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Updated: 18 सितम्बर, 2021 05:08 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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मिशन 2024 के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और भाजपा (BJP) के खिलाफ साझा विपक्ष के नेतृत्व को लेकर घमासान की स्थिति बनने लगी है. ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने अब खुले तौर पर घोषणा कर दी है कि साझा विपक्ष (Opposition) का नेतृत्व अब वो ही करेंगी. तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने बता दिया है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ विकल्प के रूप में उभरने में नाकाम रहे हैं. कांग्रेस (Congress) की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के साझा विपक्ष की तैयारियों में जुटी तृणमूल कांग्रेस ने अपने बंगाली मुखपत्र 'जागो बांग्ला' में 'राहुल गांधी विफल, ममता हैं विकल्प' के हेडिंग से एक लेख के सहारे कांग्रेस सांसद की उन सभी कोशिशों को कमतर बताया, जो वह भाजपा के खिलाफ नेतृत्व की कमान पाने के लिए कर रहे हैं. वैसे, टाइम मैग्जीन की साल 2021 के 100 प्रभावशाली लोगों की लिस्ट (Time Influential List) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ममता बनर्जी का नाम शामिल होने के बाद तृणमूल कांग्रेस का उत्साहित होना सही है. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि साझा विपक्ष के नेतृत्व पर ममता ने दावा तो ठोंक दिया, लेकिन उनका साथ कौन देगा?

टाइम मैग्जीन की 100 प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में पीएम मोदी के साथ ममता बनर्जी का नाम शामिल होना तृणमूल कांग्रेस को उत्साहित करेगा ही.टाइम मैग्जीन की 100 प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में पीएम मोदी के साथ ममता बनर्जी का नाम शामिल होना तृणमूल कांग्रेस को उत्साहित करेगा ही.

मोदी के सामने ताकतवर चेहरा तो हैं, लेकिन...

लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद पर पहुंची ममता बनर्जी ने इसी साल हुए सूबे के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सत्ता में आने के ख्वाब को बुरी तरह से चकनाचूर कर दिया था. चुनाव के दौरान ही ममता बनर्जी ने 'एक पैर पर पश्चिम बंगाल और दो पैरों पर दिल्ली' जीतने की घोषणा कर दी थी. बंगाल में मुख्यमंत्री बनकर फतेह हासिल करने के साथ ही उन्होंने दिल्ली के लिए तैयारियां शुरू कर दी थीं. नरेंद्र मोदी सरकार के हर फैसले को कटघरे में खड़ा करने से लेकर राज्य में ऑपरेशन ग्रास फ्लावर चलाकर ममता बनर्जी ने भाजपा को हरसंभव तरीके से घेरने की कोशिश की है. कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी के सामने 'दीदी' एक ताकतवर चेहरा बनकर उभरी हैं, जो भाजपा से लोहा लेने में पीछे नहीं हटता है. लेकिन, ममता बनर्जी के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि वो पश्चिम बंगाल से बंधी हुई नजर आती हैं. हालांकि, हिंदी दिवस पर ट्वीट के सहारे उन्होंने इस 'बंगाल की बेटी' वाली छवि से निकलने की कोशिश जरूर की है. लेकिन, उन पर लगा बंगाल का टैग इतनी आसानी से नहीं हटेगा. क्योंकि, पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान मां-माटी-मानुष से लेकर बंगाली अस्मिता और संस्कृति तक पूरे चुनाव प्रचार में उन्होंने बांग्ला भाषा में भाजपा को बाहरी साबित किया था. हिंदी प्रेम दर्शाकर ममता बनर्जी लोकसभा की तैयारी तो कर सकती हैं, लेकिन केवल पश्चिम बंगाल में ही.

अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं दोगुनी तैयारी

भले ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा को चारों खाने चित्त करने वाली ममता बनर्जी देश में विपक्ष की राजनीति का एक बड़ा चेहरा बनकर उभरी हैं. लेकिन, इस मामले में उनसे कई हाथ आगे और आक्रामक तरीके से अपनी आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) का विस्तार करने की कोशिश अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं. 2014 और 2019 में दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से एक पर भी जीत नहीं दर्ज कर पाए अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अच्छी तरह से जानते हैं कि आम आदमी पार्टी का अन्य राज्यों में विस्तार ही उन्हें नरेंद्र मोदी और भाजपा से मजबूती के साथ लड़ने वाले नेता के तौर पर स्थापित कर सकता है. और, उनकी पार्टी विस्तार की ये योजना काफी हद तक अगले साल होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों पर टिकी हुई है.

हालिया सामने आए एक सर्वे में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को मजबूत स्थिति में पहुंचता हुआ दिखाया गया है. कांग्रेस आलाकमान द्वारा पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह से इस्तीफे की मांग के बाद इस बात की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है कि आम आदमी पार्टी पंजाब में बेहतरीन प्रदर्शन कर सकती है. वहीं, अरविंद केजरीवाल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में किसी भी तरह से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हो जाते हैं, तो ये उनके लिए फायदे का सौदा ही होगा. अगर परिणाम केजरीवाल के पक्ष में रहे, तो साझा विपक्ष के नेतृत्व पर दावा ठोंक रहीं ममता बनर्जी कब पार्श्व में चली जाएंगी, पता भी नहीं चलेगा.

10 राज्यों में चुनावी मुकाबला सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होना है.10 राज्यों में चुनावी मुकाबला सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होना है.

राहुल ने किया करिश्मा, तब क्या होगा

बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की जीत पर उत्साह से लबरेज तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने अपने लेख में राहुल गांधी को असफल बताया है. लेकिन, वो ये भूल रहे हैं कि पश्चिम बंगाल केवल एक राज्य है. अगले साल की पहली तिमाही में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से इतर 2024 से पहले 14 राज्यों में चुनाव होने हैं. इनमें से 10 राज्यों में चुनावी मुकाबला सीधे तौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होना है. राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में ममता बनर्जी की मौजूदगी की बात छोड़िए, इन राज्यों में शायद ही कोई उनके नाम पर किसी तरह की चर्चा भी करता होगा. अगर इन तमाम राज्यों में राहुल गांधी कोई करिश्मा कर देते हैं, तो साझा विपक्ष का वैकल्पिक चेहरा बन रहीं ममता बनर्जी का सपना टूटने में जरा भी देर नहीं लगेगी. कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी होने के साथ ही करीब 20 फीसदी वोटबैंक बेस रखती है. जो ममता बनर्जी समेत यूपीए के कई घटक दलों की कल्पना से भी ज्यादा है.

साझा विपक्ष में तो हर पार्टी पीएम पद की दावेदार

साझा विपक्ष की कोशिशों में मुख्य समस्या यही है कि इस गठबंधन का चेहरा कौन बनेगा? अगर ममता बनर्जी केवल मोदी विरोध के सहारे भाजपा के खिलाफ तैयार किये जा रहे साझा विपक्ष के नेतृत्व की कमान अपने हाथ में लेना चाहती हैं, तो वह भूल रही हैं कि पश्चिम बंगाल में केवल 42 लोकसभा सीट हैं. 2024 लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी सभी 42 सीटों (जिनमें से 18 पर अभी भाजपा का कब्जा है) पर जीत हासिल कर लेती हैं, तो भी उन्होंने समझना चाहिए कि लोकसभा सीटों के आधार पर देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है. अगर ममता बनर्जी के 42 सीटें जीतने की संभावना बनती है, तो निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश में भी सपा-बसपा में से किसी एक क्षत्रप का वर्चस्व कायम होगा. अगर ऐसा होता है, तो ममता बनर्जी का प्रधानमंत्री बनना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा. वहीं, इस मामले में 48 लोकसभा सीटों वाला प्रदेश महाराष्ट्र भी उनसे आगे ही है. एनसीपी चीफ शरद पवार का आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव समेत विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकातों का दौर पहले से ही जारी है. और, उनकी मुलाकातों की वजह निश्चित रूप से 48 लोकसभा सीटों का संख्याबल ही है.

इससे इतर अगर अरविंद केजरीवाल अपने पार्टी विस्तार की योजनाओं में कामयाब हो जाते हैं, तो ममता बनर्जी को चुनौती देने में सबसे आगे वही नजर आएंगे. साफ-सुथरी राजनीति करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जेडीयू (JDU) ने भी अभी हाल ही में उन्हें पीएम मेटेरियल बताया था. लेकिन, नीतीश कुमार ने खुद ही इसका खंडन कर दिया था. अगर 2024 से पहले भाजपा और नरेंद्र मोदी विरोधी परिस्थितियां बनती हैं, तो नीतीश कुमार को भी पाला बदलने में देर नही लगेगी. वहीं, देश के अन्य राज्यों के विपक्षी दलों के प्रमुखों को अपने साथ लाकर ममता बनर्जी अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर सकती हैं. लेकिन, इसके लिए वह इन नेताओं को केंद्र में साझा विपक्ष की सरकार बनने पर कुछ ऑफर करके ही साथ ला पाएंगी. ये तमाम पार्टी प्रमुख देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के साथ पहले भी यूपीए सरकार के दौरान रहे हैं, तो वो ममता के साथ क्यों जाना चाहेंगे? कहना गलत नहीं होगा कि ममता बनर्जी ने साझा विपक्ष के नेतृत्व पर दावा तो ठोंक दिया है, लेकिन उनका साथ देने वाला उन्हें मिलना मुश्किल है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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