महबूबा मुफ्ती समझ लें कि भारत के लिए पाकिस्तान और तालिबान में फर्क क्या है!
इस खबर के बाद कि तालिबान के राजनीतिक नेतृत्व से जुड़ने के लिए भारतीय अधिकारियों ने दोहा का दौरा किया है पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि केंद्र को पाकिस्तान से भी बात करनी चाहिए. महबूबा मुफ्ती ने भले ही एक बार फिर अपनी पाकिस्तान परस्ती दिखा दी हो लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान और तालिबान में एक बड़ा अंतर है.
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5 अगस्त 2019 भारत के लिए ऐतिहासिक दिन हैं. राज्यसभा में बड़ा फैसला हुआ था और जम्मू और कश्मीर से धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए हटा दिया गया था. सरकार की इस पहल के बाद आम जनमानस में जहां खुशी की लहर थी तो वहीं घाटी के वो नेता जिन्होंने अपनी राजनीति ही जम्मू कश्मीर को शेष भारत से हटा के की सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले के बाद बेचैन हो उठे. मामले पर जैसा राजनीतिक पंडितों का रुख था कहा गया कि, सरकार ने न केवल नफरत और अलगाववाद की राजनीति करने वाले कश्मीरी नेताओं के खेमे में सर्जिकल स्ट्राइक की बल्कि वो कर दिखाया जो राजनीतिक रूप से मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. सरकार एक बार फिर कश्मीर के प्रति गंभीर हुई है.
आगामी 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में जम्मू कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों के साथ एक अहम बैठक होने वाली है. बैठक में भले ही अभी कुछ वक्त शेष हो लेकिन उससे ठीक पहले जो कुछ भी जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है उसने न केवल उनके पाकिस्तान परस्त होने का प्रमाण दिया है बल्कि ये भी बता दिया है कि यदि कश्मीर का विकास नहीं हुआ तो उसकी एक बड़ी वजह वहां के राजनीतिज्ञ हैं.
पाकिस्तान से बातचीत की बात कहकर एकबार फिर महबूबा मुफ्ती ने अपना एजेंडा बता दिया है
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने पुनः जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत की वकालत की है.शांति का चोला ओढ़ अपने मन की बात करते हुए महबूबा मुफ्ती का कहना है कि कश्मीर मुद्दे का हल निकालने और यहां शांति स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान से भी बात करनी चाहिए.
सुनने, देखने वालों को उनका एजेंडा तार्किक लगे इसलिए महबूबा मुफ्ती ने तालिबान का उदाहरण दिया है. असल में कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है भारतीय अधिकारियों ने तालिबानी नेताओं से बातचीत के लिए दोहा का दौरा किया है. इस दौरे का हवाला देते हुए महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि अगर वो (भारतीय अधिकारी) तालिबान से बात करने के लिए दोहा जा सकते हैं तो उन्हें हमसे और पाकिस्तान से भी बात करनी चाहिए.
#BreakingPDP leader Mehbooba Mufti bats for dialogue with Pakistan."If they can go to Doha and talk to the Taliban, they should have a dialogue with us and with Pakistan too in order to bring about a resolution" @MehboobaMufti#Kashmir #IndoPakTalks#Taliban #India #Pakistan https://t.co/hi5i6LHrFh pic.twitter.com/eYvqukh8du
— Geeta Mohan گیتا موہن गीता मोहन (@Geeta_Mohan) June 22, 2021
ध्यान रहे महबूबा मुफ्ती की ये पाकिस्तान परस्ती उस वक़्त जाहिर हुई है जब गुपकार गठबंधन के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला पहले ही इस बात को बता चुके हैं कि पीएम मोदी की तरफ से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में पूरा गठबंधन शामिल होगा.
तालिबान और पाकिस्तान में फर्क है ये क्यों भूल गयीं महबूबा.
आज भले ही महबूबा पाकिस्तान से बातचीत की वकालत कर रही हों. लेकिन उससे पहले चाहे वो सीमा पर घुसपैठ हो या फिर आतंकवाद का भरण पोषण हमेशा ही पाकिस्तान ने भारत की पीठ पर छुरा घोंपा है. जिस तरह आए रोज़ भारत में आतंकवादी हमले होते हैं और जिस तरह पाकिस्तान से उनकी जिम्मेदारी ली जाती है इस बात की तसदीख हो जाती है कि पाकिस्तान का शुमार उन चुनिंदा मुल्कों में है जिसने हमेशा ही अपने पड़ोसी का बुरा चाहा है.
चूंकि मुद्दा जम्मू कश्मीर है इसलिए ये बताना बहुत जरूरी है कि कश्मीर को लेकर हमेशा ही पाकिस्तान की दोहरी नीति रही है. बात गुजरे दिनों की हो तो हम यूएन में देख ही चुके हैं किस तरह पाकिस्तान ने भारत को नीचा दिखाने का प्रयास किया लेकिन मुंह की खाई और अपने ही जाल में उलझ कर रह गया. वहीं बात तालिबान की हो तो तालिबान पूर्णतः आतंकवादी संगठन है.
लेकिन अब जबकि मुलाकात हो गयी है तो भारत की इस बातचीत की पीछे का तर्क यही है कि भविष्य में तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में अहम भूमिका अदा करने वाला है. यानी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व होगा लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य में उसकी अहम भूमिका होगी. ध्यान रहे कि भारत सालों तक तालिबान से वार्ता को ख़ारिज करता रहा है. मजेदार बात ये है कि भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को एक पक्ष के रूप में कभी मान्यता नहीं दी लेकिन अब मोदी सरकार बातचीत में शामिल होती दिख रही है.
साफ़ है कि ये सब अफ़ग़ानिस्तान के विकास और शांति को लेकर भारत की प्रतिबद्धता को दर्शा रहा है. कुल मिलाकर यदि देखा जाए तो जो बातचीत तालिबान की भारत से हुई है साफ़ है कि कहीं न कहीं तालिबान भी बदलने को आतुर हैं. इन तमाम बातों के बाद यदि अब भी महबूबा पाकिस्तान की वकालत कर रही हैं तो उन्हें ये जान लेना चाहिए कि भारत के मद्देनजर तालिबान और पाकिस्तान के चाल चरित्र और चेहरे में एक बड़ा अंतर है.
खैर बात बैठक की हुई है तो बता दें कि पीएम के साथ मुलाकात से पहले फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने PDP की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता एम वाई तारिगामी सहित घटक दलों के नेताओं के साथ मीटिंग की है. अब्दुल्ला के घर हुई इस बैठक में पीएम से होने वाली बैठक की रणनीति तैयार की है साथ ही ये भी तय किया गया है कि प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में किन किन मुद्दों को उठाया जाएगा.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होने जा रही मुलाकात पर फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा है कि पीएम मोदी की तरफ से दावतनामा आया है और हम उसमें जाने वाले हैं. महबूबा जी, मोहम्मद तारिगामी साहब और मैं पीएम मोदी की बैठक में शामिल होंगे. उम्मीद है कि हम वहां प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के सामने अपना एजेंडा रखेंगे.
पीएम के साथ होने जा रही बैठक के मददेनजर अबदुल्ला ने ये भी कहा है कि, हममें से जिनको भी बुलाया गया है, हम लोग जा रहे हैं. हम सब बात करेंगे. हमारा मकसद सभी को मालूम है. वहां पर आप हर बात पर बोल सकते हैं. उनकी तरफ से कोई एजेंडा तय नहीं हुआ है.
भले ही फ़ारूक़ अब्दुल्ला अपने द्वारा कही बातों में इस बात का जिक्र कर रहे हों कि अभी मीटिंग के लिए कोई एजेंडा तय नहीं हुआ है लेकिन जब हम महबूबा मुफ़्ती का रुख करते हैं और उनकी पाकिस्तान परस्ती या ये कहें कि पाकिस्तान के लिए हमदर्दी का अवलोकन करते हैं तो तमाम बातें हैं जो शीशे की तरह साफ़ हो जाती हैं. भले ही किसी ने इस मीटिंग के लिए एजेंडा तय न किया हो. भले ही सब कश्मीर और आम कश्मीरी आवाम के हितों का ध्यान रख रहे हों मगर जो रुख महबूबा का है उन्होंने अपने पत्ते पहले ही खोल दिए हैं और वो इमरान खान और पाकिस्तान की जुबान बोलने वाली हैं.
मीटिंग में क्या बातें निकलती हैं? क्या इस मीटिंग के बाद घाटी की शांति कायम रह पाएगी? क्या इससे आम कश्मीरियों को कोई विशेष फायदा मिलेगा?भविष्य में सामने आने वाले सवालों की पूरी लंबी फेहरिस्त है हमारे पास लेकिन जो मौजूदा वक़्त है और उस वक़्त में जो रवैया महबूबा मुफ़्ती का है उन्होंने बता दिया है कि उनकी राजनीति का आधार क्या है? वो कौन से हथकंडे हैं जो वो कश्मीर की सत्ता पाने के लिए अपनाएंगी.
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