किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेगी व्यापम घोटाले की जांच
जिस जांच को शिवराज सिंह चौहान राजा हरिश्चंद्र के न्याय जैसा बता रहे हैं, वहां जांच करने वाले खुद ही दहशत में हैं. तो एसआइटी जांच कर नहीं रही है और एसटीएफ जांच कर नहीं पा रही है.
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आज तक के पत्रकार अक्षय सिंह की व्यापम घोटाले की रिपोर्टिंग के दौरान हुई रहस्यमयी मौत ने जब घोटाले की जांच पर सवाल उठाए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहकर खुद को पाक-साफ बताया कि मामले की जांच हाई कोर्ट के विशेष जांच दल (एसआइटी) की निगरानी में हो रही है. और जांच कर रही संस्था विशेष कार्य बल (एसटीएफ) सीधे एसआइटी को रिपोर्ट कर रहा है, लिहाजा मध्य प्रदेश सरकार इस अफसोसनाक घटना की जांच भी एसआइटी से करने का निवेदन कर सकती है.
ऊपर से देखने पर चौहान की ये दलीलें बहुत निर्दोष दिखती हैं. लेकिन जरा अंदर जाएं तो हकीकत कुछ और ही है. जैसे एसआइटी के तीन सम्मानित सदस्य हैं मध्य प्रदेश हाइकोर्ट के रिटायर जज चंद्रेश भूषण, सीआरपीए के पूर्व विशेष निदेशक विजय रमन और राष्ट्रीय सूचना केंद्र (एनआइसी) के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल सीएलएम रेड्डी. इन तीनों लोगों की प्रतिबद्धता या योग्यता पर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन ये तीनों बुजुर्ग हैं. फिर इन्हें मामले की जांच नहीं करनी है सिर्फ एसटीएफ की तरह से हुई जांच की निगरानी करनी है. ऐेसे में एसआइटी की तुलना में एसटीएफ की भूमिका कहीं ज्यादा बड़ी हो जाती है.
अब बात करते हैं एसटीएफ की. एसटीएफ के मुखिया सुधीर साही भी बेदाग छवि के पुलिस अधिकारी हैं. ऐसे में 28 जून को संदिग्ध हालत में इंदौर में मरने वाले व्यापम आरोपी नरेंद्र सिंह तोमर के परिवार के उस आरोप को खारिज भी कर दें कि एसटीएफ उनके बेटे से 7 लाख रु. मांग रही थी, तो भी कई बड़े सवाल एसटीएफ के सामने हैं. और ये सवाल बाहर से नहीं भीतर से हैं. एसटीएफ के उप पुलिस महानिरीक्षक (एआइजी) आशीष खरे और डीएसपी डीएस बघेल ने एसआइटी से शिकायत की है कि इस जांच के दौरान उनकी सुरक्षा को खतरा है. एसआइटी ने यह बात 26 जून को ही मध्य प्रदेश हाइकोर्ट को बता दी. हालांकि इन दोनों अफसरों ने यह नहीं बताया कि किस तरह का खतरा है. लेकिन एसटीएफ सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक एसटीएफ अफसरों को पता चला है कि कुछ कद्दावर आरोपी उनके परिवार, बच्चों, अधिकारियों के पूंजी निवेश और जायदाद यहां तक की उनकी आदतों पर भी नजर रख रहे हैं. ऐसे में एसटीएफ के अधिकारियों को डर है कि ये कद्दावर आरोपी उनके बच्चों को नुकसान पहुंचा सकते हैं या अपने ऊंचे रसूख का फायदा उठाकर अधिकारियों को किसी मामले में फंसा सकते हैं. गौरतलब है कि व्यापम में पूर्व मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के अलावा कई आईपीएस और उनके रिश्तेदार भी आरोपी हैं. कई आरोपियों के संबंधी अन्य विभागों में ऊंचे पदों पर हैं.
यानी जिस जांच को शिवराज सिंह चौहान राजा हरिश्चंद्र के न्याय जैसा बता रहे हैं, वहां जांच करने वाले खुद ही दहशत में हैं. तो एसआइटी जांच कर नहीं रही है और एसटीएफ जांच कर नहीं पा रही है, ऐसे में जो भी जांच होगी वह किसी न किसी दबाव में होगी और हाइकोर्ट के पास फैसला करने के लिए दबाव में बनी यही रिपोर्ट पहुंचेगी. इस तरह निष्पक्ष जांच का चौहान का दावा संदेह से परे नहीं है. जाहिर है अब इस जांच के लिए सीबीआइ की मदद या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआइटी बनाने के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं दिख रहे. और उस जांच दल में भी मध्य प्रदेश से बाहर के अधिकारियों का होना जरूरी है, जिनका परिवार और कैरियर कद्दावर आरोपियों की पहुंच से कुछ दूर हो. मुख्यमंत्री इन सब बातों को जानते हुए भी कब तक अनजान बने रह पाएंगे क्योंकि किसी सूरत में भी व्यापम घोटाला उनकी चौखट से टलने वाला नहीं है.
(लेखक ने मध्य प्रदेश जाकर व्यापम घोटाले से जुड़े सभी तथ्यों की जांच पड़ताल की. उनकी स्टोरी को इंडिया टुडे के ताजा अंक में कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित किया गया है.)
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