मोदी-विरोधी ममता बनर्जी ने भी केजरीवाल वाला यू टर्न ले लिया!
धारा 370 पर जिस तरह कांग्रेस का रूख बदला, फिर जेडीयू ने हथियार ही डाल दिये और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता को मोदी सरकार से उम्मीदें दिखायी देने लगे हैं - क्या ममता बनर्जी का भी यू-टर्न बिलकुल वैसा ही है?
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिसे प्रधानमंत्री ही नहीं मानतीं, उसी नरेंद्र मोदी से मुलाकात के लिए ममता बनर्जी का पहले से समय लेकर मिलने का फैसला आसानी से किसी के भी गले नहीं उतर रहा - न राजनीतिक प्रेक्षकों के, न विपक्षी दलों. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के अंदर क्या कानाफूसी है, बाहर नहीं आ पायी है.
मुलाकात से ठीक पहले ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की बधाई भी दी - और दिल्ली रवाना होते वक्त जशोदा बेन को कोलकाता एयरपोर्ट पर देखते ही मिलने दौड़ पड़ीं. तोहफे में जसोदा बेन को साड़ी भी भेंट की. प्रधानमंत्री मोदी की पत्नी दो दिन की झारखंड यात्रा के बाद वापस लौट रही थीं.
मोदी सरकार 2.0 जिस तरह से संसद में पेश आयी है, पूरा विपक्ष बार बार गच्चा खा रहा है. धारा 370 पर जिस तरह कांग्रेस ने स्टैंड में बदलाव किया और फिर जेडीयू ने हथियार ही डाल दिये वो तो देखने ही लायक रहा. बगैर किसी बड़े मुद्दे के भी हद से आगे बढ़ कर प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलने वाले अरविंद केजरीवाल को केंद्र सरकार से उम्मीदें दिखायी देने लगीं - क्या ममता बनर्जी का भी यू-टर्न केजरीवाल और विपक्षी खेमे के राजनीतिक दलों से प्रेरित है?
जब बात तक बंद हो - और मुलाकात की बात होने लगे!
ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी की आखिरी मुलाकात 25 मई, 2018 को शांतिनिकेतन में हुई थी. मौका था, विश्व भारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह का. तब से लेकर अब तक मौके तो बहुतेरे आये लेकिन ममता बनर्जी ने साफ मना कर दिया.
मुलाकात की कौन कहे. अभी तक तो प्रधानमंत्री मोदी से ममता बनर्जी ढंग से बात तक करने को भी तैयार कहां थीं? दोनों का ही एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी का तो अंतहीन सिलसिला रहा है.
1. एक्सपायरी बाबू : ममता बनर्जी कोलकाता में विपक्षी दलों की रैली करने वाली थीं और उसी दौरान टीएमसी नेता ने प्रधानमंत्री मोदी को 'एक्सपायरी बाबू' कहना शुरू कर दिया था. ममत बनर्जी को पूरी उम्मीद रही कि मोदी सरकार सत्ता में वापसी नहीं करने वाली है.
2. मुंह सिल देना चाहिये : ममता बनर्जी तो मोदी के हमलों से इतनी परेशान हो चुकी थीं कि एक बार तो यहां तक कह डाला कि मोदी का मुंह ही सिल देना चाहिये.
3. स्पीडब्रेकर दीदी : पश्चिम बंगाल की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने ममता बनर्जी को 'स्पीडब्रेकर दीदी' कहा था - क्योंकि वो विकास के काम होने ही नहीं देतीं. खासकर तब जब ऐसी कोई योजना केंद्र सरकार की हो.
4. सिंडिकेट राज : एक चुनावी रैली में ही प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम बंगाल में 'सिंडिकेट राज' चलने का आरोप लगाया था.
सिर्फ चुनावों की कौन कहे. चुनाव नतीजे आ जाने और नयी सरकार बन जाने के बाद भी ममता बनर्जी के तेवर में कभी कोई कमी नहीं देखी गयी. हालांकि, बीजेपी ने बंगाल में लोग सभा की सीटें जीत कर टीएमसी का स्कोर बीच में ही रोक दिया. फिर तो ममता बनर्जी का बहिष्कार अभियान ही चलने लगा.
1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्रियों को बुलाया गया था, कुछ नहीं पहुंचे - लेकिन लिस्ट में सबसे ऊपर नाम ममता बनर्जी का ही नजर आ रहा था.
2. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से ‘एक देश एक चुनाव’ को लेकर मीटिंग बुलाई गयी तो भी ममता बनर्जी ने शामिल होने से इनकार कर दिया था.
ममता सरकार और मोदी सरकार के बीच टकरावन का एक बिंदु आयुष्मान भारत स्कीम भी रही है. ममता बनर्जी ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह इसे रोक दिया था. फिर मालूम हुआ कि केंद्र ने बदले में कुछ योजनाओं की फंडिंग रोक दी. अब ममता बनर्जी जिस बकाये की बात कर रही हैं वही फंड माने जा रहे हैं.
दिल्ली रवाना होने से पहले ममता बनर्जी ने मीडिया को बताया, 'मैं दिल्ली कम ही जाती हूं. ये एक रूटीन दौरा है. मैं सूबे को मिलने वाली बकाया रकम के बारे में बात करने जा रही हूं.'
जसोदा बेन को देखते ही फ्लाइट छोड़ मिलने दौड़ पड़ीं ममता बनर्जी
साथ ही ममता बनर्जी ने ये भी बताया कि वो प्रधानमंत्री से मुलाकात में बंगाल का नाम बदलने का मामला भी उठाएंगी. मुद्दे तो कई हैं - देखना होगा किन पर बात होती और बातचीत का नतीजा क्या होता है? तृणमूल कांग्रेस की मांग है कि पश्चिम बंगाल का नाम 'बांग्ला' कर दिया जाये. प्रस्ताव केंद्र सरकार को राज्य सरकार ने पारित करके भेजा भी है, लेकिन राजनीति अपनेआप आड़े आ जा रही है.
ये सद्भावना मुलाकात होती कैसी है?
ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात को सद्भावना मुलाकात की संज्ञा दी है. पहला सवाल तो यही है कि ये सद्भावना अचानक आई कहां से? ऐसी सद्भावना की अचानक जरूरत कैसे आ पड़ी?
अब सवाल उठता है कि ये सद्भावना मुलाकात होती कैसी है? क्या ऐसी मुलाकातों में जो भावना मन में होती है वही बाहर भी होती है? या फिर बाहर व्यावहारिक भावना होती है और अंदर राजनीतिक?
याद कीजिए एक बार ममता बनर्जी ने यहां तक कह दिया था कि वो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री ही नहीं मानतीं. वैसे नरेंद्र मोदी ने राजनीति के नुस्खे कम नहीं अपनाये. पश्चिम बंगाल पहुंचते ही हमलावर हो जाते और दिल्ली में बताते कि ममता दीदी उनके लिए कुर्ता और मिठाई भेजती हैं. ममता बनर्जी को मोदी की ये सियासी सदाशयता बिलकुल नहीं भायी, बोलीं - 'अब कंकड़ भरे रसगुल्ले भेजूंगी.'
खबरों पर ध्यान दीजिएगा. कहीं ममता बनर्जी कंकड़ वाले रसगुल्ले लेकर सद्भावना मुलाकात करने तो नहीं गयी थीं. सूत्रों पर कड़ी नजर रखनी होगी. अब सवाल ये उठ रहा है कि भला ममता बनर्जी को राजनीतिक पलटी क्यों मारनी पड़ी?
1. राजीव कुमार पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है : सीबीआई इन दिनों कोलकाता के पुलिस कमिश्नर रहे राजीव कुमार के पीछे पड़ी हुई है. आपको याद ही होगा कैसे ममता बनर्जी राजीव कुमार के समर्थन में धरने पर बैठ गयी थीं. इसी हफ्ते सीबीआई अफसर पश्चिम बंगाल सचिवालय पहुंचे थे और जानना चाह रहे थे कि राजीव कुमार हैं कहां? ड्यूटी पर कब लौटने वाले हैं? सीबीआई अफसरों का सवाल था कि आखिर किस आधार पर राजीव कुमार को लंबी छुट्टी दी गयी? अफसरों ने राज्य के मुख्य सचिव को सीबीआई के सामने पेश न होने को लेकर पत्र भी दिया.
ऐसे माहौल में ममता बनर्जी से प्रधानमंत्री से मुलाकात का मुहूर्त निकाल कर खुद को ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर लिया है. विपक्ष सवाल पूछ रहा है और सीधे सीधे ममता बनर्जी पर अपने लोगों को बचाने की कोशिश का आरोप लगा रहा है. CPM नेता सुजन चक्रवर्ती बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, 'पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार का जाना तो तय है. अब बुआ (ममता) और भतीजे (सांसद अभिषेक बनर्जी) बच सकें, यही दिल्ली दौरे का एकमात्र मकसद है.' विपक्ष ममता बनर्जी पर नारदा स्टिंग और शारदा घोटाले को लेकर हमले बोल रहा है.
सीपीएम नेता ने तो विधानसभा में ही कह डाला कि तृणमूल के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि सेटिंग कैसे की जाती है. पश्चिम बंगाल के कांग्रेस नेताओं ने भी ऐसे ही इल्जाम लगाये हैं.
2. पंचायत और विधानसभा चुनाव : TMC के लिए 2020-21 चुनावी साल हैं. काफी हद तक 2019 से भी ज्यादा बड़ी चुनौतियां होंगी. 2020 के शुरू में पंचायत चुनाव होने हैं. पिछले पंचायत चुनाव की हिंसा को लेकर ही बीजेपी लगातार शोर मचाती रही है. वैसे पंचायत चुनाव में तो बीजेपी के साथ साथ लेफ्ट और कांग्रेस नेता भी टीएमसी पर उम्मीदवारों को डराने-धमकाने के आरोप लगाते रहे.
2019 के लोक सभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अमित शाह जहां कहीं भी रैली कर रहे होते ममता राज में बीजेपी कार्यकर्ताओं की मौत का जिक्र जरूर करते रहे. अब तो हिंसा में मारे गये बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए पश्चिम बंगाल बीजेपी पिंडदान कार्यक्रम की तैयारी में है. बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कार्यक्रम में अमित शाह और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी न्योता दिया है. ये कार्यक्रम 28 सितंबर को होने वाला है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एक बयान से हर कोई हैरान रहा. जब मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था को लेकर पूरा विपक्ष हमलावर रहा, केजरीवाल ने कह दिया कि सरकार जल्द ही कोई कारगर उपाय ढूंढ लेगी. ऐसा पहले कभी सुनने को नहीं मिलता रहा. सर्जिकल स्ट्राइक पर तो केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी से सबूत ही मांग डाले थे.
माना जा रहा है कि आम चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी के बुरी तरह हार जाने के बाद केजरीवाल और उनकी टीम हताश हो गयी है - और विधानसभा चुनाव तक ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिसका दिल्ली के लोगों पर उलटा भावनात्मक असर हो. इसीलिए काफी सोच समझकर केजरीवाल ने मोदी सरकार के खिलाफ यू-टर्न का फैसला किया है.
चूंकि मोदी सरकार के खिलाफ ममता और केजरीवाल की राजनीति एक जैसी नजर आती रही है, इसलिए ममता बनर्जी का यू-टर्न भी केजरीवाल जैसा ही लगता है.
15 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के मौके पर भी ममता बनर्जी ने ट्विटर के जरिये मोदी सरकार पर हमला बोला था - और इल्जाम लगाया कि देश में 'सुपर इमर्जेंसी' लगा दी गयी है. इस मौके पर ममता बनर्जी ने लोगों से संविधान से मिले अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आने की अपील की थी.
On the #InternationalDayofDemocracy today, let us once again pledge to safeguard the constitutional values our country was founded on. In this era of 'Super Emergency', we must do all it takes to protect the rights and freedoms that our Constitution guarantees
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) September 15, 2019
बीजेपी के बड़बोले नेताओं में बलिया से एक विधायक सुरेंद्र सिंह भी हैं. NRC के मसले पर एक बार सुरेंद्र सिंह ममता बनर्जी को भी निशाना बना चुके हैं, 'अगर वो राष्ट्र विरोधी विचारों से प्रभावित होंगी तो उन्हें पी. चिदंबरम की तरह पाठ पढ़ाया जा सकता है.'
वैसे तो ऐसे नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंह के लाल ही कहते हैं जो कैमरा देखते ही राष्ट्र के नाम संदेश देना चालू कर देते हैं. ऐसे ही बीजेपी नेता और विधायक अयोध्या में राम मंदिर की भी गारंटी देते हुए कह डालते हैं कि वहां भी अपना ही राज है, फिर डांट पड़ने पर भले ही पलटी मार लें - लेकिन वे जो भी कहते हैं जबान पर बातें तो वही आतीं हैं जो अंदर पार्टी फोरम पर चर्चाओं का हिस्सा होती है.
तो क्या ममता बनर्जी और केजरीवाल के मुंह से अब वैसी बातें सुनने को बिलकुल नहीं मिलेंगी? क्या अब ममता बनर्जी भी अरविंद केजरीवाल की तरह खामोश हो जाएंगी - और अर्थव्यवस्था से लेकर जम्मू-कश्मीर तक के मसले उम्मीद भरी नजरों से देखेंगी - फिर तो मुरली मनोहर जोशी सबसे ज्यादा दुखी होंगे - क्योंकि प्रधानमंत्री से सवाल पूछने वाले एक एक करके चुप जो होते जा रहे हैं.
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