महंत नरेंद्र गिरि ने मौत से पहले हिंदू धर्म और राजनीति के बारे में जो कहा- वो आज की सच्चाई है!
महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) ने आखिरी बार इंडिया टुडे से बातचीत में सनातन धर्म और राजनीति को लेकर जो कहा है, वो यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) पर प्रभाव डालेगा. लेकिन, इससे कहीं ज्यादा ये अन्य राजनीतिक दलों के चेहरे पर चढ़ा सेकुलर नकाब भी उतार देता है.
-
Total Shares
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Akhara Parishad) के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़े के महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) ने अपनी मौत से एक दिन पहले इंडिया टुडे से बातचीत में सनातन धर्म और राजनीति को लेकर अपने बेबाक राय रखी थी. इंडिया टुडे के स्पेशल कार्यक्रम 'जब वी मेट' के दौरान महंत नरेंद्र गिरि से बातचीत की गई थी. दरअसल, उनसे यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) के मद्देनजर कुछ सवाल पूछे गए थे. ऑन कैमरा पूछे गए सवालों का उन्होंने बिना लाग-लपेट के जवाब दिया था. उनसे पहला सवाल पूछा गया कि आपको वाकई लगता है कि बीते साढ़े चार साल में कुछ काम हुआ है? इस सवाल पर महंत नरेंद्र गिरि ने साफ शब्दों में कहा कि साढ़े चार सालों में काम नहीं विकास हुआ है. जो अन्य सरकारों से ज्यादा हुआ है. उन्होंने तमाम उदाहरण देते हुए कहा कि गांवों से लेकर हाईवे तक की सड़कों की हालत पहले से सुधर गई है. महंत नरेंद्र गिरि ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath) और भाजपा (BJP) के कामकाज की तारीफ की थी.
इतना ही नहीं महंत नरेंद्र गिरि ने इसी इंटरव्यू में आगे कहा था कि विकास के साथ धर्म का जुड़ना भी जरूरी होता है. सनातन परंपरा को लेकर चलने वाली सरकार अच्छी होती है और वो धर्म से डरती भी है. लेकिन, जो धर्म को लेकर चलते ही नहीं है, वो क्या डरेंगे? दूसरा सवाल पूछा गया कि क्या साधु-संतों का किसी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में इतने खुले तौर पर आना सही है? इसके जवाब में महंत नरेंद्र गिरि ने दो टूक शब्दों में कहा था कि संत-महात्मा घर-परिवार छोड़कर देश और धर्म (Religion) की रक्षा के लिए बनते हैं. पार्टी कोई भी हो, जो देश और धर्म की रक्षा के लिए कार्य करती है, संत-महात्मा भी उसके साथ जुड़ते हैं.
भारत में धर्म और राजनीति का कॉकटेल सियासी दलों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि राम मंदिर (Ram Temple) का समर्थन पहले किसी पार्टी ने नहीं किया. अब ये उनकी दिखावटी मजबूरी है. उन्हें पता चल गया है कि मुस्लिमों की तरह हिंदू भी एक हो रहा है, तो ये उनकी मजबूरी है. अब ये पार्टियां जानती हैं कि मुस्लिम को छोड़कर हिंदुओं की ओर जाना पड़ेगा. लेकिन, उन्हें सफलता नहीं मिलेगा. असली चीज ये है कि जो शुरू से धर्म से जुड़ा रहा है, उसे सही माना जाएगा. नए जुड़े लोग नकली ही माने जाएंगे. अगर महंत नरेंद्र गिरि के मौत के पहले दिए गए इस बयान को किसी राजनीतिक चश्मे से न देखते हुए तटस्थ रूप से नजर डालेंगे. तो, ये साफ नजर आएगा कि महंत नरेंद्र गिरि ने मौत से पहले सनातन धर्म और राजनीति के बारे में जो कहा- वो आज की सच्चाई है!
भारत में धर्म और राजनीति का कॉकटेल सियासी दलों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. आसान शब्दों में कहें, तो धर्म एक ऐसी व्यवस्था है, जो राजनीति में हर मुंहमांगी मुराद को पूरा कर देती है. यही वजह है कि चुनाव की आहट सुनते ही बड़े-बड़े नेता विभिन्न धर्मों के गुरुओ के पास आशीर्वाद लेने पहुंच जाते हैं. दरअसल, इन धर्मगुरुओं के पीछे भक्तों की एक बड़ी तादात होती है, जिसे सियासी दलों के नेता अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए इन गुरुओं के दरबार में माथा टेकने पहुंच जाते हैं. हालांकि, ये जरूरी नहीं है कि इन धर्मगुरुओं का हाथ सिर पर होने से जीत पक्की हो जाती है. लेकिन, खुद को समावेशी राजनीति करने वाला सियासी दल दिखाने के लिए चुनाव से पहले इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. लेकिन, यहां सबसे बड़ा पेंच यही है कि ये तमाम कार्यक्रम और आशीर्वाद लेने का क्रम केवल चुनावी समय तक ही सीमित रहता है.
हिंदू धर्म से जुड़े मामलों पर तमाम पार्टियों की राय सेकुलर हो जाती है. राम मंदिर जैसे मामले पर कांग्रेस इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपाती है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राम मंदिर का ताला खुलवाया था. लेकिन, राम मंदिर का ताला खुलने के बाद से गांधी परिवार के कितने लोग राम मंदिर के दर्शन के लिए गए? जिस राम मंदिर के सहारे भाजपा आज सत्ता सुख भोग रही है, उस मुद्दे को कांग्रेस इतने समय तक 'अछूत' मानकर क्यों चली? दरअसल, ये सवाल केवल कांग्रेस के लिए ही नहीं उठ खड़ा होता है. बल्कि, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी समेत उन तमाम राजनीतिक दलों के ऊपर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है, जो लंबे समय तक सेकुलर राजनीति के ढोल पीटते रहे और अब सॉफ्ट हिंदुत्व की शरण में आ गए हैं. मानिए या न मानिए, लेकिन मतदाताओं के दिमाग में समाजवादी पार्टी, बसपा, कांग्रेस की छवि बहुसंख्यक वर्ग की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों की नही है. वहीं, भाजपा का हमेशा से ही एजेंडा साफ रहा है और पार्टी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को लेकर अपना एक व्यापक वोटबैंक तैयार किया है.
खुद से सोचिए कि अपनी राजनीतिक पार्टी को सेकुलर दिखाने के लिए देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का बताने वाली कांग्रेस पर कौन भरोसा करेगा. उत्तर प्रदेश में एमवाई (मुस्लिम+यादव) समीकरण के सहारे सत्ता में आने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव आज इस फॉर्मूले को बदलकर महिला+युवा का नाम क्यों दे रहे हैं? किसी जमाने में 'तिलक, तराजू और तलवार' का नारा देने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती 'हाथी नहीं गणेश है' की राजनीति पर क्यों उतर आई हैं? महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) ने आखिरी बार इंडिया टुडे से बातचीत में सनातन धर्म और राजनीति को लेकर जो कहा है, वो यूपी विधानसभा चुनाव 2022 पर प्रभाव डालेगा. लेकिन, इससे कहीं ज्यादा ये अन्य राजनीतिक दलों के चेहरे पर चढ़ा सेकुलर नकाब भी उतार देता है. कुछ वर्षों पहले समाजवादी पार्टी, बसपा, कांग्रेस जैसे सियासी दल मुस्लिम केंद्रित राजनीति करते थे, वोे आज हिंदुओं की ओर क्यों मुड़े हैं. क्या लोगों के मन में ये सवाल नहीं आता होगा?
इस वीडियो में देखिए महंत नरेंद्र गिरि से उनकी मौत के एक दिन पहले की गई बातचीत के अंश...
भाजपा ने 'सबका साथ, सबका विश्वास' के सहारे सत्ता पाई. लेकिन, इस दौरान धर्म व राष्ट्रवाद के मुद्दे पर किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया. इतना ही नहीं भाजपा के लिए धर्म और राष्ट्रवाद अन्य दलों की तरह चुनावों से पहले की जाने वाली एक्सरसाइज कभी नहीं रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम धर्मगुरु से 'टोपी' पहनने से मना जरूर किया हो. लेकिन, वो कई मौकों पर मुस्लिम धर्मगुरुओं से मुलाकात करते रहे हैं. वो भी तब, जब ये एक स्थापित सत्य बना दिया गया है कि मुस्लिम भाजपा को हराने वाली पार्टी को ही वोट करते हैं. योगी आदित्यनाथ भारतीय संस्कृति के नाम पर कई जगहों के नाम बदल चुके हैं. लेकिन, क्या आज के समय में कोई राजनीतिक दल इस बात के खिलाफ आवाज उठा सकता है कि योगी आदित्यनाथ गलत कर रहे हैं. हां, समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल ये जरूर कहते हैं कि ये देश की सेकुलर छवि को बिगाड़ रहा है. लेकिन, सेकुलर शब्द तो संविधान बनने के समय था ही नहीं. ये तो संविधान संसोधन कर जोड़ा गया.
आरएसएस की तुलना तालिबान से करने वाले मशहूर गीतकार जावेद अख्तर को आखिरकार शिवसेना के मुखपत्र सामना में लिखना ही पड़ा कि हिंदू पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा सभ्य और सहिष्णु बहुसंख्यक हैं. जावेद अख्तर चाहते तो ऐसा लिखने के लिए वह बाध्य नहीं थे. लेकिन, उन्होंने लिखा. क्योंकि, उनके इस बयान से भारत का वो सामाजिक ताना-बाना बिगड़ रहा था, जो विपक्षी दलों को सूट करता है. लोगों के अवचेतन मस्तिष्क में भारतीय संस्कृति व सनातम धर्म की दशकों तक की गई उपेक्षा और बहुसंख्यक वर्ग को हाशिये पर रखने वाली राजनीति की छवि ने गहरी छाप छोड़ी है. इसे इतनी आसानी से नहीं मिटाया जा सकता है. कहना गलत नहीं होगा कि महंत नरेंद्र गिरि ने मौत से पहले सनातन धर्म और राजनीति के बारे में जो कहा- वो आज की सच्चाई है.
आपकी राय