संजय गांधी का किया हुआ वादा क्या मेनका गांधी निभा पाएंगी?
लोकसभा चुनाव 2019 के छठे फेज की वोटिंग हो गई है और अब मेनका गांधी की किस्मत का फैसला डब्बे में बंद है, लेकिन उसके साथ ही बंद है संजय गांधी द्वारा किए गए एक वादे का फैसला जो सुल्तानपुर के लोगों की परेशानी का कारण है!
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मेनका गांधी ने अपनी रैलियों में सुल्तानपुर के विकास की बात की है. हालांकि, उनकी रैलियों में विवाद भी बहुत हुए, लेकिन उनका मुद्दा अहम तौर पर विकास का ही रहा है. सुल्तानपुर में 12 मई को चुनाव है. मेनका गांधी ने यहां चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी है और कभी संजय गांधी की पत्नी तो कभी वरुण गांधी की मां बताकर लोगों का उद्धार करने की बात की. मेनका ने एक बात सबसे ज्यादा कही और वो ये कि मेनका 1980 में दुल्हन बनकर सुल्तानपुर आई थीं और संजय गांधी ने सुल्तानपुर को शक्कर मिल, अस्पताल और गोमती ब्रिज दिया है और अब वो उसी शक्कर मिल की हालत सुधारेंगी.
दरअसल, जिस विकास की बात मेनका गांधी कर रही हैं और जिस शक्कर मिल की दुहाई वो दे रही हैं वो दोनों ही बेहद खराब हालात में हैं. सुल्तानपुर को 1983 में संजय गांधी ने शक्कर मिल दी थी. वहां रहने वाले लोगों को लगा कि ये मिल उनके इलाके में विकास लाएगी और आर्थिक तंगी दूर करेगी. कुछ हद तक ये हुआ भी, लेकिन पिछले कुछ सालों से सुल्तानपुर के लोगों की हालत बहुत खराब है. शक्कर मिल में काम कर रहे कर्मचारियों और गन्ना किसानों को 22 महीने से वेतन नहीं मिला है. करीब 800 कर्मचारी और उनके परिवार वाले महीनों से अपने हक का इंतजार कर रहे हैं.
ऐसे ही एक कर्मचारी हैं शकील अहमद. शकील ने 1983 में संजय गांधी के वादे पर अपनी 10 एकड़ जमीन शक्कर मिल के लिए दे दी थी. उन्होंने एक अच्छे भविष्य की कल्पना की थी. उस समय उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी शक्कर मिल सुल्तानपुर में बन रही थी.
मेनका गांधी का चुनाव प्रचार सुल्तानपुर शक्कर मिल के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा
फिलहाल शकील मिल में मशीन ऑपरेटर और यूनियन वर्कर सेक्रेटरी के रूप में काम करते हैं. उनके दिन का 1 घंटा हर रोज़ विरोध प्रदर्शन में जाता है. वो 800 कर्मचारियों की 22 महीने की सैलेरी के लिए लड़ रहे हैं. शकील के घर में दो बेरोजगार बेटे, एक बिन ब्याही बेटी है. 47 साल की उम्र में वो जानते हैं कि उन्हें कोई और नौकरी नहीं मिलेगी. ITI से ग्रैजुएट होने के बाद भी वो बेहद परेशान हैं.
70 एकड़ जमीन में बनी सुल्तानपुर किसान कोऑपरेटिव शक्कर मिल एक समय पर सोने की खान थी. सुल्तानपुर और आस-पास के इलाकों में गन्ने की क्वालिटी के कारण यहां की शक्कर बेहद अच्छी होती थी पर अब आलम ये है कि इस मिल ने पिछले 5 सालों में मुनाफा नहीं कमाया. इसका नुकसान 2018 में दुगना होकर 380 करोड़ हो गया. अब मिल में उसकी क्षमता के मुकाबले आधा प्रोडक्शन होता है और मिल के बंद होने की शंका जताई जा रही है.
2019 लोकसभा चुनावों में मेनका गांधी ने सुल्तानपुर को राजनीति का अखाड़ा बना दिया. उन्होंने मिल के नवीनीकरण की बात की. रैलियों में सुल्तानपुर के विकास के सपने दिखाए. यहां तक कि मेनका गांधी ने भाजपा राज्य सरकार से मिल के लिए 7 करोड़ रुपए का आवंटन भी करवाया था (कम से कम न्यूज में तो यही आया) ताकि कर्मचारियों की तनख्वाह उन्हें दी जाए. कर्मचारियों को सितंबर 2018 तक की तनख्वाह देने का आदेश भी हुआ.
शक्कर मिल इस चुनावी सीजन में सुल्तानपुर का अहम मुद्दा है. गन्ना किसानों का करोड़ों रुपए का उधार चुकाना बाकी है. महीनों से किसानों को राहत नहीं मिली. नीती आयोग का कहना है कि शक्कर मिल का उधार और कर्मचारियों की बकाया सैलरी अब खतरनाक स्थिति तक पहुंच गई है.
सरकार जो नीतियां बनाते समय शक्कर मिल को भूल गई-
के पी शुक्ला जो इसी शक्कर मिल में जनरल मैनेजर हैं उनके हिसाब से इसके लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं. ये आसान अर्थशास्त्र की बात है. मिल बनने के बाद से ही सरकार ने इस मिल की मशीनों को अपग्रेड करने या काम-काज के हालात सुधारने के लिए एक रुपया भी खर्च नहीं किया. जब्कि ऐसी कई नीतियां बनाई जा सकती थीं जो शक्कर मिल की बढ़त में फायदेमंद हों. शुक्ला को मिल के अंदर ले जाने के लिए भी पुलिस प्रोटेक्शन चाहिए होता है क्योंकि परेशान और चिढ़े हुए कर्मचारी विरोध प्रदर्शन कर रहे होते हैं.
जो भी मशीने इस शक्कर मिल में हैं वो 30 सालों से अपग्रेड नहीं हुई हैं. जब्कि पड़ोसी जिले बिजनौर की शक्कर मिल में पांच साल पहले ही मशीनों में बदलाव किए गए थे. बिजनौर में 3000 टन गन्ना हर रोज़ कुचला जाता है और सुल्तानपुर मिल में 1000 टन.
भारतीय शक्कर बाज़ार सरकार द्वारा संचालित किया जाता है. सरकार गन्ने की कीमत बढ़ा देती है और शक्कर के दाम कम कर देती है ताकि उनका वोट बैंक सुरक्षित रहे. गन्ना भारत की सबसे ज्यादा राजनीतिक फसल में से एक है.
शुक्ला के अनुसार दिवाली के समय राज्य सरकार ने शक्कर के दाम मार्केट में घटाने के लिए उसे 2550 रुपए प्रति कुंटल कर दिया था जब्कि मौजूदा रेट 3250 रुपए प्रति कुंटल था. उस समय 50 हज़ार कुंटल शक्कर इसी रेट पर बेची गई थी. इसमें शक्कर मिल की बैलेंस शीट में 80 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.
हर रोज़ दोपहर होते-होते 50 से ज्यादा ट्रक शक्कर मिल के बाहर खड़े हो जाते हैं. किसान अपनी फसल लेकर आते हैं और इनमें से कई तो लगभग 20 दिनों तक अपनी फसल के इस्तेमाल का इंतजार करते हैं. धूप में खड़े-खड़े गन्ना किसानों की फसल सूखने लगती है और इसके कारण अच्छी क्वालिटी की शक्कर नहीं बन पाती. किसान अपनी फसल बिजनौर मिल की तरफ ले जाने की कोशिश करने लगे हैं.
सरकार के 7 करोड़ के पैकेज की बात सुनकर कई कर्मचारी अपनी तनख्वाह लेने शक्कर मिल के अधिकारियों के पास जाते हैं, लेकिन उन्हें कौन बताए कि भले ही मेनका गांधी ने ये बात कह दी हो कि सरकार 7 करोड़ दे रही है, लेकिन अभी तक पैसे रिलीज नहीं हुए हैं और किसी को भी तनख्वाह नहीं मिली है.
मेनका गांधी ने सुल्तानपुर की एक रैली में कहा था कि वो अपने बेटे की तरह नहीं हैं, वो प्रशासन से काम करवाना जानती हैं. यानी वो ये कह रही थीं कि उन्हें वरुण गांधी न समझा जाए. कहीं न कहीं वो ये मान रही थीं कि वरुण गांधी काम करवाने में नाकाम रहे हैं. उन्होंने अपनी कई रैलियों में कहा है कि वो एक सांसद नहीं एक मां हैं और वोट उसी आधार पर मांगे हैं. अब जब सुल्तानपुर में वोटिंग हो चुकी है तब मेनका गांधी के सामने बड़ी चुनौती है. अगर मेनका गांधी जीत जाती हैं तो उन्हें शक्कर मिल की हालत को सुधारना होगा. अपने किए वादे पूरे करना आसान नहीं है. अब देखना ये है कि मेनका गांधी असल में संजय गांधी का वादा और उनका सपना पूरा कर पाती हैं या नहीं.
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