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Updated: 19 अप्रिल, 2019 02:48 PM
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मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के समर्थन में रैली करके मायावती ने गेस्‍टहाउस कांड को भुलाया नहीं. अपने भाषण की शुरुआत में ही उन्‍होंने मायावती और बसपा के इस कड़वे अतीत को याद किया. सपा-बसपा गठबंधन की घोषणा के दौरान हुई प्रेस कान्‍फ्रेंस में उन्‍होंने जो बातें कही थीं, वही मैनपुरी के मंच से दोहरा दी. बाकायदा उन्‍होंने गेस्‍टहाउस कांड की तारीख दोहरा कर यह भी बताया कि उनके साथ जो ज्‍यादती हुई थी, उसे किसी कारण से भुला रही हैं.

मायावती के राजनीतिक अतीत के इस कड़वे अध्‍याय और सपा-बसपा गठबंधन की कमजोर कड़ी को प्रधानमंत्री मोदी भी खूब समझते हैं. लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले मेरठ में रैली की. उस विजय संकल्प रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खास तौर पर सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन को तो 'शराब' कहा ही था, उन्‍होंने जानबूझकर मायावती के साथ हुए गेस्ट हाउस कांड का जिक्र छेड़ा. नरेंद्र मोदी ने कहा कि, 'जिस पार्टी के नेताओं को जेल भेजने के लिए बहन जी ने अपने जीवन के दो दशक लगा दिए अब उसी से उन्होंने हाथ मिला लिया है. जिस दल के नेता बहन जी को गेस्ट हाउस में ही खत्म कर देना चाहते थे वह अब उनके साथी बने हुए हैं.'

गेस्‍टहाउस कांड में बीजेपी की दिलचस्‍पी इसलिए भी है, क्‍योंकि इस कांड में मायावती पी‍ड़‍ित हैं, तो समाजवादी पार्टी प्रता‍ड़ना देने वाला पक्ष. लेकिन इन दोनों के बीच बीजेपी की भी इस कांड में भूमिका है. और वे है 'रक्षक' की. जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं. हां, मायावती बखूबी जानती हैं.

मायावती, पीएम मोदी, अखिलेश यादव, गेस्ट हाउस कांडमायावती और अखिलेश के गठबंधन की सबसी बड़ी मुश्किल है इतिहास में कभी न भूला जाने वाला गेस्ट हाउस कांड

गेस्‍टहाउस कांड में बीजेपी की भूमिका

बाबरी विध्वंस के बाद यूपी में पहली बार सपा-बसपा की सरकार बनी थी, लेकिन 1993 में सरकार बनने के बाद 1995 में ही ये सरकार गिरने की कगार पर आ गई. 2 जून 1995 को मायावती लखनऊ के एक गेस्ट हाउस में अपने विधायकों के साथ मीटिंग ले रही थीं और उसी समय सरकारी गठबंधन टूटने से गुस्साए सपा विधायक और कार्यकर्ताओं ने उस गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया. ये वो समय था जब 200 से ज्यादा सपाई मायावती के खून के प्यासे हो गए थे. मायावती ने खुद को बचाने के लिए एक कमरे में खुद को बंद कर लिया था और एसपी-डीएसपी से लेकर कई बड़े-बड़े अधिकारियों को फोन कर बुलाया था, लेकिन मौके पर कोई नहीं पहुंच सका.

इसी बीच कई बसपा कार्यकर्ता अपनी जान बचाकर भाग निकले और मायावती जब अकेली पड़ने लगीं तो उनकी मदद की फर्रुखाबाद से भाजपा के विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने. जब ब्रह्मदत्त को इस घटना के बारे में पता चला तो वो पुलिस से पहले उस गेस्ट हाउस में पहुंचे थे और मायावती को बचाया था. इसी के साथ, ये भी कहा जाता है कि भाजपा नेता लालजी टंडन भी मायावती को बचाने वालों में शामिल थे.

मायावती ने ताउम्र ब्रह्मदत्त को अपना भाई माना. जब ब्रह्मदत्त द्विवेदी की गोली मारकर हत्या कर दी गई तब मायावती ने भी उसी तरह दुख मनाया था जिस तरह कोई बहन अपने भाई की मौत पर मनाती है. यहां तक कि जब हत्या के बाद द्विवेदी की पत्नी चुनाव लड़ीं तो मायावती ने अपने किसी भी उम्मीदवार को उस सीट पर नहीं उतारा और लोगों से आग्रह किया कि वो उनके भाई की विधवा को वोट दें.

जहां तक लालजी टंडन की बात है तो मायावती ने उन्हें भी एक बार अपना भाई बनाया था. 2002 में मायावती ने बीजेपी नेता लालजी टंडन को राखी बांधी थी. वो राखी भी कोई आम राखी नहीं बल्कि चांदी की राखी थी. तब यूपी में मायावती की सरकार को बीजेपी का सपोर्ट हासिल था. इसे भी लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड से जोड़कर देखा जाता है. इस रिश्ते की उम्र भी गठबंधन से ज्यादा नहीं रही, अगले ही साल मायावती की सरकार गिर गयी. नतीजा ये हुआ की अगली राखी पर लालजी टंडन इंतजार करते रहे लेकिन न तो मायावती पहुंची न ही कोई राखी. ऐसे में लालजी टंडन के गेस्ट हाउस कांड में मायावती को बचाने की बात थोड़ी फर्जी लगती है.

इतिहास के पन्नों में दर्ज ये कांड आज भी सुनने वालों को चौंका देता है. पीएम मोदी का मायावती पर ये तंज उसी कांड की याद में है जिसे मायावती ने कभी न भुलाने वाला कांड कहा था और सपा विधायकों को जेल भिजवाने के लिए बहनजी ने 20 साल लड़ाई लड़ी थी.

ये वो कांड है जो वाकई सपा-बसपा गठबंधन पर संशय खड़े करता है और बुआ-बबुआ गठबंधन यूपी के लिए कितना फायदेमंद होगा इसपर भी सवालिया निशान खड़े करता है. वैसे तो मायावती को लेकर पिछले कई सालों में बहुत कुछ बोला गया है और उनके साथ राजनीति में अच्छा बर्ताव नहीं हुआ है, लेकिन इस कांड की याद आते ही बाकी सब कुछ धूमिल सा लगने लगता है.

मैनपुर में अपने भाषण में मायावती ने गेस्‍टहाउस कांड की तारीख दोहराकर ये तो बता दिया कि वे उस घटना को भूली नहीं हैं. लेकिन वे साथ ये भी दोहरा देती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को हराने के लिए वह सपा-बसपा गठबंधन के लिए तैयार हुई हैं. यानी एक मकसद है, जिसे पूरा करना है. और इस मकसद के पूरा हो जाने पर पुरानी दुश्‍मनी फिर देख लेंगे!

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