मैं भूल नहीं सकता अपना गांव, घर और गरीबी
हमारा, राबड़ी देवी और बच्चे लोगों का मुख्यमंत्री आवास में मन नहीं लगता था, यहीं बाहर कॉलोनी के कच्चे रास्ते पर कुर्सी बिछा के सरकारी कामकाज देखता था.
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बचपन में बडे भाई जो पटना वैटनरी कॉलेज में चपरासी थे, मुझे गाँव से पटना लाये थे. मैं शुरू से ही यहाँ रहा. 1977 में 29 साल की उम्र में देश का सबसे युवा सांसद बना, 1974 से लेकर 1990 तक लोकसभा सदस्य, विधानसभा सदस्य, विधानपरिषद सदस्य, पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ अध्यक्ष और बिहार विधानसभा के विपक्ष का नेता भी बना, पर कभी भी सरकारी आवास न लिया तब भी इसी झोपड़ी में रहा, पहले ये झोपड़ी था, यहाँ तक 1990 में मुख्यमंत्री बनने के सात महीने तक यही रहा, हाँ मुख्यमंत्री बनने के बाद झोपड़ी की छत पर घास-फूस की जगह सीमेंट की चादरों ने ले ली थी.
पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू ने इसी कमरे को अपना कार्यालय बनाया था |
हमारा, राबड़ी देवी और बच्चे लोगों का मुख्यमंत्री आवास में मन नहीं लगता था, यहीं बाहर कॉलोनी के कच्चे रास्ते पर कुर्सी बिछा के सरकारी कामकाज देखता था. मेरी यहीं रहने की ज़िद को देखते हुए प्रशासन ने सरकारी कार्यों के लिए इसके सामने एक हॉल का निर्माण करवाया जिसमें सभी गरीब-गुरबों का सीधा प्रवेश था. बिहार सरकार के उच्च अफसर यहाँ आने से कतराते थे क्योंकि यह एक निम्न वर्ग के कर्मचारियों का एक निम्न स्तर का रिहायशी इलाका था पर उनका आना मज़बूरी थी, बाद में स्थानीय लोगों को परेशानी होने लगी, बार-बार सहयोगियों, मंत्रिमंडल के सदस्यों और अफसरों के निवेदन के बाद हम मुख्यमंत्री आवास में रहने लगे पर यहाँ के लोगों को और परवरिश को कभी नहीं भूले. आज भी मैं उन गरीबी के दिनों को याद करके अपने आप को गरीब के पास पाता हूँ और गरीब को अपने पास.
हम चाहे जहाँ रहे जैसे रहे हमें अपना मुश्किल दौर और विगत समय नहीं भूलना चाहिए, ये हमें दूसरों के लिए जीने और त्याग करने की प्रेरणा देने के साथ साथ ज़मीन से जोड़े रखता है.
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