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Updated: 18 अक्टूबर, 2019 08:59 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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चुनाव प्रचार के आखिरी दौर से पहले सोनिया गांधी हरियाणा में रैली करने वाली थीं, लेकिन वो रद्द हो गयी. सोनिया गांधी के महाराष्ट्र में भी शरद पवार के साथ रैली किये जाने की खबरें आयी थीं. सोनिया गांधी हरियाणा के महेंद्रगढ़ में रैली करने वाली थीं जो बाद में राहुल गांधी के हवाले कर दी गयी. अरविंद केजरीवाल ने भी हरियाणा चुनावों को लेकर खासी दिलचस्पी दिखायी थी, लेकिन वो तो झांकने तक नहीं गये. वे क्या हरियाणा की 90 सीटों में से 46 पर चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी का दिल्ली का कोई नेता भी हरियाणा में नहीं नजर आया.

क्या विपक्ष पहले से ही हार मान बैठा है और ये सत्ताधारी बीजेपी नेतृत्व की हौसलाअफजाई कर रहा है. विपक्ष का जो भी हाल हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के मैदान में डटे रहने के साथ ही बीजेपी के सारे स्टार प्रचारक मनोहर लाल खट्टर और देवेंद्र फडणवीस की सत्ता में वापसी के लिए दिन रात एक किये हुए हैं.

ये तो साफ है कि बीजेपी को सत्ता में वापसी को लेकर कोई शक नहीं है, अगर कुछ है तो वो सीटों को लेकर जरूर है. बीजेपी के चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक देने का एक मतलब ये भी जरूर है कि हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा के चलते उसे जाट वोटों की उतनी ही फिक्र है जितनी शरद पवार के चलते महाराष्ट्र में मराठा वोटों की.

महाराष्ट्र से कांग्रेस-NCP का सफाया नहीं

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के बूते बीजेपी ने सूबे के सबसे मजबूत वोट बैंक को काफी हद तक साध लिया है. कांग्रेस और एनसीपी के मराठा नेताओं की बीजेपी में दिलचस्पी की भी ये बड़ी वजह रही और भगवा धारण करने के लिए वे वैसे ही कतार में लग गये जैसे सिद्धि विनायक में दर्शन के लिए लगते होंगे.

बीजेपी और शिवसेना महाराष्ट्र चुनाव इस बार मिल कर लड़ रहे हैं, पिछली बार अलग हो गये थे. बीजेपी ने सरकार भी बनायी तो शिवसेना नहीं बल्कि एनसीपी के सपोर्ट से. ये बात अलग है कि बाद में दोनों ने हाथ मिला कर एनसीपी को किनारे कर दिया.

जिस हिसाब से एनसीपी और कांग्रेस नेताओं ने पार्टी छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन किया है, उससे तो यही लग रहा था कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी विरोधियों का पूरी तरह सफाया कर देगी. मगर, ऐसा नहीं होने जा रहा है अगर ओपिनियन पोल की मानें.

narendra modiजीत भले पक्की हो, सीटें कितनी आ रही हैं?

2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 122 सीटें मिली थीं जबकि शिवसेना के 63 विधायक चुने गये थे. इस बार दोनों दल गठबंधन कर साथ चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए अगर दोनों की पिछली बार की सीटें जोड़ दें तो ये संख्या 185 हो जाती है.

ओपिनियन पोल में इस बार बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के हिस्से में 225-232 सीटों का अनुमान लगाया जा रहा है. जन की बात पोल के मुताबिक इस बार बीजेपी को 142-147 सीटें मिल सकती हैं जबकि शिवसेना को 83 से 85. इससे पहले एबीपी न्यूज-सी वोटर के ओपिनियन पोल में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 200 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था.

जन की बात ओपिनियन पोल भी महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को 48-52 सीटें मिलने का अनुमान लगा रहा है. एबीसी न्यूज-सी वोटर पोल में भी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के 55 सीटें जीतने का अनुमान लगाया गया था.

ओपिनियन पोल के हिसाब से तो कहीं से भी नहीं लगता कि महाराष्ट्र से कांग्रेस और एनसीपी का पूरी तरह सफाया होने जा रहा है.

हरियाणा में '75 पार' होना मुश्किल

2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने 300 से ज्यादा लोक सभा सीटें जीतने का दावा किया था, जीत भी लिया. हरियाणा चुनाव में बीजेपी का स्लोगन है - अबकी बार 75 पार. हो सकता है बीजेपी 2014 के मुकाबले इस बार ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हो, लेकिन ओपिनियन पोल भी पार्टी के लक्ष्य को पूरा होते नहीं देख रहे हैं.

2014 में हरियाणा की 90 सीटों में से बीजेपी के हिस्से में 47 आयी थीं जबकि कांग्रेस ने 15 सीटें जीती थी. हालांकि, दूसरे नंबर पर INLD रही जिसके 19 MLA विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे. तब दो सीटें हरियाणा जनहित पार्टी और एक-एक शिरोमणि अकाली दल और बीएसपी के खाते में जा पहुंची थीं. पांच निर्दलीय भी विधायक बने थे.

रिपब्लिक-जन की बात के ओपिनियन पोल में दावा किया गया है कि सत्ताधारी बीजेपी को हरियाणा में 58 से 70 सीटें जीतने की संभावना बन रही है. पोल के मुताबिक कांग्रेस भी 12 से 18 सीटें जीत सकती है. पोल के मुताबिक, साल भर से भी उम्र में छोटी जननायक जनता पार्टी के खाते में 5-8 सीटें आ सकती हैं.

अगर ओपिनियन पोल पर ध्यान दें तो कई बातें समझने वाली हैं. पहली बात तो बीजेपी 75 के पार जाने से रही. पोल में बीजेपी के खाते में कम से कम 58 सीटों की संभावना जतायी गयी है जिससे साफ है कि पार्टी 2014 के मुकाबले ज्यादा सीटें लाने में कामयाब हो सकती है. वैसे भी अगर बीजेपी का नंबर 75 पार नहीं भी आता और पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें भी आती हैं तो कम महत्वपूर्ण बात नहीं है. जाट आरक्षण और बेरोजगारी के मुद्दे पर घिरे होने और सत्ता विरोधी लहर को मात देकर पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें हासिल करना भी मनोहर लाल खट्टर जैसे मुख्यमंत्री के लिए कम बड़ी बात नहीं है. वरना, दो साल पहले तो खट्टर सरकार को निकम्मी सरकार बताया जाने लगा था. खासकर, गुरमीत राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद पंचकूला में हुई हिंसा को लेकर.

वैसे महीने भर पहले हुए एबीपी न्यूज-C Voter ओपिनियन पोल में बीजेपी के हिस्से में 46 फीसदी वोट शेयर जाने का अनुमान लगाया गया था - और इस हिसाब से बीजेपी के खाते में 78 सीटें संभावित मानी गयी थीं. हालांकि, उस ओपिनियन पोल में कांग्रेस को भी बढ़त बनाते माना गया था और बताया गया कि पार्टी हरियाणा में इस बार 22 सीटें जीत सकती है.

बीजेपी के लिए तो नहीं लेकिन कांग्रेस के लिए ये संख्या फिलहाल काफी ज्यादा लग रही है. वो भी ऐसे में जब हरियाणा में कांग्रेस के भीतर ही खुली जंग छिड़ी हुई हो. पांच साल तक PCC अध्यक्ष रहे अशोक तंवर कांग्रेस छोड़ चुके हैं और टिकट बंटवारे में भी उनके समर्थकों को हाशिये पर रखा गया है. जहां तक टिकटों का सवाल है तो भूपिंदर सिंह हुड्डा के दबदबे के चलते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा को भी अपने लोगों को टिकट दिलाने में बहुत मुश्किल हुई है.

पांच साल बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में हो रहे चुनावों के पैटर्न में कोई बदलाव नहीं लग रहा है. बीजेपी के पास कहने को जो बातें 2014 के आम चुनाव में थीं वे ही विधानसभा चुनावों में भी हावी रहीं. पांच साल बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी को वोट मांगने के लिए वही मुद्दा है जो आम चुनाव में रहा. राष्ट्रवाद, धारा 370 और वीर सावरकर बीजेपी के लिए जिताऊ चुनावी मुद्दे हैं - आखिर आम चुनाव में भी तो ये ही काम आये.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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