बंगाल में ममता भी बिहार फॉर्मूले पर!
ऐसा कैसे संभव है कि केरल में सीपीएम, कांग्रेस के खिलाफ मैदान में उतरे और बंगाल में उसके साथ चुनावी गठबंधन भी कर ले.
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ममता बनर्जी ने दिल्ली में नेताओं से मुलाकातों का सिलसिला तेज कर दिया है. साथ ही वो इसमें कोई भेदभाव भी नहीं कर रहीं- बल्कि हर किसी से खुले दिल और गर्मजोशी से मिल रही हैं, चाहे वो किसी भी पार्टी का क्यों न हो. बीते महीनों में उनकी मुलाकातें भले ही खास चर्चित न रही हों, मगर सोनिया गांधी से उनके मिलने के बाद नई अटकलें शुरू हो गई हैं.
आखिर ममता के व्यक्तित्व में आए इस नए मिलनसार निखार और दरियादिली के मायने क्या हो सकते हैं?
सिर्फ पुरानी दोस्ती?
2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी, कांग्रेस गठबंधन के बूते ही सत्ता हासिल कर पाईं. चुनाव के साल भर बाद तक कांग्रेस के साथ उनका रिश्ता भी कायम रहा लेकिन फिर पूरी तरह टूट भी गया.
9 दिसंबर को ममता, सोनिया से मिलने सीधे उनके घर पहुंचीं. तीन साल बाद 10 जनपथ पर दोनों की 10 तक बातचीत हुई. बाद में ममता ने मीडिया से कहा कि सोनिया गांधी से उनका लंबे समय से संबंध रहा है और उनके जन्म दिन के मौके पर उन्होंने अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है.
इससे पहले ममता के निर्देश पर तृणमूल सांसदों ने कांग्रेस के साथ लोक सभा से वॉकऑउट किया और हेराल्ड केस को लेकर सोनिया का सपोर्ट किया.
वैसे ममता और सोनिया के बीच हाल फिलहाल ये कोई पहला संपर्क नहीं रहा. अगस्त में ही संसद के सेंट्रल हॉल में एक दिन ममता और सोनिया अचानक आमने सामने हो गईं तो दोनों गले भी मिले. अक्टूबर में भी दोनों ने एक दूसरे को दिवाली की बधाई दी थी.
तो क्या ममता और सोनिया की ये मुलाकात वाकई अभिवादन और आभार जताने तक सीमित रहा?
आखिर तीन साल बाद ममता को सोनिया से पुरानी दोस्ती इतनी प्रगाढ़ क्यों नजर आने लगी है? कुछ न कुछ बात तो है?
पूर्व स्पीकर सोमनाथ चटर्जी मानते हैं कि ममता बनर्जी घबरा रही हैं और इसी वजह से वो कांग्रेस से करीबी बढ़ाना चाह रही हैं. ईटी से बातचीत में चटर्जी कहते हैं, "पिछले तीन साल में ममता ने कांग्रेस की निंदा की है और उसे बेकार बताया है. अचानक वो सभी कड़वाहट भूल गई हैं और 2011 विधान सभा चुनाव से पहले बनाए गए संबंधों को दोबारा मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं."
क्या ममता फिर से कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करना चाहती हैं?
क्या गठबंधन भी होगा?
मीडिया रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि ममता की कांग्रेस के साथ गठबंधन से ज्यादा दिलचस्पी किसी और बात को लेकर है. माना जा रहा है कि ममता खुद कांग्रेस के साथ गठबंधन से कहीं अधिक सीपीएम के साथ उसका अलाएंस नहीं होने देने के लिए ज्यादा तत्पर हैं. कहा तो यहां तक जा रहा है कि कांग्रेस और सीपीएम के बीच किसी भी संभावित कोशिश को नाकाम करने के लिए ममता ने अपने भरोसेमंद लोगों को लगा रखा है.
अब सवाल उठता है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और सीपीएम के बीच गठबंधन की कितनी संभावना है?
केरल में कांग्रेस की अगुवाई में यूडीएफ की सरकार है. 2016 में केरल में भी चुनाव होने हैं. ऐसा कैसे संभव है कि केरल में सीपीएम, कांग्रेस के खिलाफ मैदान में उतरे और बंगाल में उसके साथ चुनावी गठबंधन भी कर ले. अगर ऐसा हुआ तो कदम कदम पर उसे जनता को इस तरह के फैसले के पीछे का तर्क समझाना होगा.
ममता को लेकर सोमनाथ की बात काफी महत्वपूर्ण है. ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कई नेता घोटालों और सीबीआई जांच के दायरे में हैं. ममता के बेहद करीबी और मजबूत हाथ मुकुल रॉय भी उनका साथ छोड़ चुके हैं. ममता को अब एक मजबूत साथी या बिहार जैसे महागठबंधन की जरूरत तो महसूस होती ही होगी.
वैसे पश्चिम बंगाल में ममता से ताकतवर अभी कोई और नजर नहीं आ रहा. न सीपीएम ऐसी हालत में है की ममता को सत्ता से बेदखल कर देने जैसी चुनौती दे सके, न बीजेपी कहीं कोई खास जगह बना पाई है. कांग्रेस तो बिहार नर्सिंग होम से इलाज के बाद अभी अभी लौटी ही है.
फिर भी ममता ने दोस्ती के लिए दोनों हाथ खुले रखे हैं. अब कांग्रेस या बीजेपी में से जो भी चाहे ममता से हाथ मिला सकता है. लेकिन दोनों को एक बात जरूर याद रखनी होगी - रिश्ते में शर्तें ममता की ही चलती हैं. ममता का पिछला रिकॉर्ड तो यही कहता है - कांग्रेस और बीजेपी इसे बखूबी जानते भी हैं.
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