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Updated: 12 मई, 2023 04:57 PM
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वरना आज उद्धव ठाकरे को टेक्निकली गद्दी मिल ही जाती... दरअसल सुप्रीम फैसला नहीं एक बार फिर सुप्रीम बैलेंसिंग एक्ट हुआ है. बता भर दिया राज्यपाल का निर्णय असंवैधानिक था, स्पीकर का फरमान अवैध था, लेकिन बजाए उद्धव ठाकरे को राहत देने के शिंदे सरकार को राहत दे दी. वस्तुतः सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को एक मोरल स्टोरी कहा जाना चाहिए. एक नहीं कई मोरल हैं राजनीतिज्ञों के लिए. परंतु राजनीति में मोरल हाई ग्राउंड लेने की बात भर ही होती है, लेता कोई नहीं. हाँ, कभी ऐसा हो जाता है कि एक अवसरवादी या गलत कदम को कालांतर में नैतिक कदम बताने की राजनीति की जाती है और वही पीड़ित पक्ष यानि उद्धव गुट कर भी रहा है. आज सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले के बाद उद्धव ने मोरैलिटी कार्ड खेलते हुए कहा कि उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा दिया था. लेकिन उनकी नैतिकता देखिये उन्होंने नैतिकता का पैमाना ही बदल दिया. जब इस्तीफ़ा दिया था तब नैतिकता का पैमाना संख्या बल बताया था उन्होंने.

उस क्राइसिस में इस आत्मघाती कदम को उठाने के पहले उद्धव जी ने अपने सहयोगियों मसलन कांग्रेस और एनसीपी से चर्चा तक नहीं की थी, ऐसा स्वयं एनसीपी के पवार जी ने अपनी आत्मकथा में कहा है. साथ ही ये भी कहा है उद्धव को इस्तीफा नहीं देना चाहिए था. यानी इस्तीफा देना उद्धव की गलती थी. और शीर्ष अदालत ने भी उनके इस्तीफ़े को ही आधार बनाकर कहा कि चूंकि उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था अदालत उन्हें पुनर्स्थापित नहीं कर सकती. परंतु राजनेता की यूएसपी होती है इन्हें गलती का एहसास खूब होता है पर वे स्वीकार नहीं करते.

Uddhav Thakarey, Shivsena, Maharashtra, Eknath Shinde, Supreme Court, Verdict, Governor, Bhagat Singh Koshyariउद्धव शिंदे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सारा ठीकरा गवर्नर के सिर फोड़ दिया है

सो पोस्ट वर्डिक्ट भी उद्धव जी अपने नैतिकता वाले स्टैंड पर क़ायम रहे लेकिन पैमाना ज़रूर बदल दिया. उन्होंने हाई मोरल ग्राउंड लेते हुए कहा कि अपने ही साथियों की गद्दारी से वे इतने आहत हुए थे कि उनके लिए विश्वास करना मुश्किल था कि जिन लोगों को उनके पिता ने, पार्टी ने सब कुछ दिया, वे ही अविश्वास ले आये. विडंबना देखिये जिस नैतिकता के आधार पर, पैमाना जो भी रहा हो, उद्धव ने इस्तीफा दिया, वही शीर्ष अदालत के लिए तकनीकी आधार बन गया शिंदे सरकार को बर्खास्त न करने का.

और बेंच ने कहने से गुरेज़ भी नहीं किया कि यदि आपने इस्तीफ़ा ना दिया होता तो हम आपको बहाल कर सकते थे भले ही आप ट्रस्ट वोट हार भी जाते तो ! निर्णय का पोस्टमार्टम सरीखा खूब विश्लेषण हो रहा है, ऐसा लग रहा है मानो हर नेता, हर पत्रकार और हर सामाजिक कार्यकर्ता/ एक्टिविस्ट संवैधानिक बेंच की न्यायमूर्तियों से भी ज्यादा नॉलेज रखता हो, तभी तो निर्णय के ग्रे एरिया की बात की जा रही है.

और पॉलिटिकल क्लास से तो जब भी कोई कहता है निर्णय स्वागत योग्य है, न्यायालय का खूब सम्मान है, दिखावा ही करता है. लेकिन पांच न्यायमूर्तियों की संवैधानिक पीठ के फैसले पर एक सवाल तो जरूर है, विद ड्यू रिस्पेक्ट, महाराष्ट्र में सब गलत हुआ, फिर भी शिंदे सरकार क्यों चलती रहेगी ? क्यों ना कहें इस गलत में सुप्रीम कोर्ट भी शामिल रहा क्योंकि कोर्ट देख रहा था ?

आज कहते हैं फ्लोर टेस्ट बुलाना इल्लीगल था, नए व्हिप की नियुक्ति गलत थी, तो उस समय सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इंकार क्यों किया था ? बेचारे उद्धव जी दो दो बार शरणागत हुए थे गुहार लगाते हुए ! कुल मिलाकर इससे ज्यादा और क्या गलत हो सकता है कि एक गलत सरकार जनता पर शासन कर रही है ? कम से कम शीर्ष न्यायालय वर्तमान सरकार का निलंबन करते हुए पुनः चुनाव कराये जाने का आदेश तो दे ही सकता था ?

निर्णय पर दोनों ही पक्ष गदगद है, एक हार में भी नैतिक जीत का झुनझुना बजा रहा है और दूसरा लोकतंत्र की जीत बता रहा है.जबकि निर्णय सिर्फ और सिर्फ ऐकडेमिक ही है क्योंकि प्रथम तो स्पीकर डिसक्वॉलिफिकेशन पर निर्णय टालेगा चूंकि साल भर ही तो टालना है और दूजे सात जजों की संवैधानिक बेंच बने, तब तक शिंदे सरकार बड़े आराम से टर्म पूरा कर ही लेगी. 

तो वो अंग्रेजी में कहते हैं बाय डिफ़ॉल्ट सरकार के लिए डिफंक्ट ऑर्डर ! सो स्पष्ट हुआ निर्णय बतौर नजीर आगे काम जरुए आएगा.फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्षों से उद्धव गुट इसलिए खुश है कि उसे जनता को यह समझाना आसान होगा कि किस तरह महाविकास अघाड़ी सरकार को अवैध तरीके से गिराया गया. 

हां पता नहीं क्यों उद्धव जी के लिए पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी खूब गदगद थे बावजूद इस तथ्य के कि भले ही शीर्ष न्यायालय ने उनके तमाम आर्ग्युमेंट्स से सहमति जता दी कि राज्यापाल ने गलत किया, स्पीकर ने गलत किया लेकिन उनकी उद्धव सरकार को बहाल करने की मुख्य प्रेयर को ही ठुकरा दिया. दरअसल सिंघवी अब वकील कम पॉलिटिशियन ज्यादा हैं.

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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