क्या सोनिया और राहुल के बाद अब मनमोहन की बारी?
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री ए राजा ने अपने सहयोगी शरद पवार को बताया थी कि आवंटन से जुड़े फैसले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सहमति थी. अब शरद पवार के इस खुलासे का क्या मतलब निकाला जाना चाहिए..
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देश में पोलिटिकल-कॉर्पोरेट के बीच महागठबंधन की कलई क्या धीरे-धीरे खुल रही है? पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड केस में कॉरपोरेट धोखाधड़ी के मामले ने तूल पकड़ा. दोनों गांधी को कोर्ट में हाजिर होकर जमानत लेनी पड़ी. अब 2जी मामले का जिन्न एक बार फिर बोतल से निकलने को तैयार हो रहा है. नेशनलिस्ट कांग्रेस पीर्टी (एनसीपी) के मुखिया और यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने दावा किया है कि पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा ने उन्हें बताया था कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में लिए गए सभी फैसलों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सहमति थी. क्या शरद पवार के इस खुलासे का यह मतलब निकाला जाए कि सोनिया-राहुल के बाद अब बारी मनमोहन सिंह की है?
गौरतलब है कि केन्द्र में यूपीए सरकार द्वारा 2008 में किए गए 2जी स्पेक्ट्रम अवंटन मामले ने तब तूल पकड़ा जब 2010 में कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (कैग) की रिपोर्ट ने दावा किया कि इस आवंटन में नियमों के हेर-फेर से सरकार को 1 लाख 80 करोड़ रुपये का नुकसान हो गया. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही सीबीआई जांच ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री ए राजा और कानीमोई समेत 1 दर्जन से ज्यादा केन्द्रीय अधिकारी और निजी कंपनियों के प्रमुख सलाखों के पीछे पहुंच गए. इस मामले में भी मौजूदा बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर याचिका देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को घेरे में लेने की कोशिश की. बहरहाल दोनों के दरवाजे पर सीबीआई की दस्तक पर्याप्त साक्ष्य न होने के चलते नहीं दी गई.
गौरतलब है कि ए राजा ने सीबीआई कोर्ट में दर्ज कराए अपने बयान में कहा है कि 2जी आवंटन में उनके द्वारा लिए गए सभी फैसलों से तत्कालीन प्रधानमंत्री अवगत रहे हैं. वहीं सीबीआई ने जेपीसी के सामने दिए बयान में कहा है कि 2जी घोटाले की साजिश रचने में मुख्य किरदार ए राजा का है. लेकिन अब शरद पवार का यह कहना कि राजा की बात पर वह हैरान हो गए कि 2जी आवंटन में सभी फैसलों में मनमोहन सिंह की सहमति थी. ऐसे में क्या यह मान लिया जाए कि 2जी घोटाले में यदि मुख्य किरदार ए राजा का था तो क्या यूपीए सरकार में मंत्रियों को इतनी स्वायत्ता थी कि देश के प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री तक को यह पता नहीं चलता था कि किसी मंत्रालय के फैसले से सरकारी खजाने को करोड़ों का नुकसान हो रहा है? अगर ऐसा नहीं था तो क्या यूपीए गठबंधन की सरकार में शामिल राजनीतिक दलों की साजिश को नजरअंदाज करने पर कोई सहमति बनी हुई थी?
अब यूपीए गठबंधन में राजनीतिक दलों के बीच कैसी भी सहमति रही हो लेकिन सरकार के प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों के रिश्ते पर संविधान तो यही कहता है कि प्रधानमंत्री ‘फर्स्ट अमंग ईक्वल’ (बराबरी के बीच पहले) है और सरकार के हर फैसले में प्रधानमत्री समेत पूरे कैबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है.
वहीं रहा सवाल शरद पवार का तो यह अलग बात है कि उनकी जीवनी में भाषा बदलने के साथ-साथ कंटेंट भी बदल जाता है. जहां मराठी भाषा में लिखी अपनी जीवनी में उन्होंने कांग्रेस और सोनिया पर जमकर भड़ास निकाली है वहीं कुछ महीनों बाद प्रकाशित हुआ जीवनी का अंग्रेजी अनुवाद में सोनिया और कांग्रेस से जुड़े विवादित अनुभवों को शामिल नहीं किया गया है. लेकिन शरद पवार खुद इस कैबिनेट के हिस्सा रहे हैं और सामूहिक जिम्मेदारी उनकी भी बनती है. सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपये के नुकसान की साजिश रची गई और हैरानी जाहिर करने के लिए जीवनी प्रकाशित होने का इंतजार किया गया.
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