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Updated: 26 फरवरी, 2022 02:44 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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लालू प्रसाद यादव के बेटे और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के ट्विटर प्रोफाइल पर नजर डालेंगे, तो आपको एक ट्वीट सबसे ऊपर दिखेगा. जिसमें लिखा है कि 'अगर लालू जी भाजपा से हाथ मिला लेते तो वो आज हिंदुस्तान के राजा हरीशचंद्र होते. तथाकथित चारा घोटाला दो मिनट में भाईचारा घोटाला हो जाता अगर लालू जी का डीएनए बदल जाता.' वैसे तो ये ट्वीट 26 दिसंबर 2017 से तेजस्वी यादव की ट्विटर वॉल की शोभा बढ़ा रहा है. लेकिन, इन दिनों इसकी चर्चा जोरों पर है. क्योंकि, लालू प्रसाद यादव को बहुचर्चित चारा घोटाला (Fodder Scam) के डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी के मामले में फिर 5 साल की सजा सुनाई गई है. साथ ही 60 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. इस सजा के साथ चारा घोटाले के पांच मामलों में लालू यादव को अब तक साढ़े 32 साल की सजा सुनाई जा चुकी है. अदालत से दोषी ठहराए जाने के बाद लालू यादव ने इशारों-इशारों में भाजपा पर तंज कसा. 

वहीं, लालू प्रसाद यादव की सजा पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी भाजपा पर हमला किया. प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि 'भाजपा की राजनीति का ये अहम पहलू है कि जो भी उनके सामने झुकता नहीं है, उसको हर तरह से प्रताड़ित किया जाता है. लालू प्रसाद यादव जी पर इसी राजनीति के चलते हमला किया जा रहा है. मुझे आशा है कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार समेत पूरा विपक्ष चारा घोटाले के मामले में भाजपा पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर हमलावर है. लेकिन, लालू यादव पर चारा घोटाले में केस दर्ज कराने वाले आज आरजेडी में हैं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी कई बार उस नाम पर निशाना साधते रहते हैं. वहीं, जब चारा घोटाला में मामले दर्ज हुए थे, तब केंद्र में कांग्रेस सरकार थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो लालू यादव को सजा 'राजनीतिक' वजहों से नही मिली है.

क्या है चारा घोटाला?

दरअसल, बिहार के पशुपालन विभाग ने राज्य के विभिन्न कोषागारों से फर्जी बिलों के सहारे करोड़ों रूपयों की अवैध निकासी की थी. 1996 में पहली बार चारा घोटाला सबके सामने आया था. चारा घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ कुल 6 मामले दर्ज हुए थे. उस समय तक बिहार और झारखंड एक ही राज्य का हिस्सा हुआ करते थे. 2000 में झारखंड के अलग राज्य बनने पर चारा घोटाला के पांच मामले झारखंड और एक मामला बिहार के अंतर्गत आया. चारा घोटाले का पहला मामला चाईबासा कोषागार से 37.7 करोड़ की अवैध निकासी का था. दूसरा मामला देवघर कोषागार से 84.53 लाख रुपए की अवैध निकासी का था. तीसरा मामला भी चाईबासा कोषागार से 33.67 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का था. चारा घोटाला का चौथा मामला दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का था. पांचवा मामला डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी का था. शुरुआती जांच के बाद चारा घोटाले का मामला सीबीआई के पास चला गया था. जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को भी अभियुक्त बनाया गया था.

कांग्रेस सरकार में दर्ज हुआ था केस

लालू प्रसाद यादव और उनका परिवार भले ही चारा घोटाला के मामले में भाजपा और नरेंद्र मोदी से लेकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार को दोषी ठहराता हो. लेकिन, ये चौंकाने वाला तथ्य है कि लालू यादव के खिलाफ जब चारा घोटाले के मामले में कार्रवाई हुई, इस दौरान केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कांग्रेस के साथ अपने अच्छे रिश्तों की दुहाई देने वाले लालू प्रसाद यादव के खिलाफ कांग्रेस सरकार के दौरान ही चारा घोटाला में मामले दर्ज हुए थे. वहीं, पटना हाईकोर्ट द्वारा चारा घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाला की जांच को पटान हाईकोर्ट की देखरेख में ही किए जाने का निर्देश भी दिया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो चारा घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपने का आदेश कांग्रेस सरकार के दौरान ही हो गया था.

Lalu Prasad Yadav Fodder Scam1996 में सामने आए चारा घोटाले में लालू यादव के खिलाफ 6 मामले दर्ज हुए थे.

सरकार में सहयोगी रहे, लेकिन नहीं बचा सका ये समीकरण

1996 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस को केवल 140 सीटें मिली थीं. और, वह सरकार बनाने से वंचित हो गई. इस चुनाव में भाजपा 161 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभर कर सामने आई. लेकिन, अटल बिहारी वाजपेयी केवल 13 दिन के लिए ही प्रधानमंत्री रह सके. जिसके बाद जनता दल के नेता एचडी देवेगौड़ा ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन के साथ संयुक्त मोर्चा की गठबंधन सरकार बनाई. इस सरकार में लालू प्रसाद यादव भी शामिल थे. लेकिन, देवेगौड़ा की सरकार 18 महीने में गिर गई थी. जिसके बाद इंद्र कुमार गुजराल अगले प्रधानमंत्री बने. लेकिन, करीब एक साल में ही मध्यावधि चुनाव हो गए. दोनों ही सरकारों में लालू यादव सहयोगी के तौर पर शामिल थे. लेकिन, लालू यादव को ये समीकरण भी जेल जाने से नहीं बचा पाया. लालू यादव को चारा घोटाले की वजह से जुलाई, 1997 को बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. और, कुछ ही दिनों के अंदर ही वह जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो केंद्र सरकार को समर्थन का समीकरण भी लालू प्रसाद यादव को जेल जाने से नहीं बचा पाया था. वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जांच आगे बढ़ती रही. लेकिन, किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.

कांग्रेस सरकार में ही पहली बार सिद्ध हुए दोषी

2004 में कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार केंद्र की सत्ता में आई. जो 10 सालों तक रही. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव इस सरकार के बड़े सहयोगियों में से एक थे. और, रेल मंत्री के पद पर रहते हुए आईआईएम में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर छात्रों को प्रबंधन यानी मैनेजमेंट पर ज्ञान भी देने के लिए खूब सुर्खियों में रहे थे. लेकिन, इसके एक साल बाद ही 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी सत्ता से बाहर हो गई. वहीं, 2009 में लालू प्रसाद यादव की आरजेडी को केवल 4 लोकसभा सीटों पर ही जीत मिली. जिसके चलते केंद्र की यूपीए सरकार में लालू यादव को मंत्री पद नहीं मिल सका. वहीं, 2014 के आम चुनाव से पहले केंद्र की कांग्रेस सरकार पर तमाम घोटालों के आरोप लगना शुरू हो गए. उसकी स्थिति ठीक वैसी ही हो गई, जैसी 1996 में पीवी नरसिम्हा राव के शासनकाल के दौरान हुई थी. दरअसल, 1996 के आम चुनाव से पहले हुए घोटालों का खूब बोलबाला रहा. उस दौरान प्रतिभूति घोटाला से लेकर हवाला कांड जैसे आरोपों से घिरी कांग्रेस के लिए खुद को बचाना मुश्किल हो गया था.

वहीं, कोयला घोटाला, 2जी, कॉमनवेल्थ जैसी घोटालों से घिरी कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान 3 अक्टूबर 2013 को लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में पहली बार दोषी ठहराए गए थे. चाईबासा कोषागार से अवैध धन निकासी के मामले में सीबीआई के तत्कालीन जज पीके सिंह ने लालू प्रसाद यादव को पांच साल की कैद और 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी. वैसे, आज कांग्रेस जिस तरह से सीबीआई के दुरुपयोग की बात करती है. अगर इसी को आधार मान लिया जाए, तो यही नजर आता है कि लालू यादव की राजनीति को खत्म करने के लिए कांग्रेस ने ये जाल बुना था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो लालू यादव को पहली बार सजा कांग्रेस के शासनकाल में सुनाई गई थी. नाकि, भाजपा की सरकार के दौरान.

लालू यादव पर आरोप लगाने वाले अब आरजेडी के नेता

चारा घोटाले की एक अहम कड़ी आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी से जुड़ती है. लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाला में सीबीआई जांच के लिए संस्तुति करने वालों में शिवानंद तिवारी भी थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो लालू यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वाले आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी थे. जो अब आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने हुए हैं. लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला के पांच मामलों में अब तक सजा हो चुकी है. और, हर बार शिवानंद तिवारी भाजपा और जेडीयू के निशाने पर आ जाते हैं. हालांकि, शिवानंद तिवारी इस बात से इनकार नहीं करते हैं. लेकिन, वह ये कहते हैं कि उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीस के कहने पर याचिका दायर की थी. वहीं, भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि चारा घोटाला में मुकदमा दायर करने वाले शिवानंद तिवारी, वृषिण पटेल, प्रेमचंद मिश्रा जैसे लोग बाद में लालू प्रसाद से मिल गए थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो लालू यादव को चारा घोटाला में फंसाने वाले उनके ही करीबी थे.

भाजपा और पीएम मोदी पर निशाना साधना लालू की मजबूरी

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि लालू यादव को चारा घोटाला में मामला दर्ज होने और पहली बार सजा होने के दौरान केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी. इसके बावजूद लालू प्रसाद यादव से लेकर उनके बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव समेत आरजेडी नेताओं की फौज इस तथ्य को नकारते हुए भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही हमलावर नजर आते हैं. दरअसल, इस मामले में सीधे कांग्रेस पर निशाना साधने से बिहार में लालू यादव और आरजेडी की राजनीति पर खतरा पैदा होने की संभावना है. क्योंकि, इससे भविष्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे. वहीं, भाजपा और पीएम मोदी का विरोध कर लालू यादव खुद को एक सेकुलर नेता के तौर पर आगे रख सकते हैं. भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी का तमगा बांटने वालों में लालू यादव का भी नाम शामिल है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो लालू यादव के लिए अपने राजनीति को बचाए रखने की चुनौती है, जो सिर्फ भाजपा और पीएम मोदी के विरोध से ही पूरी हो सकती है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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