नीतीश कुमार के 'तूफान' की चपेट में आने के बाद 'चिराग' बुझना ही था!
बिहार में एलजेपी के खिलाफ 'ऑपरेशन क्लीन' के पीछे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का गुस्सा अहम वजह है. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुखिया लालू यादव ने कभी कहा था कि नीतीश के पेट में दांत हैं. फिलहाल बिहार की राजनीति को देखकर 'पेट में दांत' वाली कहावत सही साबित होती लगती है.
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बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से ही लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के प्रमुख चिराग पासवान (Chirag Paswan) की डिक्शनरी से सुकून नाम का शब्द गायब हो गया था. पहले एलजेपी के 208 से ज्यादा नेता, फिर पार्टी का एकलौता विधायक और अब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) के नेतृत्व में 5 सांसदों ने बगावत कर चिराग पासवान को पार्टी में अकेला छोड़ दिया है.
बिहार में एलजेपी के खिलाफ 'ऑपरेशन क्लीन' के पीछे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का गुस्सा अहम वजह है. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुखिया लालू यादव ने कभी कहा था कि नीतीश के पेट में दांत हैं. फिलहाल बिहार की राजनीति को देखकर 'पेट में दांत' वाली कहावत सही साबित होती लगती है. बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने चिराग पासवान से 'दुश्मनी' निभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनता दल यूनाइटेड (JDU) और नीतीश कुमार के खिलाफ खुले तौर पर बगावत करने वाले एलजेपी सांसद चिराग पासवान के लिए अब एनडीए (NDA) की राह भी खत्म हो चुकी है. कहना गलत नहीं होगा कि नीतीश कुमार के 'तूफान' की चपेट में आने के बाद 'चिराग' का जलना मुश्किल ही था.
नीतीश कुमार से दुश्मनी चिराग पासवान को बहुत भारी पड़ी है.
मोदी के 'हनुमान' और नीतीश को 'जेल'
बिहार विधानसभा चुनाव से काफी पहले ही चिराग पासवान ने एनडीए में ज्यादा सीटों की मांग कर दी. जिस पर न तो नीतीश कुमार राजी थे और न ही भाजपा. सीटों की मांग से शुरू हुआ बवाल चुनाव आने तक एलजेपी को एनडीए से बाहर का रास्ता दिखाने तक आ चुका था. इस दौरान चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार निशाना साधा. चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर 135 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला लिया था. इसमें से भी चिराग ने उन सीटों पर ही ज्यादातर उम्मीदवार उतारे थे, जो एनडीए में रहने से जेडीयू के खाते में आई थीं. पूरे विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने भाजपा के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला था. उन्होंने तो खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बता दिया था. वहीं, चिराग ने नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए जेल तक भिजवाने की बात कह दी थी.
भाजपा और एलजेपी की 'डील'
बिहार के सियासी गलियारों में विधानसभा चुनाव से पहले एलजेपी और भाजपा के बीच 'डील' होने की चर्चाएं भी बहुत आम रही थीं. जेडीयू के कई नेताओं ने तो विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और एलजेपी के गठबंधन के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. वहीं, एलजेपी ने एनडीए से बाहर होने के बाद भाजपा के कई बागी नेताओं को चुन-चुनकर जेडीयू के खाते में गई सीटों पर उतारा था. चिराग पासवान की ये रणनीति जेडीयू को बहुत भारी पड़ी थी. नीतीश कुमार ने खुद माना था कि इस वजह से उन्हें करीब 36 विधानसभा सीटों का नुकसान हुआ. जिसकी वजह से एनडीए में जेडीयू की भूमिका छोटे भाई की हो गई थी. कहा जा रहा था कि भाजपा ने बिहार में जेडीयू के पर कतरने के लिए एलजेपी के साथ मिलकर यह रणनीति अपनाई थी.
'बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे.'
'बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे.' राज्य में राष्ट्रीय जनता दल के बाद दूसरे नंबर की पार्टी बनी भाजपा ने यही बात कही थी. एनडीए विधानमंडल का नेता चुने जाने के बाद नीतीश कुमार (nitish kumar) ने भी कह दिया था कि वे सीएम बनना नहीं चाहते हैं, लेकिन भाजपा के आग्रह पर पद स्वीकार कर रहे हैं. नीतीश कुमार राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. उन्होंने भाजपा की रणनीति को भांप लिया है. यही वजह है कि एलजेपी के खिलाफ 'ऑपरेशन क्लीन' चलाने के साथ ही वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद को हर तरह से मजबूत करने में लगे हुए हैं. कुछ महीने पहले ही नीतीश कुमार ने अपने सियासी दुश्मन उपेंद्र कुशवाहा को गले लगाकर बिहार की राजनीति में 'लव-कुश' समीकरण (कुर्मी और कुशवाहा का जातिगत समीकरण) के सहारे अपना वोटबैंक बढ़ाने का दांव चल दिया है. कहा जाता है कि बिहार की करीब 30 विधानसभा सीटों पर लव-कुश समीकरण अपना सीधा प्रभाव रखता है.
चुनाव में बुरी तरह हार के बाद एलजेपी के 208 छोटे-बड़े नेताओं ने जेडीयू का दामन थाम लिया.
एलजेपी के खिलाफ ऑपरेशन क्लीन में ललन सिंह
राजनीति के 'मौसम विज्ञानी' कहे जाने वाले दिवंगत नेता राम विलास पासवान की विरासत को संभालने में नाकाम रहे चिराग पासवान ने पार्टी के नेताओं की राय को किनारे रखते हुए अलग रुख अपनाया. चुनाव में बुरी तरह हार के बाद एलजेपी के 208 छोटे-बड़े नेताओं ने जेडीयू का दामन थाम लिया. फिर मटिहानी के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह ने भी जेडीयू की राह पकड़ ली. वहीं, पशुपति कुमार पारस के 6 में से 5 विधायकों के साथ बगावत करने के हालिया घटनाक्रम के पीछे भी नीतीश कुमार के करीबी और जेडीयू के सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह की भूमिका होने के कयाल लगाए जा रहे हैं. दरअसल, बगावत के बाद पशुपति पारस सीधे ललन सिंह से मिलने गए थे. वहीं, एलजेपी की एमएलसी सुशांत सिंह राजपूत की भाभी और मंत्री नीरज सिंह बबलू की पत्नी नूतन सिंह पहले ही भाजपा में शामिल हो चुकी हैं.
चिराग के पास नहीं बचा है कोई रास्ता
एलजेपी में इस टूट के बाद चिराग पासवान के पास शायद ही कोई विकल्प बचा है. भाजपा किसी भी हाल में उन पर हाथ रखने से कतराएगी. 2022 में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (खासकर उत्तर प्रदेश) से पहले भाजपा बिहार में किसी भी तरह का खतरा उठाने से बचेगी. इसी साल जनवरी में हुई एनडीए की बैठक में नीतीश कुमार के दबाव के चलते चिराग पासवान को भेजा गया न्योता वापस ले लिया गया था. चिराग पासवान ने दिवंगत रामविलास पासवान की पत्नी और अपनी मां रीना पासवान को एलजेपी का मुखिया बनाने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन, पार्टी को तोड़ने जैसा कदम उठाने वाले पशुपति कुमार पारस शायद ही इस पर सहमत होंगे. कहना गलत नहीं होगा कि नीतीश कुमार से दुश्मनी चिराग पासवान को बहुत भारी पड़ी है.
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