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Updated: 27 अक्टूबर, 2021 11:11 PM
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जेल से छूटने और दिल्ली में कुछ विश्राम के बाद लालू यादव (Lalu Yadav) अब बिहार के चुनाव मैदान में जा डटे हैं - लालू यादव को मिस तो 2019 के आाम चुनाव और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी नहीं किया गया था - बेटे तेजस्वी यादव से ज्यादा तो लालू यादव की वर्चुअल मौजूदगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी मिल कर दर्ज कराते रहे. यहां तक कि तेजस्वी यादव को 'जंगलराज का युवराज' बताकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टारगेट तो लालू यादव को ही कर रहे थे.

महागठबंधन की तरह से मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे तेजस्वी यादव भी चुनावी रैलियों में एक बात बार बार दोहराते रहे - '9 नवंबर (2020) को लालू जी की रिहाई हो रही है... उसी दिन मेरा जन्मदिन भी है - और 10 तारीख को नीतीश जी की विदाई है.'

तब न तो लालू यादव की रिहाई हो पायी और न ही ऐसे चुनाव नतीजे ही आ सके कि तेजस्वी यादव की नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की विदाई वाली बात सच हो सके - चुनाव में बीजेपी के जेडीयू के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन से खतरा तो नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने पर भी मंडरा रहा था, लेकिन बीजेपी ने जो कहा था, वो ही किया भी.

30 अक्टूबर को होने जा रहे उपचुनावों (Bihar Bypoll) को लेकर लालू यादव की ताजा बातों में वैसी ही गूंज सुनाई दे रही है जैसे तेजस्वी यादव तब लालू की लिखी स्क्रिप्ट ही पढ़ते रहे हों - क्योंकि अभी लालू यादव दावा कर रहे हैं, '...तेजस्वी यादव सभी जगह घूम ही रहे हैं... उखाड़ के वो ही फेंक चुके हैं, उनको... बाकी जो बचा है उसका हम विसर्जन कर देंगे - हमारी पार्टी भारी मतों से जीतेगी.'

कुशेश्वर स्थान और तारापुर में चुनावी जनसभा को संबोधित करने के बाद जब नीतीश कुमार पटना एयरपोर्ट पहुंचे तो मीडिया ने लालू यादव के बयान पर रिएक्शन जानना चाहा तो बोले, 'मुझे गोली मरवा दें... सबसे अच्छा यही होगा... बाकी वो कुछ नहीं कर सकते.'

अब नीतीश कुमार के रिएक्शन को लालू यादव अलग से टारगेट करने लगे हैं, ऐसे में ये समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि चुनावों के दौरान बिहार में लालू यादव की मौजूदगी और गैरमौजूदगी कितना फर्क डाल पाती है?

बिहार में लालू की मौजूदगी के मायने

नीतीश कुमार के 'गोली मरवाने' वाले बयान को भी लालू यादव ने वैसे ही ट्विस्ट कर प्रोजेक्ट करने की कोशिश की है जैसे पहले के चुनावों में करते रहे हैं. लालू यादव लोगों से ही पूछ रहे हैं कि क्या वो ऐसे ही हैं, 'नीतीश कह रहे हैं कि लालू जान से मरवा देगा - लालू का यही काम है क्या? हम क्यों मरवाएंगे वो खुद ही मर जाएंगे - नीतीश डर गये हैं.'

लालू यादव की ही तरह नीतीश कुमार भी अपने रेडीमेड आरोपों के साथ चुनाव मैदान में पहुंच जाते हैं और लालू यादव और राबड़ी देवी को वैसे ही टारगेट करते हैं जैसे विधानसभा चुनाव के वक्त करते रहे. लालू-राबड़ी का नाम तो नहीं लेते लेकिन सवाल वही पुराना वाला ही दोहराते हैं - 'पति-पत्नी ने क्या किया?'

विधानसभा चुनाव के दौरान तो नीतीश कुमार निजी हमले तक करने लगे थे. लालू यादव के परिवार और बच्चों की संख्या तक गिनाने लगे थे. ऐसे समझाते रहे कि विकास के नाम पर पति-पत्नी ने जो किया वो परिवार के लिए ही तो किया - परिवार को ही बढ़ाया. बेटे की चाह में नौ बच्चे तक पैदा कर डाले.

lalu yadav2020 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव पिता के नाम पर ही लड़े थे, लेकिन अब लालू यादव खुद चुनाव प्रचार कर रहे हैं - क्या कुछ अलग नतीजों की उम्मीद की जा सकती है?

चुनाव बाद जब विधानसभा चलने लगी तो तेजस्वी यादव ने निजी हमले का मुद्दा उठाया. असल में चुनावों के दौरान तेजस्वी यादव को ज्यादातर वक्त सोच समझ कर बोलते देखा गया था. कई बार बीजेपी और नीतीश कुमार की तरफ से उकसाने की कोशिश हुई तब भी तेजस्वी यादव खामोशी के साथ नजरअंदाज करते रहे.

और जब तेजस्वी यादव ने विधानसभा में नीतीश कुमार के चुनावी बयानों का जिक्र कर कड़ा ऐतराज जताया तो वो भी गुस्से में लाल पीले होने लगे. बहस के दौरान नीतीश कुमार ने कहा था, 'ये बकवास बोल रहा है... ये झूठ बोल रहा है - मेरे भाई समान दोस्त का बेटा है इसलिए सुनते रहते है, हम नहीं कुछ बोलते.'

लेकिन जब चुनाव हो रहे हों तो भाई और भाई जैसे दोस्त भी जानी दुश्मन बन जाते हैं. फिलहाल नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों की अपने हिसाब से छवि गढ़ने लगे हैं - हालांकि, कभी कभी ऐसा लगता है जैसे 2020 के चुनाव नतीजों को जिक्र कर नीतीश कुमार के मुकाबले लालू यादव ज्यादा हमलावर हो जाते हैं.

नीतीश कुमार ये तो मानते हैं कि 'सबको चुनाव प्रचार में जाने का हक है, जायें. हमको इसमें क्या करना है,' लेकिन फिर चुनाव तेवर सवार होते ही लालू-राबड़ी शासन के कारनामे गिनाने लगे हैं. कहते हैं, 'कुछ लोग जेल के अंदर से भी लोगों को फोन करते रहते हैं. ऐसे लोगों पर कुछ नहीं कहना है. ऐसे लोग जवाब दें कि उन्होंने अपने 15 वर्षों के शासनकाल में क्या किया?'

नीतीश कुमार ये भी समझाते हैं, 'हम पर बोलेंगे तभी उनको पब्लिसिटी मिलेगी... हम पर नहीं बोलेंगे तो उन्हें क्या पब्लिसिटी मिलेगी... हम लोगों को इसकी कोई चिंता नहीं है... जनता की जो भी इच्छा हो - वही मालिक है.'

लालू यादव की बातों से लगता है कि वो मानते हैं कि अगर वो 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी जेल से बाहर होते तो नतीजे अलग हो सकते थे. चारा घोटाले में रांची जेल में सजा काट रहे लालू यादव जमानत पर रिहा होने के बाद जब दिल्ली पहुंचे, तभी से नीतीश कुमार की चर्चा होने पर एक बात करते रहे हैं, 'हरवा दिया' - और अब उपचुनावों के लिए प्रचार के दौरान भी लोगों को ये याद दिलाना नहीं भूलते.

लालू यादव लोगों के बीच पहुंचते ही नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक होने के साथ ही ये जरूर बताते हैं कि अब वो अपने लोगों के बीच लौट आये हैं और सब ठीक कर देंगे. कहते हैं, 'तेजस्वी ने विरोधियों का बुखार छुड़ा दिया है - और हम अब आ गये हैं.'

फिर लोगों को समझाते हैं - "तेजस्वी को आपने जिताया... बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया था, लेकिन नीतीश कुमार ने आठ सीट पर बेइमानी कर हमारे प्रत्याशी को हरा दिया. मैं जेल में था - बाहर रहता तो नीतीश हिम्मत नहीं कर पाते.'

जेल से बाहर आने के बाद दिल्ली में विपक्षी खेमे की राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं और जातीय जनगणना को लेकर चल रही मुहिम में भी अगुवाई ही करते नजर आते हैं, लेकिन उपचुनाव के लिए वोटिंग से पहले कांग्रेस के बिहार प्रभारी को लेकर बयान देकर विवादों में भी आ चुके हैं - और बिहार के विपक्षी नेता ही लालू यादव को दलित विरोधी के तौर पर पेश करने लगे हैं जो लालू यादव के खिलाफ माहौल बनाने लगा है.

क्या दो सीटों के नतीजे कोई असर डाल पाएंगे?

लालू यादव ये तो बार बार बता ही रहे हैं कि वो बाहर आ गये हैं, लेकिन उपचुनाव के नतीजों को लेकर जो दावे कर रहे हैं वो भी नजरअंदाज करने लायक नहीं लगतीं, बशर्ते नतीजे नीतीश कुमार के खिलाफ आते हैं.

लालू यादव का दावा है कि चुनाव नतीजे आने के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और सरकार में उसके सहयोगी दलों में भगदड़ मचने वाली है. ये उपचुनाव, दरअसल, जेडीयू के ही दो विधायकों की मौत के चलते कराये जा रहे हैं. लालू यादव ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं अगर आरजेडी ये दोनों सीटें जीत लेती है तो सरकार बनाने की स्थिति में हो जाएगी. जिन सहयोगियों की बात लालू यादव कर रहे हैं वे हैं - जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी. दोनों ही दलों के पास चार-चार विधायक हैं और वे सरकार में शामिल होकर सपोर्ट कर रहे हैं.

यूपी के चुनावी माहौल में जैसे देश भर के कई राजनीतिक दल हाथ पैर मार रहे हैं, विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी की भी कोशिशें जारी हैं. हाल ही में यूपी के मिर्जापुर की एक रैली में मुकेश सहनी एक दावा करके सभी का ध्यान भी खींचा है. यूपी के चुनावी माहौल में एक रैली कर मुकेश सहनी ने सीधे सीधे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धमकी दे डाली.

मुकेश सहनी कह रहे हैं, 'हमारी पार्टी ने समर्थन दिया तो बिहार में मुख्यमंत्री बना... बिहार में चार सीट वाला अपना पावर खींच लेगा तो सरकार गिर जाएगी' - और लगे हाथ ये दावा भी करते हैं, '2025 में निषाद का बेटा बिहार का सीएम बनेगा.' मुकेश सहनी खुद को सन ऑफ मल्लाह कह कर प्रचारित भी करते हैं.

2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार तारापुर में 7,500 वोटों से हार गया था. कांग्रेस से रिश्ते खत्म करने का जोखिम लेते हुए आरजेडी ने दोनों सीटों पर जातीय समीकरणों के नफे-नुकसान का पूर्वाकलन कर टिकट दिया है. मसलन, तारापुर सीट पर जेडीयू के राजीव कुमार की तरह की ही तरह आरजेडी ने भी एक ओबीसी उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. आरजेडी उम्मीदवार ओबीसी होने के साथ साथ बनिया समुदाय से आते हैं. रणनीति ये है कि बनिया होने के नाते अरुण कुमार साह एनडीए के वोट बैंक में सेंध तो लगाएंगे ही, आरजेडी के मुस्लिम-यादव वोट जीत का रास्ता साफ और फिर सुनिश्चित करेंगे. कांग्रेस ने ब्राह्मण राजेश मिश्रा और एलजेपी (राम विलास) ने एक राजपूत चंदन सिंह को टिकट दिया है.

अमूमन विपक्षी खेमा भी यही मान कर चलता है कि उपचुनावों के नतीजे तो सत्ता पक्ष के ही फेवर में रहेंगे. बीएसपी नेता मायावती तो पहले तो अगर सत्ता से बाहर होतीं, उपचुनावों से भी दूरी बना लेती रहीं, लेकिन कई बार अपवाद भी देखने को मिलते हैं. फिर भी लालू यादव ये सोच कर मेहनत कर रहे हैं कि वो नतीजे बदल भी सकते हैं. हालांकि, एक चीज वो भूल रहे हैं कि मैदान में कांग्रेस भी है, जीत हार की बात और है लेकिन वोटों का कट जाना भी तो मायने रखता है.

कांग्रेस के साथ उपचुनावों में उम्मीदवार उतारने को लेकर जो विवाद हुआ है, उसमें लालू यादव भी अपने एक बयान के चलते निशाने पर आ गये हैं - कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास को 'भकचोन्हर' बता कर. रिएक्शन ये हुआ है कि कांग्रेस नेता मीरा कुमार तो लालू यादव के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराने की मांग कर चुकी हैं. जेडीयू नेता और नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने भी लालू यादव के बयान को दलित विरोधी बताया है.

भक्तचरण दास के कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होने की घोषणा और कन्हैया कुमार के बिहार पहुंच कर लालू परिवार को टारगेट करने के बीच लालू यादव और सोनिया गांधी की फोन पर बातचीत हुई है - जाहिर है विवाद को रफा दफा करने के प्रयास हुए होंगे. अब तक आरजेडी नेता जहां कांग्रेस को उसकी हैसियत बताते रहे, लालू यादव कहने लगे हैं कि देश में भी कांग्रेस ही विपक्ष की अगुवाई कर सके, सिर्फ बिहार की कौन कहे.

मुकेश सहनी के यूपी जाकर किये गये दावे और लालू यादव के एक्शन में आने के बाद एक थ्योरी चलने लगी है कि अगर दोनों सीटें सत्ताधारी जेडीयू गंवा दे तो सत्ता का खेल बदल भी सकता है. बिहार में नीतीश कुमार सरकार के पास बहुमत से चार ही ज्यादा विधायक हैं - और किसी कारण वश छोटे छोटे दोनों सहयोगियों की नाखुशी भी नीतीश कुमार को बहुत भारी पड़ सकती है. जीतनराम मांझी तो अभी नीतीश कुमार के ही गुण गा रहे हैं, लेकिन मुकेश सहनी निषाद वोटों के बीच पैठ बनाने को लेकर ही सही खुल कर तो बोलने ही लगे हैं - लालू यादव की नजर वहीं टिकी है.

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