ममता-मुलायम से करीबी, बादल से बढ़ रही है दूरियां
ममता बनर्जी के मां, माटी, मानुष में एक और 'एम' जुड़ गया है - 'मोदी'. इस तरह अब मां, माटी, मानुष और मोदी का 'योग' बन रहा है.
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ममता बनर्जी के मां, माटी, मानुष में एक और 'एम' जुड़ गया है - 'मोदी'. इस तरह अब मां, माटी, मानुष और मोदी का 'योग' बन रहा है.
बांग्लादेश में ये सुखासन की मुद्रा में दिखा, दिल्ली में पद्मासन लगा और अब कोलकाता में सर्वांगासन में तब्दील होने जा रहा है. ये नए जमाने का 'योग' है जो सियासी फासले कम कर रहा है.
ममता से करीबी
एक दौर था जब ममता बनर्जी की योग में दिलचस्पी तो दूर, उन्होंने तो मोदी की जनधन योजना और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं को भी खारिज कर दिया था. मोदी के स्वच्छ भारत अभियान में जहां घोर विपक्षी शशि थरूर जैसे नेता घूम घूम कर झाडू लगा रहे थे, ममता ने समर्थन तक देने इनकार कर दिया था.
वही ममता बनर्जी अब योग को अपार हर्ष और असीम उल्लास के साथ सपोर्ट कर रही हैं - और वो भी अपने मुस्लिम वोट बैंक को नाराज करने का खतरा मोल लेते हुए. अब ये सियासी योगा है या इसे योग की राजनीति कहें, थोड़ा और समझने की बात है, क्योंकि तस्वीर का दूसरा पहलू बिलकुल अलग है.
क्या हुआ पंजाब में?
पंजाब में राजनीतिक लड़ाई के चलते ही योग बाहर हो गया. इसे एनडीए में बनते-बिगड़ते रिश्तों के संकेत के तौर पर भी देखा जा सकता है. थोड़ा गौर से देखने पर बहुत कुछ साफ नजर आता है.
फिर योग क्यों राजनीति का शिकार हुआ? आनंदपुर साहिब में अकाली दल के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी शामिल होना था, लेकिन अचानक उनका कार्यक्रम रद्द हो गया. अकाली दल का मानना है कि ऐसा सूबे के बीजेपी नेताओँ के कहने पर हुआ है और इसका सीधा असर योग कार्यक्रम पर पड़ा है.
पहले 21 जून को स्कूलों में बच्चों का कार्यक्रम आयोजित करने के लिए शासनादेश जारी किया गया था. जैसे ही मोदी का कार्यक्रम रद्द हुआ, योग का कार्यक्रम भी कैंसल हो गया. सरकार की ओर से अब कहा जा रहा है कि स्कूलों में 1 जून से 30 जून तक गर्मियों की छुट्टियां हैं इसलिए योग के कार्यक्रम होना संभव नहीं.
वैसे ये पहला मौका नहीं है. मार्च में भी पंजाब के नेताओं के कहने पर मोदी नवांशहर की जगह हुसैनीवाला के फंक्शन में शामिल हुए थे.
बिहार में इस साल. बंगाल में अगले साल और दो साल बाद पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने वाले हैं. बिहार में बीजेपी ने पुराने साथियों को साथ रखा ही, मांझी को भी जोड़ लिया है. पश्चिम बंगाल में ममता से दूरियां खत्म हो रही हैं. यूपी में भी समाजवादी पार्टी से भी नजदीकियों के संकेत मिल रहे हैं. ललित मोदी को लेकर विवादों में आईं सुषमा स्वराज पर राम गोपाल यादव का बयान देखिए. राम गोपाल को सुषमा की मानवीय मदद में कोई बुराई नहीं दिखती. आम बजट को लेकर भी मुलायम सिंह यादव का कहना था कि उन्हें कमी जैसी कोई बात नजर नहीं आई.
लेकिन पंजाब में क्या हो रहा है? मोगा बस कांड से बादल परिवार की हुई फजीहत के बाद से बीजेपी दूरी बनाने लगी है. एक वजह और भी है - एंटी इनकंबेंसी फैक्टर. बीजेपी को इसकी भनक लग गई है. अब बीजेपी को शिरोमणि अकाली दल से अलग होने के लिए मौके की तलाश होगी.
फ्रेंडली अप्रोच भी, फ्रेंडली मैच भी
पंजाब के साथ ही यूपी में भी चुनाव होने हैं - 2017 में. यूपी में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्रा के मुरीद नजर आते हैं.
फिर राजनीति किस दिशा में जा रही है? क्या वोटर के मूड को देखते हुए ये सेलेक्टिव स्ट्रैटेजी अपनाई जा रही है. यानी केंद्र में हम फ्रेंडली अप्रोच रखेंगे और राज्यों में वोट के हिसाब से फ्रेंडली मैच खेलेंगे. केंद्र में हरसिमरत कौर महिला ब्रिगेड में अगुवा नजर आती हैं - चाहे राहुल गांधी को किसानों के मुद्दे पर घेरने की बात हो - या फिर जब अमेठी के फूड पार्क का मामला उछलता हो. लेकिन पंजाब में स्थानीय नेताओं की सलाह पर मोदी अपने कार्यक्रम और रुख दोनों में तब्दीली ला देते हैं.
लोक सभा चुनाव के बाद ऐसा एक्सपेरिमेंट महाराष्ट्र में भी तो देखने को मिला था. लोक सभा चुनाव में शिवसेना बीजेपी के साथ थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में दोनों अलग हो गए. फिर शिवसेना ने बीजेपी के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सपोर्ट किया. केंद्र में दोनों ने स्टेटस-को मेंटेन किया.
बिहार चुनाव बाद क्या पता ऐसी दूरियां और नजदीकियां और भी देखने को मिले. आखिर सियासत भी तो इसे ही कहते हैं.
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