आरक्षण पर मनमोहन वैद्य के राजनैतिक मायने
मनमोहन वैद्य ने एक बार फिर आरक्षण को लेकर विवादित बयान दिया है. पिछली बार बीजेपी की तरफ से आरक्षण के मुद्दे पर आए एक बयान ने बिहार में पार्टी को हिला कर रख दिया था अब यूपी में इस बयान से क्या होगा?
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वैसे तो जातिगत आरक्षण व्यवस्था का एक वर्ग हमेशा से विरोधी रहा है, लेकिन समय के साथ-साथ इस व्यवस्था को लेकर समय-समय पर बहस के स्वर भी मुखर होते रहे हैं. अभी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में RSS के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने कहा कि 'आरक्षण के नाम पर लोगों को सैकड़ों साल से अलग करके रखा गया है. इसे खत्म करने की जिम्मेदारी हमारी है.' उन्होंने कहा है कि आरक्षण को खत्म करना होगा, क्योंकि इससे 'अलगाववाद' को बढ़ावा मिला है.
हांलाकि, कुछ ही समय के बाद अपने बयान से पलटते हुए उन्होंने कहा कि ”मैंने धर्म के आधार पर आरक्षण का विरोध किया था. मैंने कहा था जब तक समाज में भेदभाव है, तब तक आरक्षण रहेगा. धर्म के आधार पर आरक्षण से अलगाववाद बढ़ता है. संघ दलितों और पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण के पक्ष में है.”
पिछली बार भी आरक्षण को लेकर दिया गया बयान बीजेपी के लिए बहुत भारी पड़ा था |
संघ की ओर से आरक्षण पर आया ये बयान एक बार फिर से बवाल खड़ा कर सकता है. इसके पहले बिहार चुनाव से ठीक पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ऐसा ही बयान दिया था. बिहार चुनाव से पहले मोहन भागवत ने कहा था कि आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की जानी चाहिए. मोहन भागवत के इस बयान का बिहार चुनावों पर खासा असर पड़ा था. विपक्ष ने इस बयान को ऐसी धार दी थी जिसने बिहार की चुनावी राजनीति की पूरी दिशा ही बदल कर रख दी थी.
अभी इस बयान का महत्व इस लिए भी अहम हो जाता है क्योंकि चुनावी माहौल अपने चरम सीमा पर है और विपक्षी पार्टियां इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी. यूपी में 21 फीसदी दलित और 40 फीसदी ओबीसी हैं वहीं पंजाब में 30 फीसदी दलित वोट है. यूपी के दलितों में गैर जाटव दस फीसदी वोटबैंक पर बीजेपी की पकड़ मानी जाती जबकि चालीस फीसदी ओबीसी में से इस वक्त गैर यादव ओबीसी को बीजेपी का वोटबैंक माना जा रहा है. लेकिन RSS के आरक्षण विरोधी बयान से बीजेपी को अब दोबारा अपनी रणनीति बनानी पड़ सकती है.
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विपक्ष को मिला मौका
ममोहन वैद्य के बयान के बाद राजनीतिक माहौल गर्म हो गया. बयान के कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, जेडीयू, समाजवादी पार्टी, आरजेडी और बीएसपी सबने मोर्चा खोल दिया. लालू यादव ने कहा, ”आरक्षण हक है खैरात नहीं है. मोदी जी आपके RSS प्रवक्ता आरक्षण पर फिर अंट-शंट बक रहे है.”
बिहार में रगड़-रगड़ के धोया, शायद कुछ धुलाई बाकी रह गई थी जो अब यूपी जमकर करेगा. वहीं अरविंद केजरीवाल नई कहा किसी हालत में भाजपा को आरक्षण ख़त्म नहीं करने देंगे.
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कांग्रेस के नेशनल प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा- ये आरएसएस और बीजेपी की बांटने और पोलराइजेशन करने की चाल है. वो दलित और गरीबों के विरोधी हैं. पीएम को माफी मांगनी चाहिए, वहीं समाजवादी पार्टी नेता गौरव भाटिया ने कहा- यूपी इलेक्शन के पहले यह पोलराइजेशन की कोशिश है. केंद्र सरकार को वैद्य के बयान पर अपना नजरिया साफ करना चाहिए लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर राज्यों के चुनाव से ठीक पहले आरएसएस के लोग इस तरह के बयान देते ही क्यों हैं? यहां सवाल उठना भी लाज़िमी है. क्या आरएसएस बिहार के बाद यूपी में भी बीजेपी की हार देखना चाहता है? क्या आरक्षण पर सवाल उठाकर आरएसएस ने जानबूझकर बीजेपी को मुसीबत में डाला है?
सब जानते हैं कि स्वर्ण बनाम दलित का ध्रुवीकरण बीजेपी के लिए खतरनाक हो सकता है. सब जानते हैं कि आरक्षण विरोधी बयान यूपी में बीजेपी को कहीं का नहीं छोड़ेगा. सब जानते हैं कि बिहार में सर संघचालक का आरक्षण के खिलाफ बयान बीजेपी के लिए कितना खतरनाक साबित हुआ था जब बीजेपी गठबन्धन को मात्र 58 सीटों पर सिमट जाना पड़ा था?
अब जबकि एक बार फिर से आरएसएस ने आरक्षण पर विवादित बयान दे ही दिया है तो अब समय ही बताएगा कि इसका असर बीजेपी के लिए फायदेमंद होगा या फिर बिहार जैसा इस बार भी इसे ले डूबेगा?
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