ममता बनर्जी के फैसले कहीं उनकी ही मुसीबत न बन जाएं
ममता का यह फैसला बीजेपी के लिए जरूर अच्छी खबर हो सकता है. बीजेपी जो पिछले कुछ सालों से बंगाल में अपनी राजनैतिक जमीन तलाश रही है, उसे यह फैसला ममता को घेरने का एक मौका जरूर मुहैया कराएगा.
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ममता बनर्जी ने फिर से वही फैसला किया है जिसके लिए कलकत्ता हाई कोर्ट ने पिछले साल उन्हें काफी फटकार लगायी थी. ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन को लेकर 30 सितंबर की शाम 6 बजे से 1 अक्टूबर तक रोक का आदेश दिया है. इस फरमान के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में मोहर्रम के जुलूसों के दौरान दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन पर रोक रहेगी. हालांकि पिछले साल इसी तरह के आदेश के बाद हाई कोर्ट ने यह कहते हुए उस फैसले पर रोक लगा दी थी कि यह फैसला साफ तौर एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए लिया गया है.
अल्पसंख्यकों को खुश करने में लगी हैं ममता
बहरहाल ममता का यह फैसला बीजेपी के लिए जरूर अच्छी खबर हो सकता है. बीजेपी जो पिछले कुछ सालों से बंगाल में अपनी राजनैतिक जमीन तलाश रही है, उसे यह फैसला ममता को घेरने का एक मौका जरूर मुहैया कराएगा. वैसे भी हाल के दिनों में बंगाल में ममता ने जिस तरह के फैसले लिए हैं उससे भाजपा को बंगाल में अपनी जड़ें जमाने के भरपूर मौके दिए हैं, और इसके बेहतर नतीजे भी भाजपा को देखने को मिले हैं.
हालांकि ममता बनर्जी की पार्टी को मिलने वाले वोटों में कोई कमी नहीं देखी गयी है, मगर आश्चर्यजनक रूप से भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में दूसरे नंबर की पार्टी बनने की ओर बढ़ रही है. अभी पिछले ही हफ्ते संपन्न हुए सात स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया, हालांकि इन चुनावों में तृणमूल ने क्लीन स्वीप किया, मगर बीजेपी ज्यादातर जगहों पर दूसरे स्थान पर रही और साथ ही बीजेपी ने तीन नगर निगमों में छह सीटों पर जीत भी दर्ज की. इससे पहले अप्रैल के महीने में हुए उपचुनाव में भी बीजेपी शानदार प्रदर्शन करते हुए 50 हजार से ज्यादा वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थी. बंगाल में बीजेपी के प्रदर्शन के इतिहास को देखकर इसे बेहतरीन प्रदर्शन कहा जा सकता है.
बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के उभार की एक बानगी इस साल के रामनवमी के त्योहार में भी देखने को मिली जब सडकों पर हजारों लोग हथियार लेकर बीजेपी द्वारा मनाए जा रहे इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए. इसके कुछ ही दिन बाद मनाई गई हनुमान जयंती में भी लोगों के अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली. हालांकि देखा जाए तो ये दोनों ही त्योहार कभी भी बंगाल में उतने धूम धाम से नहीं मनाए जाते रहे, मगर बीजेपी के कार्यक्रम में सम्मिलित लोग प्रदेश में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को ही दिखाता है.
30 फीसदी मुस्लिम आबादी के वोट बैंक को सुरक्षित रखना चाहती हैं ममता
बंगाल में बीजेपी के इस उभार में ममता बनर्जी के फैसलों ने भी अच्छा खासी भूमिका निभाई है. पिछले कुछ वर्षों में ममता बनर्जी ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जिसमें यह साफ तौर पर देखने को मिला है कि इन फैसलों से वो अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की जुगत में हैं. अपने पिछले कार्यकाल में ममता बनर्जी ने सभी इमामों, और अजान देने वालों के लिए स्टीपेंड देने की घोषणा की थी, हालांकि बाद में हाई कोर्ट ने इस फैसले को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. हालांकि ममता ने अल्पसंख्यकों को रिझाने का कार्यक्रम अबाध रूप से जारी रखा, ममता ने इसके लिए बंगाल के सभी सरकारी पुस्तकालयों में 'नबी दिवस' को अनिवार्य रूप से मनाए जाने का आदेश जारी कर दिया. बंगाल में इंद्रधनुष को 'रामधेनु' कहा जाता है, मगर ममता को इसमें भी साम्प्रदायिकता नजर आई. ममता ने बंगाल के स्कूली पुस्तकों में 'रामधेनु' शब्द को 'रंगधेनु' कर दिया. और हाल ही में ममता ने 288 साल पुराने तारकेश्वर मंदिर की देखरेख के लिए बनाए गए तारकेश्वर डेवलपमेंट बोर्ड की कमान भी एक मुस्लिम मंत्री के हाथों में सौप दी.
ममता इन फैसलों से अपने करीब 30 फीसदी मुस्लिम आबादी के वोट बैंक को सुरक्षित रखना चाहती हैं, मगर ऐसा करते वक़्त वो शायद उस 70 फीसदी आबादी को भूल जाती हैं जो कि बहुसंख्यकों की है. हालांकि ममता की इन्हीं नीतियों ने बीजेपी को बंगाल की राजनीति में अपनी जड़ें जमाने का मौका भी दे दिया है, और धीरे-धीरे ही सही मगर बीजेपी प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करती भी दिख रही है. ममता अगर आगे भी इसी तरह के फैसले करती रहीं तो वो निश्चित रूप से अपनी राजनैतिक जमीन खोने की दिशा में ही कदम बढ़ाएंगी और उनका यह कदम बीजेपी के उभार के रूप में भी दिख सकता है.
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