नौबत कहीं ऐसी ना आ जाए, खड़गे निर्विरोध चुन लिए जाएं?
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव होने हैं. ऐसा लगता है अध्यक्ष किसे बनाना है, इसकी पटकथा पहले से ही लिखकर रख दी गई है. जो हो रहा है वो रामलीला के मंचन जैसा है. खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनने का मतलब है, कमान अप्रत्यक्ष रूप से गांधी परिवार के ही पास रहेगी. वोटिंग 17 तारीख को होनी है, लेकिन उसके आतेआते परिणाम शायद पहले ही घोषित हो जाएं, वोटिंग की नौबत ही ना आए.
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सस्पेंस और हॉरर हिंदी फिल्म की तरह हो गया है कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव. प्रत्येक घंटे कुछ ना कुछ अप्रत्याशित बदलाव हो रहे हैं. कौन नामांकन भर रहा है, कौन पीछे हट रहा है, यही ड्रामा बीते कुछ दिनों से दिल्ली के 24 अकबर रोड़ स्थिति कांग्रेस मुख्यालय पर देखने को मिल रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर लगाए गए राजनैतिक पंड़ितों के भी अभी तक के सभी कयास फेल हो गए हैं. कहानी अब मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर पर आकर रूक गई है. जबकि, शुरूआत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से हुई थी. रेस में उनके पिछड़ने के बाद दूसरे कांग्रेस के कदावर नेताओं जैसे दिग्विजय सिंह व कमलनाथ ना जाने कितने धुरंधरों के ईदगिर्द अध्यक्ष बनने की गेंद घूमती रही. पर, कहानी में घंटे-घंटे भर बाद मोड़ कुछ ऐसे आए जिससे उपरोक्त नाम एक-एक करके किनारे होते गए. इसी दरम्यान मौजूदा अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपनी चुप्पी तोड़ी और अपने सबसे वफादार नेता कमलनाथ के नाम पर उन्होंने गर्दन हिलाकर स्वीकृति देकर उन्हें रात में ही भोपाल से दिल्ली तलब किया. लेकिन जब वह आए तो उन्होंने अपनी भविष्य की राजनीतिक महत्वकांक्षा सोनिया गांधी को बताकर कांग्रेस अध्यक्ष पद के संभावित उम्मीदवार से अपना नाम हटवा लिया.
पक्ष में जैसे समीकरण बन रहे हैं माना यही जा रहा है कि कांग्रेस के अध्यक्ष खड़गे ही बनेंगे
दरअसल, अगले साल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां कमलनाथ खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर देख रहे हैं. क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद मुख्यमंत्री उम्मीदवारी में उनका नाम सबसे आगे है जिनमें दिल्ली के शीर्ष नेतृत्व की भी हामी है. हालांकि इस कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी कतार में हैं. पर, उनकी दावेदारी कई कारणों से कमलनाथ के मुकाबले कमजोर है. लेकिन, मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा उनमें भी कमलनाथ से कम नहीं है. उनके भीतर भी रात दिन मुख्यमंत्री बनने के सपने हिलोरे मारते हैं.
इसी कारण उन्होंने भी कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी में कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. अगले वर्ष मध्यप्रदेश में जब विधानसभा के चुनाव होंगे, तब वहां मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह में अच्छे से ठनेगी, इसकी आशंका भी अभी से जग गई है. कुलमिलाकर, अघ्यक्ष पद का चुनाव अब दिलचस्प मोड़ पर आ चुका है. सबसे बड़ा सवाल ये है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने अब खड़ा कौन हो पाएगा? उनके कद के नेता शशि थरूर को नहीं माना जा रहा. जबकि, कतार में अब ये दो ही बचे हैं.
इस लिहाज से कहीं समय आते-आते ऐसा ना हो, कि मल्लिकार्जुन खड़गे निर्विरोध अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हो जाएं. क्योंकि कतार के तीसरे उम्मीदवार केएन त्रिपाठी का भी नांमाकन रद हो चुका है. दोनों नामों पर अगर गौर करें, तो दोनों की आपस में कोई समानता नहीं. खड़गे को गांधी परिवार का निकट माना जाता है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी उन्हें पसंद करते हैं, वो परिवार और पार्टी के प्रति निष्ठावान और वफादार हैं. उन्होंने कर्नाटक में मजदूर राजनीति से अपना करियर आरंभ किया था.
1972 से 2008 तक लगातार कर्नाटक के कलबुर्गी से विधायक रहे. वर्ष 2004 और 2009 में लोकसभा का चुनाव जीता. राज्यसभा में उन्होंने पार्टी का पक्ष मजबूती से रखा. राजनीतिक सफलता के कई अध्याय उनसे जुड़े हैं. वहीं, उनके मुकाबले जब बात शशि थरूर की आती है, जो उनके पहाड़ जैसे सियासी अनुभव के समक्ष जरा भी नहीं टिकते. थरूर का सियासी सफर ना ज्यादा लंबा है और ना ही ज्यादा अच्छा? कॉलेज के दिनों में राजनीति में कदम रखा और दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज का अध्यक्षी चुनाव जीता था. उसके संयुक्त राष्ट्र सभा में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया, वहां से इस्तीफा देकर वर्ष-2009 में कांग्रेस से जुड़े और थिरुअनंतपुरम से लोकसभा का चुनाव जीता.
विवादों से उनका गहरा नाता है. उनके रंगीन मिजाज अंदाज से तो सभी वाकिफ हैं ही, साथ ही अपनी पत्नी की कथित मौत को लेकर भी अभी तक घिरे हुए हैं. भाजपा उन पर हमेशा महिलाओं को लेकर मीम बनाती रहती है. इस लिहाज से थरूर खड़गे के सामने खड़े नहीं हो सकते. चुनाव की अच्छी बात ये है, पलपल की सूचनाएं केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण बनाए गए मधुसूदन मिस्त्री की ओर से सार्वजनिक की जा रही हैं. वैसे, कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पहले भी जब-जब चुनाव हुए, उसमें ठीक वैसी ही प्रक्रिया अपनाई गई, जैसी राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति चुनावों में होती रही है.
ये चुनाव भी राज्य-केंद्रीय स्तर के चुने या नामित डेलीगेट से होता है. इस समय कांग्रेस पार्टी के करीब 9,100 डेलीगेट हैं, जो इस चुनाव में अपना वोट डालेंगे. अंदेशा ऐसा भी होने लगा है कि कहीं कांग्रेस अध्यक्ष पद पहले से तो फिक्स नहीं है. जो हो रहा है वो सिर्फ डृमा मात्र है, सिर्फ दिखावा किया जा रहा है. क्या पार्टी की कमान गांधी परिवार अपने किसी खासमखास के पास ही रखना चाहती है. गाड़ी का चालक अपनी पसंद का ही चाहते हैं. तभी कहानी घूमफिरकर मिल्लकार्जुन खड़गे पर ही रूक गई, जबकि मौजूदा समय में कई ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उपयुक्त हैं.
ऐसा लगता है अध्यक्ष किसे बनाना है, इसकी पटकथा पहले से ही लिखकर रख दी गई है. जो हो रहा है वो रामलीला के मंचन जैसा है. खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनने का मतलब है, कमान अप्रत्यक्ष रूप से गांधी परिवार के ही पास रहेगी. वोटिंग 17 तारीख को होनी है, लेकिन उसके आतेआते परिणाम शायद पहले ही घोषित हो जाएं, वोटिंग की नौबत ही ना आए. हालांकि दिखावे के लिए थरूर की सक्रियता बढ़ी हुई प्रचारित की जा रही है. लेकिन अंतिम परिणाम क्या होगा जिसकी तस्वीर तकरीबन अब साफ हो चुकी है.
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