साथियों को सर्टिफिकेट देकर ममता ने दांव पर लगाई अपनी भी साख!
ममता के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा कि कथित भ्रष्ट नेताओं से घिरी रहते हुए वे ईमानदार होने का दावा कैसे कर सकती हैं?
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तो ममता बनर्जी साफ कर दिया है कि स्टिंग ऑपरेशन में घूसे लेते दिखे सांसदों से वो सफाई नहीं मांगने जा रही हैं. स्टिंग की सच्चाई पर सवाल उठाते हुए ममता ने इसे विरोधियों की साजिश करार दिया है.
15 साल के अंदर एक जैसे दो मामलों में ममता के दो रूप देखने को मिले हैं - आखिर वो लोगों को कैसे समझाएंगी कि तहलका स्टिंग में नेताओं के इस्तीफे की मांग और और नारद स्टिंग में सफाई भी नहीं मांगना दोनों बातें जायज हैं?
विपक्ष का हमला
स्टिंग ऑपरेशन में 12 नेताओं के फंसने के बाद ममता की पार्टी टीएमसी संसद से सड़क तक निशाने पर है - बीजेपी और सीपीएम तो राज्य में राष्ट्रपति शासन तक लगाने की मांग कर रहे हैं.
बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का कहना है, "राज्य में जब से ममता की सरकार बनी है, तब से आये दिन किसी न किसी घोटाले का पर्दाफाश हो रहा है. कई वरिष्ठ मंत्री व सांसद टीवी चैनलों पर रुपये लेते साफ देखे गये. राज्य में 17 लाख बेरोजगार युवाओं, गरीब किसानों, आम लोगों को चिटफंड के माध्यम से लूटा गया. ऐसे में यदि इसी सरकार के सत्ता में रहते विधानसभा चुनाव होते हैं, तो यह लोकतंत्र की हत्या होगी."
लोक सभा में बीजेपी, कांग्रेस और वाम मोर्चे के सदस्य एक साथ टीएमसी पर टूट पड़े - टीएमसी की मुश्किल ये है कि अपने नेताओं के बचाव में उसके पास कोई कारगर जवाब नहीं है.
टीएमसी का सवाल है कि ये स्टिंग ऑपरेशन जब दो साल पहले किया गया, तो उसे अभी क्यों दिखाया गया जब विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है? टीएमसी ने वीडियो फुटेज की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया है और उसका कहना है कि वीडियो से छेड़छाड़ की गई है.
मगर टीएमसी इस बात को नहीं काट पा रही कि उसके नेताओं और कथित काल्पनिक कंपनी के प्रतिनिधियों की मुलाकात नहीं हुई.
जनता के सवाल
निश्चित रूप से पश्चिम बंगाल में ममता के कद का कोई नेता नहीं है - और न ही उनकी ईमानदारी पर कोई सवाल उठा रहा है. लेकिन ममता की ये व्यक्तिगत ईमानदारी उन सभी नेताओं के लिए सर्टिफिकेट कैसे साबित हो सकती है जो स्टिंग की चपेट में आए हैं.
ममता के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा कि कथित भ्रष्ट नेताओं से घिरी रहते हुए वे ईमानदार होने का दावा कैसे कर सकती हैं?
ये वही ममता बनर्जी हैं जो मार्च, 2001 में तहलका कांड को मुद्दा बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार से इस्तीफा दे दिया था. आखिर अब किस बिना पर वो बिलकुल वैसी ही स्थिति में अपने नेताओं से सफाई तक मांगने को तैयार नहीं हैं.
वैसे तो मनमोहन सिंह की ईमानदारी पर भी कभी किसी ने शक नहीं किया - लेकिन उनके नाक तले एक के बाद एक हुए घोटालों ने कांग्रेस को दस साल के शासन के बाद कहां से कहां पहुंचा दिया - सबके सामने है.
जलपाई गुड़ी की रैली में ममता कहती हैं, "आप हमारे नेताओं के चरित्र पर हमला कर रहे हैं, मेरे खिलाफ लड़ने की हिम्मत नहीं है आप में, ये साजिश है." इसके साथ ही ममता विरोधियों को धमकाती भी हैं - जो उनसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा.
अब लोग ममता की बात पर कितना यकीन करते हैं और किस हद तक समझते हैं - इसके लिए अब ज्यादा इंतजार करने की जरूरत नहीं है.
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