New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 12 अगस्त, 2021 01:38 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) बड़े उत्साह के साथ दिल्ली पहुंची थीं. जब तक रहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और सोनिया गांधी सहित विपक्ष के कई नेताओं से मिलीं भी, सिवाय एनसीपी नेता शरद पवार के - शरद पवार से ममता बनर्जी को काफी उम्मीदें रही हैं. विधानसभा चुनावों के दौरान भी ममता बनर्जी ने बीजेपी नेतृत्व मोदी-शाह से मुकाबले के लिए मदद मांगी थी, लेकिन न तो वो कोलकाता ही गये और न ही दिल्ली में ही मुलाकात किये. जाते जाते ममता बनर्जी ने दो-दो महीने पर दिल्ली दौरे की जानकारी तो दी, लेकिन निराशा का भाव लिये ही लौटीं.

ममता बनर्जी के कोलकाता लौट जाने के बाद से दिल्ली तक उनकी कोई आवाज गूंज रही हो, ऐसा तो नहीं लगता. हां, ममता बनर्जी के दिल्ली छोड़ देने के बाद भी विपक्षी गतिविधियों में कोई कमी आयी हो, ऐसा भी नहीं लगता - राहुल गांधी तो ममता बनर्जी के दिल्ली में कदम रखते ही एक्विट हो गये थे, लेकिन अब लालू यादव और शरद पवार की गतिविधियां भी तेज हो चली हैं - कपिल सिब्बल की डिनर पार्टी में इसकी साफ साफ झलक भी देखने को मिली.

लगता तो ऐसा है जैसे ममता के दिल्ली में रहते ही शरद पवार और लालू यादव ने मिल कर कोई अलग रणनीति बना ली हो - और अब धीरे धीरे उसे अमल में लाने की कोशिश चल रही है.

लालू यादव ने जातीय जनगणना (Caste Census) का मुद्दा उठा कर बीजेपी विरोधी दलों को एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया है. तभी तो एनडीए में रहते हुए भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जातीय जनगणना के सपोर्ट में खासे एक्टिव नजर आ रहे हैं.

क्या राहुल गांधी की ममता बनर्जी को विपक्ष का नेतृत्व करने की रेस से हटाने में कोई भूमिका लगती है?

और क्या ममता बनर्जी को रेस में पछाड़ने के बाद राहुल गांधी भी शरद पवार और लालू यादव के हाथ मिला लेने से पिछड़ने लगे हैं?

एकबारगी ऐसा लगा था जैसे लालू यादव, राहुल गांधी के लिए ममता बनर्जी को रास्ते से हटाने की कोशिश कर रहे हैं - लेकिन अब तो ये भी लगने लगा है जैसे लालू यादव मंडल की मदद से कमंडल हटाने के बाद तेजस्वी यादव का भविष्य सुरक्षित करने में जुट गये हैं - फिर भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि 2024 में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने के मामले में ममता बनर्जी फिलहाह किस मोड़ पर खड़ी हैं?

ममता बनर्जी क्या कर रही हैं

तमाम आशंकाओं के बावजूद, ममता बनर्जी अकेले ही अपने मिशन में जुटी हुई हैं और विपक्ष के बीच अपनी पैठ बनाये रखने के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस के विस्तार में भी जुटी हैं. त्रिपुरा में भतीजे अभिषेक बनर्जी सहित उनके नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद, ममता बनर्जी असम में भी बीजेपी को टक्कर देने की कोशिश में हैं - साथ ही, कोशिश ये भी है कि बंगाल में वो किसी भी सूरत में कमजोर न पड़ें.

तृणमूल सरकार की तरफ से पश्चिम बंगाल के किसानों को ममता बनर्जी के हस्ताक्षर वाला एक पत्र दिया गया है - और दावा किया गया है कि राज्य सरकार की कृषक बंधु योजना केंद्र की मोदी सरकार की प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना से ज्यादा अच्छी है - क्योंकि बगैर जमीन वाले किसान भी सेल्फ डिक्लेरेशन के तहत इस स्कीम का फायदा उठा सकते हैं.

ये भी बताया गया है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का पैसा भी बंगाल के किसानों को सरकार की बदौलत ही मिल रहा है. ममता सरकार में श्रम राज्य मंत्री बेचाराम मन्ना ने ये चिट्ठी सिंगूर के किसानों के बीच बांटी है. लगे हाथ बेचाराम ये भी समझा रहे हैं कि केंद्र सरकार किसान सम्मान निधि के पैसे सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ताओं को ही दे रही है.

sharad pawar, mamata banerjee, lalu yadavममता बनर्जी समझ गयी हैं कि लालू यादव और शरद पवार मिलकर राहुल गांधी के लिए नहीं बल्कि अपने हितों के लिए उनको आगे नहीं रहने देना चाहते, लेकिन वो भी अपनी जमीन मजबूत करने में जुट गयी हैं

चिट्ठी में ममता बनर्जी की तरफ से लिखा गया है - आप लोगों को पता है कि हमारी सरकार ने 2018 में पूरी तरह से राज्य सरकार के फंड से कृषक बंधु योजना शुरू की थी जो पूरे देश के लिए मॉडल साबित हुई है - और उसके बाद ही 2019 में प्रधानमंत्री किसान योजना शुरू की जा सकी.

बंगाल से बाहर और त्रिपुरा से इतर ममता बनर्जी असम में भी जमीन की तलाश में जुट गयी हैं. असम के निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई का दावा है कि ममता बनर्जी ने उनकी पार्टी रायजोर दल को तृणमूल कांग्रेस में विलय करने की सलाह दी है.

अखिल गोगोई ने मीडिया से बातचीत में बताया, 'हमारी कोशिश क्षेत्रीय ताकतों का एक फेडरेशन बनाने की है - और 2024 में नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए ममता बनर्जी को नेता के रूप में पेश करना है.'

अखिल गोगोई ने ये भी बताया है कि तृणमूल कांग्रेस में उनके रायजोर दल के विलय के बदले, ममता बनर्जी की तरफ से उनको टीएमसी की असम इकाई का अध्यक्ष बनाने का ऑफर दिया गया है.

ममता बनर्जी ने दिल्ली दौरे में ही संकेत दिया था कि 2024 से पहले विधानसभा चुनावों में उनकी कोशिश बीजेपी को रोकने की होगी. अब तो लगता है ममता बनर्जी के इस मिशन की यूपी में एंट्री भी हो गयी है - ममता सरकार में मंत्री मौलाना सिद्दीक उल्लाह चौधरी का देवबंद दौरा तो यही कहता है.

तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम फेस मौलाना सिद्दीक उल्लाह चौधरी देवबंद में एक शोक सभा में हिस्सा लेने पहुंचे थे, लेकिन जिस तरीके से बीजेपी और असदुद्दीन ओवैसी को टारगेट किया, साफ हो गया कि ममता बनर्जी आगे का रास्ता कैसे तय करने वाली हैं?

मौलाना सिद्दीक उल्लाह चौधरी ने देवबंद में अपील की कि जिस तरह बंगाल के 97 फीसदी मुसलमानों ने देश और संविधान को बचाने के लिए विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया, ठीक वैसे ही अब यूपी की जनता को चाहिये कि एकजुट होकर बीजेपी का सफाया करे.

देश में तेजी से बदलते राजनीतिक समीकरण और अपने खिलाफ चली जा रही सियासी चालों के बीच ममता बनर्जी के मन में एक और भी आशंका हो सकती है - कहीं ऐसा तो नहीं चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जल्द ही पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की तरह उनको भी अचानक सॉरी और थैंकयू बोल देंगे - सॉरी इस बात के लिए कि आगे से उनके पार तृणमूल कांग्रेस के लिए काम करने का समय नहीं है, और थैंकयू इस बात के लिए जिस मुकाम पर वो हैं, वहां तक पहुंचाने में उनकी भी बड़ी भूमिका रही है. प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक का तृणमूल कांग्रेस के साथ 2026 तक कॉन्ट्रैक्ट है.

जातीय जनगणना की राजनीति

बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करन के मकसद से ममता बनर्जी की विपक्ष की एकजुट करने की कोशिशों के बीच ही जातीय जनगणना की राजनीति ने अंगड़ाई लेना शुरू किया था - और अब तो ऐसा लग रहा है जैसे ये मुद्दा उछल उछल कर कुलांचे भरने लगा है.

जमानत पर छूटे लेकिन चारा घोटाले के एक मामले की तारीख नजदीक आने से फिर जेल जाने की आशंकाओं से घिरे लालू प्रसाद यादव राजनीतिक तौर पर खासे एक्टिव नजर आ रहे हैं - और अब तो हाल ये हो रहा है कि लालू यादव ने केंद्र सरकार के कास्ट सेंसस न कराने के फैसले की सूरत में जनगणना के बहिष्कार की धमकी दे डाली है.

लालू प्रसाद यादव के ये कॉल देते ही पिछड़ों की राजनीति करने वाले नेता एक्टिव हो चुके हैं. राजनीतिक रूप से विरोधी खेमे में खड़े होने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बढ़ चढ़ कर इसमें हिस्सा ले रहे हैं. अक्सर सवालों पर चुप्पी साध लेने वाले नीतीश कुमार कम पूछने पर भी ज्यादा बताने लगे हैं - कहते हैं जातीय जनगणना को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को लिखी उनकी चिट्ठी का जवाब नहीं मिला है.

नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के कहने पर जातीय जनगणना के लिए बिहार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने का आश्वासन दिया है और बिहार बीजेपी के नेताओं को भी साथ आने के लिए कह रहे हैं.

जनगणना के बहिष्कार की धमकी देने से पहले लालू यादव इस मुद्दे पर अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव जैसे नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं - और ऐसा लगता है जैसे एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जैसी मुहिम चलायी गयी थी, एक बार फिर मोदी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है. ऐसा करके मोदी सरकार के ओबीसी आरक्षण का क्रेडिट लेने की कोशिश को निष्फल करने का प्रयास भी लगता है.

ऐसा लगता है जैसे लालू यादव जातीय जनगणना के बहिष्कार के नाम पर पिछड़ी जातियों के बीच जनांदोलन शुरू करने की कोशिश कर रहे हों - और इसका यूपी चुनाव में फायदा तो मिले ही, कोई गुंजाइश हो तो बिहार की नीतीश सरकार पर भी असर आये.

ऐसा भी हो सकता है क्या कि जातीय जनगणना रूपी औजार विपक्षी एकता में बाधक प्रधानमंत्री पद के होड़ जैसे रोड़े को भी हटा सकता है - विपक्ष को एकजुट करने में आड़े आता है प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा - लेकिन जातीय जनगणना का मुद्दा उसे न्यूट्रलाइज कर सकता है क्या?

नीतीश कुमार के खिलाफ नोटबंदी के मुद्दे पर ममता बनर्जी की पटना रैली को सफल बनाने वाले लालू यादव तो अब तृणमूल कांग्रेस नेता को ही विपक्ष के नेतृत्व की होड़ से बाहर करने में जुट गये हैं. शरद पवार को भी मिला लिया है - और ओबीसी पॉलिटिक्स के जाल में सबको उलझा लिया है.

ये तो साफ है कि लालू यादव की यूपी में अखिलेश यादव और आगे चल कर बिहार में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश है, लेकिन लालू यादव के मन में ये भी तो इच्छा तो बची होगी ही कि अपने न सही ऐसा इंतजाम तो कर ही दें कि एक दिन तेजस्वी यादव भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन जायें. है कि नहीं?

इन्हें भी पढ़ें :

पवार से मुलाकात हुए बगैर ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा सफल कैसे समझा जाये?

राहुल गांधी का बयान क्या प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से हाथ खींचने का इशारा है!

मोदी से मुकाबले के चक्कर में ममता बनर्जी कहीं राहुल गांधी को 'नेता' न बना दें!

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय