ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी तो एक दूसरे का चुनाव प्रचार ही करने लगे
हर जंग में एक पक्ष की हार जरूर होती है. ये सिर्फ ममता बनर्जी बनाम मोदी-शाह की लड़ाई है जिसमें दोनों फायदे में हैं. इस लड़ाई ने बंगाल में बीजेपी की जमीन को उपजाऊ तो बनाया ही है, ममता भी तेजी से राष्ट्रीय स्तर पर उभरने लगी हैं.
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किसी राजनीतिक उपक्रम से अगर दोनों पक्षों को लाभ हो तो उसे लड़ाई कैसे कह सकते हैं? जिसे ममता बनर्जी बनाम नरेंद्र मोदी की जंग बताया जा रहा है उसमें यही तो हो रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितना ज्यादा पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर हमलावर होते जा रहे हैं - सूबे में बीजेपी उतनी ही मजबूती से अपने पांव जमाने लगी है. ममता बनर्जी जैसे जैसे केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक होती जा रही हैं उनका कद राष्ट्रीय फलक पर उभरता जा रहा है.
ममता बनर्जी का कहना है कि वो विपक्षी दलों के साथ मिल कर केंद्र की बीजेपी सरकार को सत्ता से बेदखल करके ही दम लेंगी. नरेंद्र मोदी कह रहे हैं वो तब तक चैन नहीं लेने वाले जब तक वो अपने मिशन को अंजाम तक नहीं पहुंचा लेते.
मोदी का सवाल - चायवालों से चिढ़ क्यों?
एक हफ्ते के भीतर पश्चिम बंगाल में तीसरी रैली करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जलपाईगुड़ी पहुंचे और लोगों को इलाके की शोहरत के कारण बताये. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'ये पूरा उत्तर बंगाल तीन - टी के लिए चर्चित है... एक टी यानी चाय, दूसरा टिंबर और तीसरा टूरिज्म... तीनों को बेरूखी का शिकार होना पड़ा है - चाहे कोलकाता में कम्युनिस्टों की सरकार रही हो या कम्युनिस्ट पार्ट-टू यानी टीएमसी की सरकार रही हो.'
लोगों को मोदी बताते हैं कि कैसे उनकी सरकार ने बंद पड़े बागानों को तो खुलवाया ही, चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों के बैंक में खाते खुलवाये.
फिर मोदी लोगों से अपना रिश्ता समझाते हैं और इसी में ममता बनर्जी पर हमले की वजह ढूंढ लेते हैं. ये इलाका ममता बनर्जी का गढ़ माना जाता है. प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, 'नॉर्थ बंगाल से मेरा एक खास रिश्ता भी है - और ये रिश्ता आपको भी मालूम है. ये रिश्ता चाय का रिश्ता है... आप चाय उगाने वाले हैं और मैं चाय बनाने वाला हूं... यहां की चाय देश और दुनिया बड़े चाव से पीती है... चाय की बात करते हुए ही मेरे मन में ये भी सवाल आता है कि आखिर चायवालों से दीदी को इतनी चिढ़ क्यों है?'
मोदी का इल्माम - माटी बदनाम, मानुष मजबूर
मोदी समझाते हैं कि पहले वाली वाम मोर्चे की सरकार और ममता बनर्जी के शासन में कोई फर्क नहीं है. ममता बनर्जी की सरकार ने माटी को बदनाम कर दिया है - और मानुष को मजबूर कर दिया है. दरअसल, ममता बनर्जी ने मां, माटी और मानुष के नाम पर ही लेफ्ट शासन को हटाकर अपनी सरकार बनायी. मोदी उसी पर जानबूझ कर चोट करते हैं. इसी क्रम में ममता सरकार को कम्युनिस्ट पार्ट दो करार देते हैं.
कोलकाता के बाद ममता बनर्जी की नजर दिल्ली पर
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की बात मानकर ममता बनर्जी ने तीन दिन बाद कोलकाता के मेट्रो चैनल पर अपना धरना खत्म कर दिया था. साथ ही, हफ्ते भर बाद ही दिल्ली में मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोल का ऐलान कर दिया. हल्लाबोल के लिए पक्की तो नहीं लेकिन संभावित तारीखें 12 से 14 फरवरी के बीच हो सकती है, ऐसी चर्चा है.
मोदी का सवाल - दीदी को चायवालों से चिढ़ क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच में सहयोग के लिए कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार शिलॉन्ग में हैं. इस केस की अगली सुनवाई 20 फरवरी को होनी है. अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के डीजीपी, मुख्य सचिव और कोलकाता पुलिस कमिश्नर से 18 फरवरी तक जवाब तलब किया है.
ममता बनर्जी की कोलकाता में हुई यूनाइटेड इंडिया रैली के बाद वैसी ही एक रैली आंध्र प्रदेश के अमरावती और दिल्ली में ही होने वाली है. दिल्ली के लिए तो अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तैयारी में भी जुटी हुई बतायी जाती है.
ये लड़ाई है या म्युचुअल प्रमोशन?
ममता बनर्जी कोलकाता के पुलिस कमिश्नर के साथ साथ अखिलेश यादव से लेकर रॉबर्ट वाड्रा तक, हर केस की राजनीतिक लड़ाई लड़ रही हैं. ममता बनर्जी को भी ये तो मालूम रहा ही होगा कि कोलकाता पुलिस कमिश्नर के मामले में खास दम नहीं है, लेकिन हंगामा करने के लिए तो काफी रहा. कोलकाता की यूनाइटेड इंडिया रैली में ममता बनर्जी ने मंच पर काफी अच्छी जमघट लगायी थी, फिर भी जम्मू-कश्मीर से महबूबा मुफ्ती और ओडिशा से उमर अब्दुल्ला छूट गये थे. इस कमी को सीबीआई के खिलाफ धरने में महबूबा मुफ्ती का सपोर्ट पाकर ममता ने हासिल कर लिया.
ये प्रधानमंत्री मोदी ही हैं जिनके नाम पर ममता बनर्जी पूरे विपक्ष को एकजुट कर पा रही हैं - और वो खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के ख्वाब देखने लगी हैं. मोदी इस पर भी ममता को घेरने का मौका नहीं चूकते. कहते हैं, 'दीदी, दिल्ली जाने के लिए परेशान हैं और बंगाल के गरीब और मध्यम वर्ग को सिंडिकेट के गठबंधन से लुटने के लिए छोड़ दिया है... स्थिति ये है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तो दीदी हैं, लेकिन दादागिरी किसी और की चल रही है, शासन तृणमूल के ‘जगाई-मधाई’ चला रहे हैं.'
पूरे विपक्ष को एकजुट करना हर नेता के लिए बड़ी चुनौती रही है, मगर मोदी के नाम पर ये काम आसान हो जा रहा है. ममता बनर्जी भी इस बात का फायदा उठाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रही हैं. नीतीश कुमार ने भी विपक्ष को एकजुट करने की खूब कोशिश की और थक हार कर उसी पाले में चले गये जिसके खिलाफ मोर्चेबंदी कर रहे थे. सोनिया गांधी ने भी विपक्ष को एक मंच पर लाने की कोशिश में कोई कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन कोई न कोई कोना किसी न किसी छूट ही जाता रहा. कर्नाटक में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथ के मौके पर जो नेता जुटे थे वे सब वैसे ही पहुंचे थे जैसे कोई शादी की पार्टियों में पहुंचता है - लेकिन कोलकाता रैली की बात अलग रही.
पश्चिम बंगाल बीजेपी की टास्क लिस्ट में ऊपर तो रहा है, लेकिन वैसा भी नहीं जैसा फिलहाल नजर आ रहा है. अब तो ऐसा लग रहा है जैसे बीजेपी नेतृत्व यूपी जितनी अहमियत पश्चिम बंगाल को देने लगा है. यूपी में जहां अमित शाह 74 सीटों का दावा करते हैं, वहीं पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से अब भी 22 से 23 तक ही लक्ष्य पहुंचा दिया है. ये बात अलग है कि 2014 में बीजेपी के हिस्से में दो ही लोक सभा सीटें आयी थीं. अमित शाह के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी भी पश्चिम बंगाल में धड़ाधड़ रैलियां करते जा रहे हैं. अमित शाह जहां कहीं भी होते हैं वहीं से ममता बनर्जी को टारगेट कर लेते हैं. बीजेपी के दूसरे नेताओं का भी यही हाल है.
हर जंग में दोनों में से किसी एक पक्ष की हार जरूर होती है. ये सिर्फ ममता बनर्जी बनाम मोदी-शाह की लड़ाई है जिसमें दोनों पक्षों को सिर्फ फायदा ही फायदा हो रहा है. लड़ाई ने एक तरफ तो बंगाल में बीजेपी की राह आसान कर दी है, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी विपक्षी खेमे के नेताओं को पछाड़ने लगी हैं.
थोड़ा ध्यान दें तो मालूम होता है कि दोनों ही नेता एक दूसरे के राजनीतिक हथियारों के लिए जरूरत के सारे गोला बारूद उपलब्ध करा रहे हैं. सीबीआई के एक्शन के खिलाफ ममता बनर्जी अपने पुलिस अफसरों के साथ धरने पर बैठ जाती हैं, तो तृणमूल कांग्रेस नेता पर हमले के लिए प्रधानमंत्री मोदी उसी बात को हथियार बना लेते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी कहने लगते हैं कि पहली बार देखने को मिल रहा है कि कोई मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपी को बचाने के लिए धरने पर बैठ रहा है. इसी बहाने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ार्ई के बिगुल की आवाज मोदी फिर से तेज कर पाते हैं. जलपाईगुड़ी में मोदी कहते हैं - 'आज वो पूरी तरह से मोदी से त्रस्त है, तो पूरी तरह से भ्रष्ट है.'
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था, 'भ्रष्टाचार के खिलाफ मेरी लड़ाई ने तृणमूल सहित कई लोगों के पंख काट दिये हैं, इसलिए वे सब कोलकाता में जमा होकर मुझे गालियां दे रहे हैं. वे सब अपने भ्रष्टाचार को छिपाने और अपने परिवारवालों को बचाने के लिए एक साथ आये हैं. मैं तब तक शांत नहीं बैठूंगा, जब तक सारे भ्रष्टाचारियों को सजा नहीं मिल जाती.'
हो सकता है बीजेपी नेतृत्व को भी ममता बनर्जी के दिल्ली में हंगामे का इंतजार हो - आखिर लड़ाई के नाम पर म्युचुअल प्रमोशन भी तो तभी हो पाएगा. है कि नहीं?
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