Bihar Election 2020 में आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी 'लालू प्रसाद के भरोसे' बेफिक्र
आरक्षण (Reservation) पर सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी के बाद लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) और कई अन्य नेताओं ने बिहार में चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश शुरू कर दी है, लेकिन बीजेपी (BJP) इस बार 2015 के मुकाबले कहीं ज्यादा सतर्क नजर आ रही है.
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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भी आरक्षण (Reservation) फिर से बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है. बीते चुनावों पर गौर करें तो ऐसा तीन दशकों से होता आ रहा है. 90 के दशक में मुख्यमंत्री बने लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) ने पूरे 15 साल तक चुनावों के अलावा बाकी दिनों में भी इसे खूब भुनाया.
पांच साल पहले भी 2015 के चुनाव में जैसे ही RSS प्रमुख मोहन भागवत का आरक्षण पर बयान आया, लालू ने फटाफट लपक लिया और आरक्षण खत्म कर दिये जाने को लेकर वैसे ही डराने लगे जैसे अभी नीतीश कुमार और बीजेपी (BJP) जंगलराज को लेकर अपने वोट बैंक को जागरुक करने की कोशिश कर रहे हैं.
संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान तो ऐन चुनावी माहौल के बीच में ही आया था, लेकिन इस बार ये तारीखें आने से पहले ही एंट्री मार चुका है - हालत ये है कि सारे दलित और ओबीसी नेता एकजुट हो गये हैं और बीजेपी सफाई पर सफाई दिये जा रही है.
बीजेपी पहले से ही सतर्क है
बिहार में आरक्षण को लेकर नयी बयार बहने लगी है, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से. हालांकि, उसका झोंका तमिलनाडु की राजनीति से आया है. तमिलनाडु की डीएमके, एआईडीएमके, सीपीआई-एम सहित तमाम पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका के जरिये मांग की थी कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी आरक्षण को 50 फीसदी कर दिया जाये. याचिका में अपील की गयी थी कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश दे कि वे तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, एससी एंड एसटी आरक्षण एक्ट, 1993 को लागू करें. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक लाइन की महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ याचिका खारिज कर दी - 'आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है.'
जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये जरूर माना कि तमिलनाडु में पिछड़े वर्ग के लोगों की भलाई के लिए सभी राजनीतिक दल एक साथ मिल कर आये हैं ये अप्रत्याशित है, लेकिन ये अदालत पहले ही कह चुकी है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. वैसे सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सलाह दी कि वे चाहें तो मद्रास हाई कोर्ट में ऐसी अपील कर सकते हैं और उसके बाद याचिका वापस ले ली गयी.
दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से जो बात निकली वो सीधे पटना पहुंच गयी - क्योंकि वहां तो पहले से ही चुनावी माहौल बन चुका है. आरक्षण का मुद्दा तो बिहार चुनाव का अभिन्न हिस्सा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद पटना और दिल्ली की राजनीति में दो तरह की हरकत देखने को मिली. एक, बीजेपी का फटाफट रिएक्शन और दो, दलित नेताओं का वैसे ही एक्टिव हो जाना जैसे वे 2018 में SC/ST एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद सक्रिय हुए थे. SC/ST एक्ट का मामला 2019 के चुनाव से करीब साल भर पहले आया था, ये कुछ महीने पहले आ चुका है.
पांच साल पहले आरक्षण के मुद्दे पर मात खा चुकी बीजेपी के लिए बगैर कोई वक्त गंवाये सीधे अध्यक्ष जेपी नड्डा सामने आये और कहा - 'मैं स्पष्ट करता हूं, भाजपा आरक्षण व्यवस्था के साथ है.'
जेपी नड्डा ने कहा कि बीजेपी आरक्षण का समर्थन करती है और मोदी सरकार वंचित तबके को आरक्षण की सुविधा देने के लिए कटिबद्ध है.
आरक्षण के मुद्दे पर रामविलास पासवान फिर से एक्टिव हो गये हैं - नीतीश कुमार के लिए या अपने लिए?
बीजेपी अध्यक्ष नड्डा बोले, 'समाज में कुछ लोग आरक्षण को लेकर भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं... सामाजिक न्याय के प्रति हमारी वचनबद्धता अटूट है...प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार बार इस संकल्प को दोहराया है... सामाजिक समरसता और सभी को समान अवसर हमारी प्राथमिकता है.'
पटना में जेडीयू नेता और नीतीश सरकार में मंत्री श्याम रजक इस मामले में सबसे पहले सक्रिय नजर आये. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, श्याम रजक ने SC/ST के 41 विधायकों को एकजुट कर लिया और आरक्षण को लेकर नयी डिमांड शुरू कर दी. आरक्षण को लेकर नीतीश कुमार ने भी राजनीति की कोई कच्ची गोली नहीं खेली है. त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली में अति पिछड़ों, अनुसूचित जातियों और महिलाओं को आरक्षण देकर नीतीश कुमार ने अपने लिए एक बड़ा वोट बैंक तैयार कर लिया है.
श्याम रजक ने जो डिमांड रखी है, वो है - आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में जोड़ा जाये, ताकि इसकी न्यायिक समीक्षा संभव न हो सके. श्याम रजक के इस अभियान में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान भी शामिल हो गये हैं.
लोक जनशक्ति पार्टी सभी राजनीतिक दलों से मांग करती है कि पहले भी आप सभी इस सामाजिक मुद्दे पर साथ देते रहे हैं, फिर से इकठ्ठा हों। बार बार आरक्षण पर उठने वाले विवाद को खत्म करने के लिए आरक्षण संबंधी सभी कानूनों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए मिलकर प्रयास करें 3/3
— Ram Vilas Paswan (@irvpaswan) June 12, 2020
अब इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि दलित राजनीति करने वाले राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति के पास अनुसूचित जाति से एक भी विधायक नहीं है. वैसे बिहार की 243 सीटों वाली मौजूदा विधानसभा में पासवान की पार्टी के दो विधायक हैं. श्याम रजक के अभियान से पासवान की पार्टी के दूर रहने की यही वजह भी रही. फिर पासवान ने बयान देकर हाजिरी लगायी और मुहिम से जुड़ गये. शुरू में इस मुहिम में आरजेडी के विधायक भी शामिल रहे, लेकिन बाद में मुद्दा तो वही रखा लेकिन वे अपना अलग मोर्चा बना चुके हैं.
जेडीयू से श्याम रजक और राम विलास पासवान के सक्रिय होने का मतलब है कि बीजेपी को आगे भी इस मामले में कोई कदम उठाना ही होगा. श्याम रजक और पासवान की मुहिम के जरिये ये समझाने की कोशिश हो रही है कि मनुवादी शक्तियां संवैधानिक संस्थाओं के जरिये आरक्षण को खत्म करने की साजिश रच रही हैं.
लालू के भरोसे बीजेपी
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सलाह दी थी कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिये. ये सुनते ही जमानत पर छूटे आरजेडी नेता लालू प्रसाद घूम घूम कर लोगों को समझाने लगे कि समीक्षा का मतलब आरक्षण खत्म ही समझो. लालू प्रसाद फिलहाल झारखंड की रांची जेल में चारा घोटाले में मिली सजा काट रहे हैं. जब तक तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री लोगों को समझाने की कोशिश करते लालू प्रसाद का दांव चल चुका था. करीब साल भर पहले ही 2014 के चुनाव में बिहार के लोगों ने समर्थन दिया था वो विधानसभा चुनाव में नहीं मिल सका.
लालू प्रसाद बिहार से दूर और जेल में जरूर बंद हैं, लेकिन चुनावी राजनीति में उनकी चर्चा के बगैर किसी भी मुद्दे का पहिया आगे बढ़ता नहीं दिखायी दे रहा है. न तो लालू प्रसाद की चर्चा के बगैर अमित शाह की रैली पूरी हो पाती है, न ही बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी के ट्वीट - सुशील मोदी ने तो 'लालूवाद' ही चला रखा है. अभी अभी नीतीश कुमार के वर्चुअल संवाद की पूर्णाहूति भी लालू विमर्श के साथ ही संभव हो सकी है.
आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी पर लालू प्रसाद की तरफ से ट्विटर पर टिप्पणी की गयी और एक हैशटैग का भी इस्तेमाल किया गया - #आरक्षण_मौलिक_अधिकार_है. इस मुद्दे पर पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा दो कदम आगे ही नजर आये.
संविधान निहित बुनियादी अधिकार ही नहीं रहेंगे तो फिर संविधान बचा ही कहाँ? कल को कोई भाजपाई कहेगा कि दलितों,आदिवासियों, पिछड़ों और वंचितो का मतदान का अधिकार भी मौलिक नहीं है। मौलिक तो सब मनुस्मृति में लिखा है वह है। तो देश कहाँ जाएगा? क्या इसका अंदाज़ा है? #आरक्षण_मौलिक_अधिकार_है
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) June 12, 2020
बिना योग्यता सिद्ध किये, पीढ़ियों की बपौती और राजनीतिक संरक्षण से न्याय की कुर्सी पर बैठे जज को देश की 90% शोषित, वंचित, दलित, आदिवासी व पिछड़ी आबादी को आरक्षण के विरुद्ध फैसला करने का कोई हक नहीं !#हल्ला_बोल_दरवाजा_खोल#कोलेजियम_सिस्टम_कलंक_है। https://t.co/DWIXh2VQiF
— Upendra Kushwaha (@UpendraRLSP) June 11, 2020
आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग को लेकर आरजेडी विधायकों के अलग होने की वजह भी साफ है. अगर वे श्याम रजक और रामविलास पासवान के साथ किसी मुहिम का हिस्सा बनेंगे तो उनको किस बात का क्रेडिट मिलेगा. लिहाजा वो अलग मोर्चा बनाकर उसी मुद्दे को अलग से उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
बीजेपी ने तात्कालिक तौर पर बयान तो दे दिया है, लेकिन सवाल है कि अगर चुनाव में आरक्षण बड़ा मुद्दा बन जाता है तो बीजेपी की क्या रणनीति होगी? मुद्दा ऐसा है कि बात बात पर लालू प्रसाद के शासन को जंगलराज की दुहाई देकर आक्रामक रहने वाली बीजेपी इस पर सिर्फ बचाव की मुद्रा में ही रहेगी. जब जब विपक्ष इसे उछालेगा, बीजेपी को सामने आकर सफाई देनी पड़ेगी कि वो आरक्षण का समर्थन करती है और न समीक्षा करने जा रही है, न ही आरक्षण खत्म होने वाला है.
अब अगर सवाल ये है कि आरक्षण के चुनावी मुद्दा बन जाने पर बीजेपी के पास काउंटर का क्या रास्ता होगा, तो जवाब है कि बीजेपी नेता अभी से मान कर चल रहे हैं कि 2020 के चुनाव में आरक्षण चाहे जितना बड़ा मुद्दा बन जाये, 2015 वाली बात कतई नहीं होगी.
मगर ऐसा क्यों - क्योंकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद पटना में नहीं बल्कि रांची जेल में हैं. मतलब, बीजेपी लालू के भरोसे ही आरक्षण के चुनावी मुद्दा बनने से नहीं घबरा रही है.
ये बात बीजेपी के ही एक सीनियर नेता ने द प्रिंट वेबसाइट से बातचीत में कही है. रिपोर्ट में बीजेपी नेता के साथ साथ कई एक्सपर्ट का भी मानना है कि तेजस्वी में वो बात नहीं है जो लालू प्रसाद में है - और यही बात बीजेपी के लिए राहत भरी है.
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