गई, तो इसी मामले में आरजेडी सुप्रीमो के अलावा उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बिहार के उप मुख्यमंत्री और उनके बेटे तेजस्वी यादव के अलावा चार अन्य लोगों का भी नाम आया है. तो दूसरी तरफ इस छापेमारी के महज 24 घंटों के भीतर ही लालू की बेटी मीसा भारती के तीन ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ED)ने छापा मारा है. मीसा भारती पर यह कारवाई मनी लांड्रिंग के मामले में हुई है. कुल मिलाकर लालू यादव का पूरा परिवार इस समय केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर है.
शायद यहीं हैं लालू के बुरे दिन
हालांकि लालू यादव इस मामले को राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का मामला बता कर खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं, मगर वर्तमान परिस्थितियां बताती हैं कि लालू के लिए वर्तमान समय काफी मुश्किल है. लालू के लिए अब चुनौती बिहार में अपने महागठबंधन को बचाने को लेकर भी है, क्योंकि वर्तमान समय में नितीश कुमार का रूख भी साफ नहीं रहा है. हाल के दिनों में नितीश के कई फैसले इस बात के संकेत देते नजर आए हैं कि नितीश बीजेपी से अपने संबंधों को फिर से पटरी पे लाना चाहते हैं.
हालांकि लालू के मुद्दे पर अब तक नितीश ने चुप्पी साध रखी है, मगर अपनी छवि को लेकर खासे संजीदा रहने वाले नितीश इस मुद्दे पर ज्यादा दिन चुप्पी साधे रखेंगे इसकी उम्मीद कम ही है. नितीश के लिए लालू के सहयोग के बिना भी सरकार चलाने में कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि बीजेपी नितीश को समर्थन देने को कब से तैयार बैठी है. ऐसे में अगर नितीश लालू को छोड़ फिर से बीजेपी का दामन थामते हैं तो यह लालू के राजनीतिक करियर में पूर्ण विराम न सही अल्प विराम जरूर साबित हो सकता है.
इस मामले में नीतीश कुमार फिलहाल चुप हैं
वैसे यह पहली बार नहीं हुआ है जब लालू यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों, लालू पर पहले भी कई आरोप लग चुके हैं, मगर इन आरोपों का लालू की राजनीति पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला. आरोप लगने के बाद लालू कमजोर होने के बजाय और ज्यादा मजबूत होकर ही उभरे. मुख्यमंत्री रहते हुए चारा घोटाले मामले में जब लालू को जेल जाना पड़ा तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया और इसके बाद हुए चुनावों में भी बम्पर जीत हासिल की. राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनी रहीं और लालू केंद्र की राजनीति में आ गए. हालांकि बाद में इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2013 में लालू प्रसाद को 11 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिया था.
मगर सच्चाई ये है कि तब के लालू और अब के लालू में काफी अंतर आ गया है. लालू पहले जितने ताकतवर नेता अब नहीं रहे, लालू खुद सुप्रीम कोर्ट के बैन के कारण चुनाव मैदान में नहीं उतर सकते और उनके बेटों ने अब तक अपनी राजनीतिक जमीन नहीं बनाई है. लालू पर लगे वर्तमान आरोप लालू को और कमजोर कर सकते हैं, बिहार में ज्यादा सीट होने के बावजूद अब लालू बैकफुट पर हैं. लालू की हर संभाव कोशिश अब यही होगी कि वो किसी भी तरह से नितीश को अपने साथ रख सकें. क्योंकि ये नितीश कुमार ही थे जिन्होंने साल 2015 के चुनावों में लालू की डूबती नैया को किनारे तक ले आए थे, और फिर से लालू को अपनी दुकान बचाने के लिए उन्हीं की जरुरत होगी और अगर ऐसा नहीं होता है तो लालू के साथ उनके बच्चों का भी राजनीतिक जीवन अंधकारमय हो सकता है.
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