कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में आखिर चल क्या रहा है?
गांधी परिवार किसी भी सूरत में पार्टी पर कब्जा नहीं छोड़ना चाहता है. परिस्थितियां प्रतिकूल होने लगी तो राहुल गांधी चुना हुआ अध्यक्ष बनने को तैयार हो सकते हैं. और अगर वो नहीं मानें तो प्रियंका गांधी को आगे कर सबको चुप कराया जा सकता है. दरअसल कांग्रेस के संविधान के अनुसार अध्यक्ष के चुनाव से पहले पार्टी के संगठनात्मक चुनाव पूरे हो जाने चाहिए.
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ठीक तीन साल पहले 2019 के इन्हीं सितंबर के दिनों की बात थी. रात के 11.30 हो रहे थे. बस सोने की तैयारी कर रहे थे कि फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी और महत्वपूर्ण जिम्मा संभालने वाले एक व्यक्ति थे. कहा कि साहब राजस्थान के मुख्यमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे. चला दो. चला दो, पर मैं चौंका.सोचा इतनी बड़ी खबर ऐसे कैसे चला दें. मगर उनका कहना था कि खबर कंफर्म है चला दो. उस वक्त मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से फोन पर अक्सर बातें हो जाया करती थी तो हमने फोन लगा लिया मगर उन्होंने उठाया नहीं . हमने खबर चला दी. आजतक पर खबर रात 12 बजे ब्रेकिंग के साथ चली और मैं फोन पर ज्यादा जानकारी देने के लिए जुटा. इतने में मुख्यमंत्री जी का फोन वापस आया. मैंने कहा बधाई हो आप दोनों पदों कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद और मुख्यमंत्री का पद संभालने जा रहे हैं. उन्होंने कहा तुम्हें किसने कहा. नहीं..नहीं.. ऐसी तो कोई बात नहीं. अब मैं किसका नाम लेता और क्या कहता. इसलिए कहा कि सर दिल्ली से पता चला है और मैंने तो चलवा दिया. मुख्यमंत्री जी ने आजतक की ब्रेकिंग देखकर ही वापस फोन किया था. उन्होने कहा रूकवा दो. मैंने दिल्ली फोन कर खबर रूकवा दी.
तमाम राजनीतिक पंडितों के बीच कयास इस बात को भी लेकर हैं कि अशोक गहलोत ही कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे
यह वो वक्त था जब 2019 के लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था और सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्षा के तौर पर विधिवत काम नहीं कर रही थी. राहुल गांधी दुबारा अध्यक्ष बन भी नहीं पा रहे थे. राजस्थान में 25 की 25 लोकसभा सीटें हारने के बाद तबके उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनाने की बात चल रही थी. इस बात के तीन साल गुजर गए मगर जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव फिर से होने जा रहा था और सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को अकेले मिलने के लिए बुलाया तो मुझे फिर से वो घटना याद आई.
शाम को जब हमारी साथी मौसमी सिंह मुख्यमंत्री गहलोत का इंटरव्यू लेने जा रही थीं तो हमने कहा कि गहलोत से उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का सवाल जरूर पूछना और फिर जिस तरीके से उन्होने सवाल पूछा और गहलोत ने जवाब दिया यह बात आम हो गई कि सोनिया गांघी का राहुल गांधी के बाद दूसरी पसंद अशोक गहलोत हैं. सलमान खुर्शीद जैसे नेता अगर चौंके हैं तो आपको अजीब लग रहा है मगर मुझे नहीं.
इसलिए कि जब आजतक के सलाना कार्यक्रम आजतक ऐजेंडा में सलमान खुर्शीद से मिलने का मौका मिला और खाने की टेबल पर बात करते हुए हमने अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की संभावनाओं पर सवाल पूछा तो सलमान खुर्शीद ने आउट राईट रिजेक्शन की भाव-भंगीमा में कहा नहीं- नहीं वो सीधे-साधे आदमी हैं. दिल्ली की राजनीति में वो क्या करेंगे. मैंने मन हीं मन सोचा दिल्ली के नेता अशोक गहलोत को कितना कम समझते हैं.
अशोक गहलोत हीं क्यों?
कांग्रेस की अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनने के लिए तैयार करने में असफल रही हैं. खुद बीमार हैं, वो शायद पहली राष्ट्रीय अध्यक्ष रहीं जो आम चुनाव में भी किसी सभा में नहीं निकली. कांग्रेस में चुनाव कराने के लिए चौतरफा दबाव पड़ रहा है. ऐसे में ऐसे वफादार की तलाश है जो सीताराम केसरी नहीं बनें. सोनिया खेमे ने राजेश पायलट और शरद पवार के खिलाफ सीताराम केसरी पर दांव लगाया और फिर सीताराम केसरी ने ऐसी आंख दिखाई कि शायद सोनिया गांधी भूली नहीं हों.
गहलोत राहुल गांधी को कभी चुनौती नहीं दे सकते हैं. उनकी उम्र हो गई है और 72 साल की उम्र में बहुत ज्यादा राजनैतिक महत्वाकांक्षा भी शेष नही है. राजनैतिक चतुराई में कौशलसिद्ध नेता हैं. आर्थिक रूप से कांग्रेस की और खासकर गांधी परिवार की तब से रीढ़ रहे हैं जब सोनियां गांधी एनडीए की वाजपेयी सरकार में सत्ता के लइए संघर्ष कर रहे थे. तब एमपी के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख आर्थिक रूप से वैसी मदद नहीं कर पा रहे थे जिस तरह से गहलोत ने की थी.
गहलोत का देश के बड़े बिजनेस घरानों से काफी अच्छा नेटवर्क हमेशा से रहा है. उनकी छवि शांत शालिन और गांधीवादी छवि की है. जब सोनिया गांघी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं और गहलोत मुख्यमंत्री बने , इस लिहाज से भी दोनों का लंबा राजनैतिक करियर एक साथ का रहा है जिसमें नेचुरल कम्फर्ट बन जाता है.
गहलोत के अध्यक्ष बनने से पहले आए राह में कांटे
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि राहुल गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने ताकि वो मुख्यमंत्री बने रहें और गांधी परिवार के भरोसेमंद साथी के रूप में उनका दबदबा कायम रहे. उनकी चाहत की बड़ी वजह है कि वो सचिन पायलट को अपने 40 साल के राजनैतिक जीवन का सबसे बड़ा कांटा मानते हैं, गहलोत को लगता है कि कहीं मैं गया तो पायलट सीएम न बन जाए.
बड़े नेता होने बावजूद उन्होने अपना लक्ष्य छोटा कर लिया है. वो कहते भी हैं मैं गया तो राजस्थान में कांग्रेस खत्म हो जआएगी. गहलोत उस पीढ़ी के नेता है जि,को बेटा कितना भी काबिल हो जाए नाकाबिल हीं लगता है. कहा जाता है कि उनके दोनों पदों पर रहने की अर्जी सोनिया गांधी ने पहले हीं खारिज कर दी है.
शशि थरूर-आनंद शर्मा और मनीष तिवारी का अड़ंगा.
गहलोत कोशिश कर रहे है कि राहुल गांधी भले हीं भारत जोड़ो यात्रा पर निकल जाएं मगर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए नोमिनेशन भरने के लिए खुद आने की जरूरत नही है उनके पक्ष से कोई भी फार्म ले जाकर नोमिनेशन भर देगा. मगर राहुल गांघी को जानने वाले कहते हैं कि सलमान खान के स्टाईल में राजनीति करते है. एकबार फैसला कर लिया तो खुद की भी नहीं सुनते हैं.
ऐसे में माना जा रहा कि शशि थरूर और अशोग गहलोत के बीच मुकाबला होनो जा रहा है. मनीष तिवारी वोटर लिस्ट मांग रहे हैं लेकिन आनंद शर्मा ने 26 अगस्त की बैठक में सिनोया-प्रियंका और राहुल गांधी की मौजूदगी में वोटर लिस्ट मांगा था तब सोनिया गांघी ने हस्तक्षेप किया कि सब तैयार है और केसी वेणुगोपाल ने कहा कि जो लड़ेगा चुनाव उसी को देंगे.
गांधी नहीं गहलोत से भी खफा है एक खेमा
अशोक गहलोत और शशि थरूर की पुरानी दुश्मनी है. जब इकोनोमी क्लास को शशि थरूर ने कैटल क्लास कहा था तो गहलोत ने थरूर को जमकर लताड़ लगाई थी और देश भर में सुर्खियां बनी थी. पलटकर शशि थरूर ने भी गहलोत के अंग्रेजी ज्ञान पर सवाल उठाए थे. आनंद शर्मा और गहलोत के बीच तीखी बहस अभी-अभी हुई थी.
वो पहली सीडब्लूसी की मीटिंग थी जिसमें आनंद शर्मा ने चुनाव की मांग की थी और गहलोत ने लताड़ लगाई कि आपने कभी चुनाव लडकर राजनीति की है क्या और फिर सोनिया गांघी को हस्तक्षेप कर दोनों को चुप कराना पड़ा था.
जब गुलामनबी आजाद कह रहे हैं कि रबड़ स्टंप अध्यक्ष बनाया जाएगा तो उनका इशारा गहलोत की तरफ हीं है. इसीलिए गहलोत ने भी गुलाम नबी को संजय गांधी का चाटुकार तक करार दिया.
कोर्ट जा सकता है कांग्रेस का चुनाव
गांधी परिवार किसी भी सूरत में पार्टी पर कब्जा नहीं छोड़ना चाहता है. परिस्थितियां प्रतिकूल होने लगी तो राहुल गांधी चुना हुआ अध्यक्ष बनने को तैयार हो सकते हैं. और अगर वो नहीं मानें तो प्रियंका गांधी को आगे कर सबको चुप कराया जा सकता है. दरअसल कांग्रेस के संविधान के अनुसार अध्यक्ष के चुनाव से पहले पार्टी के संगठनात्मक चुनाव पूरे हो जाने चाहिए.
मगर राजस्थान समेत चार-पांच राज्यों में चुनाव प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. ब्लाक अध्य़क्ष तो छोड़िए कई जिलों में जिला अध्यक्ष भी नहीं है. सीडब्लूसी का चुनाव भी नहीं हो रहा है. अगर असंतुष्ट गुट को किनारे लगाया जाता है तो वो कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस की और छिछालेदर होगी.
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