राज्यसभा में बहुमत मिलते ही भाजपा को 'पंख' लग जाएंगे !
जुलाई में बीजेपी एक और इतिहास बनाएगी जब राज्यसभा में कांग्रेस को पीछे छोड़ देगी. देश के अधिकतर राज्यों में पहले ही भाजपा की सरकार बन चुकी है और अब राज्यसभा में भी इसका कद बढ़ जाएगा.
-
Total Shares
भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार राज्यसभा में भाजपा और कांग्रेस के एक बराबर सांसद होंगे- 57. लेकिन इस साल जुलाई में भाजपा, कांग्रेस को पीछे छोड़ देगी, जब उच्च सदन में भाजपा के 13 सांसद जुड़ेंगे और कांग्रेस के 10 सांसद घट जाएंगे. मतलब राज्यसभा में भाजपा के 70 सांसद हो जाएंगे और कांग्रेस के 47 रह जाएंगे.
मोदी और शाह की जोड़ी में फिर से खड़ी हुई भाजपा, संसदीय इतिहास में पहली बार राज्यसभा में कांग्रेस को पछाड़ने के कगार पर है. हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए को 245 सीटों वाली राज्यसभा में पूर्ण बहुमत पाने के लिए अभी भी 2020 तक का इंतजार करना पड़ेगा. वो भी तब जब भाजपा 26 मई 2014 के बाद से अब तक के अपने जीत के सफर को इसी तरह से बनाए रख पाती है.
राज्यसभा में पार्टियों की 6 जनवरी तक की स्थिति जानने के लिए नीचे की तस्वीर देखें-
जनवरी में राज्यसभा की स्थिति
राज्यसभा में नंबरों के लिहाज से भाजपा की आज से बेहतर स्थिति कभी नहीं थी. भाजपा आज तक राज्यसभा में पारंपरिक तौर पर अल्पसंख्यक ही रही है. लेकिन मोदी और शाह की ईवीएम (Election winning machine) ने पार्टी के सारे इतिहास, भूगोल ही बदल डाले. राज्यसभा में बहुमत मिलते ही न सिर्फ संसद में ही बदलाव आएगा बल्कि राजनीतिक परिवर्तन भी होगा.
कैसे वो देखिए-
- विपक्ष का राजनीतिक पतन:
राज्यसभा में भाजपा को बढ़त मिलने से विपक्ष का पतन हो जाएगा. इसका सबसे सटीक उदाहरण ट्रिपल तलाक का मुद्दा है. लोकसभा में इस मुद्दे पर विपक्ष कुछ नहीं कर पाया क्योंकि बहुमत भाजपा के पास था. लेकिन राज्यसभा में इस मुद्दे को लटका दिया. इसके बाद भाजपा के दो सहयोगी दलों टीडीपी और शिव सेना ने भी इस मुद्दे पर सरकार का साथ छोड़ दिया.
ये और बात है कि इन दोनों ही क्षेत्रीय पार्टियों के अपने हित हैं. टीडीपी को अपना मुस्लिम वोट बैंक बचाना है तो वहीं शिवसेना, एनसीपी को बाहर करके कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना चाहती है. बहुत संभव है कि 2019 के चुनावों में एनसीपी, भाजपा के साथ गठबंधन कर ले और शिवसेना, कांग्रेस का दामन थाम ले.
लेकिन जुलाई के बाद विपक्ष ट्रिपल तलाक वाला विरोध करने से हिचकेगा.
- अध्यादेश की अब जरुरत नहीं पड़ेगी:
राज्यसभा में भाजपा को बढ़त मिलने का मतलब है कि अब किसी बिल को पास करने के लिए पहले की तरह अब उन्हें अध्यादेश लाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. सबसे बड़ी बात की अब भाजपा को अपने जरुरी बिल मनी बिल के सहारे पास करने की जरुरत नहीं पड़ेगी. जैसा की अभी तक सरकार करती आई है.
इन दोनों ही मुद्दों पर सरकार को कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है. जुलाई के बाद राज्यसभा में बहुमत मिलने के बाद सरकार को इस तरह के तरीके अपनाने की जरुरत नहीं पड़ेगी.
- आर्टिकल 35ए जैसे छोटे मुद्दों पर भाजपा को फायदा होगा:
राज्यसभा में पहली बार भाजपा कांग्रेस को पीछे छोड़ देगी
राज्यसभा में बहुमत मिलने के बाद से सरकार को आर्टिकल 35ए जैसे मुद्दों पर फायदा मिल जाएगा. आर्टिकल 35ए सरकार के एजेंडे में है लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण इसमें निराशा ही हाथ लगी है. 1954 में नेहरु सरकार ने संविधान में आर्टिकल 35ए को जोड़ा था. इस अनुच्छेद में राज्य के 'स्थायी निवासियों' को खास अधिकार दिए गए हैं और राज्य सरकारों को ये अधिकार देता है कि वो अपने स्थायी निवासियों को खास तवज्जो दे सकती है, उन्हें अधिकार दे सकती है. इस अधिकार को We The People नाम के एनजीओ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया था और केस अभी कोर्ट के पास है.
लेकिन राज्यसभा में बहुमत मिलते ही सरकार इस अनुच्छेद को खत्म कर सकती है. जिसके बाद एनजीओ अपना केस कोर्ट से वापस ले सकती है.
- बड़े कदम उठाने के लिए भाजपा को इंतजार करना होगा:
हालांकि यूनीफॉर्म सिविल कोर्ट, आर्टिकल 370 को खत्म करना, लोकसभा और सभी राज्यों के चुनाव एक साथ करवाने जैसे बड़े मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले लंबा इंतजार करना होगा. इसके पीछे कारण है- संविधान संशोधन करना. और संविधान संशोधन में दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत और कम से कम 15 राज्यों का समर्थन चाहिए होगा.
राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत पाने से भाजपा अभी कोसों दूर है. ये भाजपा का एजेंडा 2019 को चुनावों के बाद बनेगा.
ये भी पढ़ें-
दिग्विजय सिंह की पदयात्रा में दिख रही है नर्मदा की लहरों से उठती सियासी तरंगे
Budget 2018 : आम आदमी के लिए सरकार का ये प्लान अच्छा है, मगर कहीं फिर धोखा न हो जाए
आपकी राय