मेघालय में गोवा-मणिपुर जैसे हालात, क्या बीजेपी को नाकाम कर पाएगी कांग्रेस?
2017 में कांग्रेस गोवा और मणिपुर में मात खा गयी थी. मेघालय में भी इतिहास दोहराये उससे पहले ही कांग्रेस के कमलनाथ और अहमद पटेल शिलांग में डेरा डाल चुके हैं.
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त्रिपुरा में तो बीजेपी ने तीर मार ली है. नगालैंड में तो बीजेपी के दोनों हाथों में लड्डू नजर आ रहे हैं. मामला फंस रहा है मेघालय में क्योंकि कांग्रेस भी इस बार उसे गोवा-मणिपुर नहीं बनने देना चाहती.
मेघालय में बीजेपी गोवा जैसा कमल खिलाये उससे पहले ही कांग्रेस नेतृत्व ने अपने दो नेताओं कमलनाथ और अहमद पटेल को शिलांग भेज दिया. शिलांग पहुंच कर अहमद पटेल ने कहा कि हम यहां सरकार बनाने आये हैं.
मेघालय में विधानसभा की कुल 60 सीटें हैं, लेकिन 59 सीटों पर 27 फरवरी को वोटिंग हुई थी. ऐसे में किसी भी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए कम से कम 31 सीटों की जरूरत होगी.
क्या हुआ था गोवा और मणिपुर में
2017 में पांच विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे. बीजेपी को यूपी और उत्तराखंड में बहुमत मिली जबकि कांग्रेस को पंजाब में. गोवा में कांग्रेस बहुमत के करीब रही जबकि मणिपुर में सबसे बड़ी बन कर उभरी थी. बावजूद इसके बीजेपी ने कमाल दिखाया और दोनों जगह कमल के फूल खिल उठे. 2017 के विधानसभा चुनाव में गोवा की 40 में से कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं और बहुत हासिल करने के लिए महज पांच और विधायकों के समर्थन की जरूरत थी. मौके की नजाकत देख बीजेपी हरकत में आई और गोवा के क्षेत्रीय दलों के अलावा निर्दलीय भी सशर्त तैयार हो गये. निर्दलीय तभी समर्थन देने को राजी थे जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मनोहर पर्रिकर बैठें. बीजेपी ने उनकी बाद मान ली. मनोहर पर्रिकर भी रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दिया और पणजी पहुंच कर 22 विधायकों के समर्थन का दावा ठोक दिया. कांग्रेस हाथ मलती रह गयी.
पहले से ही हरकत में कांग्रेस
60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में कांग्रेस के 28 विधायक चुनाव जीते थे, जबकि बीजेपी सिर्फ 21. फिर भी बीजेपी ने कांग्रेस को पछाड़ते हुए मणिपुर में सरकार बना ली.
बीजेपी के ट्रैक रिकॉर्ड से वाकिफ कांग्रेस इस बार पहले से सतर्क दिख रही है. तब दिग्विजय सिंह पर दारोमदार था, लेकिन वो चूक गये. इसीलिए इस बार कांग्रेस ने सीनियर नेता कमलनाथ और सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद अहमद पटेल को मोर्चे पर भेजा है.
हर बाजी पलटने में जुटी बीजेपी
मेघालय में कांग्रेस की पिछले 9 साल से सरकार रही है. मुख्यमंत्री मुकुल संगमा हर हाल में कुर्सी बचाने में तत्पर हैं और किस्मत अच्छी है कि आलाकमान ने तात्कालिक कदम उठाने में कोई देर नहीं की.
कांग्रेस एक बार सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है. कांग्रेस अगर कुछ निर्दलीय या छोटे दलों साध कर सपोर्ट हासिल कर ले वो सूबे में अपनी सत्ता बचाये रख सकती है.
चुनाव नतीजों से जो परिस्थिति पैदा हुई है उससे तो ऐसा लगता है कि जो कोई भी भी निर्दलीय या फिर छोटे दलों को अपने साथ मिला ले मेघालय में उसी पार्टी की सरकार बनेगी.
बीजेपी मेघालय के नतीजों को कांग्रेस के खिलाफ जनादेश बता रही है. कांग्रेस के पास विधायकों की संख्या ज्यादा तो है लेकिन स्पष्ट बहुमद न होने के कारण पूर्व स्पीकर पीए संगमा की पार्टी एनपीपी यानी नेशनल पीपल्स पार्टी और निर्दलीय विधायकों की अहमियत अचानक बढ़ गयी है. देखा जाय तो निर्दलीय जिस खेमे में पहुंच जाय सरकार वही पार्टी बना लेगी.
स्वर्णिम काल की ओर बढ़ते कदम...
खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बात की ओर इशारा कर दिया है. अमित शाह का कहना है - "मेघालय में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला है. विधायक जिसका समर्थन करेंगे, उसी की सरकार बनेगी. विधायक के तोड़फोड़ से सरकार नहीं बनेगी."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये ट्वीट भी अमित शाह के इरादों पर मुहर लगा रहा है. मान कर चलना होगा बीजेपी और कांग्रेस में पर्दे के पीछे सत्ता बनाने का खेल शुरू हो चुका है.
I express my gratitude to the people of Meghalaya for supporting @BJP4Meghalaya. The welfare of Meghalaya is of utmost importance for us. I appreciate the BJP Karyakartas for their continued efforts in the state to serve the people.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 3, 2018
बीजेपी की जीत ने राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और मध्य प्रदेश के उपचुनावों में हार से मिले जख्मों पर मरहम का भी काम किया है. भौगोलिक हिसाब से छोटे होने के चलते भले ही इन राज्यों की दिल्ली की सियासत में बड़ी भागीदारी न हो, लेकिन 2019 के हिसाब से देखें तो इन नतीजों की भूमिका बहुत बड़ी समझी जाएगी.
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