मिजोरम में जीत के लिए 'कांग्रेस' के भरोसे बैठी है भाजपा
भाजपा का फैलाव देश के हर कोने में हो चुका है और नॉर्थ ईस्ट के 6 राज्यों में भाजपा या उसके सहियोगियों की सरकार है, लेकिन मिजोरम में अभी भी चुनाव जीतना भाजपा के लिए नाकों चने चबाने जैसा है.
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एक वक़्त था जब भारतीय जनता पार्टी को आमतौर पर हिंदी पट्टी की ही पार्टी माना जाता था और नार्थ ईस्ट तो भाजपा के लिए किसी दुरूह सपने जैसा ही था. लेकिन अब परिस्थितियां इसके उलट हैं. अब भाजपा का फैलाव देश के हर कोने में हो चुका है और साथ ही नार्थ ईस्ट के साथ राज्यों में से छः में या तो भाजपा की सरकार है अथवा भाजपा सरकार में शामिल है. हालांकि, बावजूद इसके मिज़ोरम अभी भी भारतीय जनता पार्टी के लिए अभेद्य दुर्ग बना हुआ है और नार्थ ईस्ट का यही वह राज्य है जहां कांग्रेस अभी भी सत्ता में कायम है.
भाजपा अब तक मिजोरम में कोई भी सीट जीतने में नाकाम रही है. पिछले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने 40 सीटों में से 17 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, बावजूद इसके भाजपा को कुल मिला कर 2000 के करीब ही वोट मिल पाए थे. भाजपा इस बार फिर से मिज़ोरम में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए करीब करीब सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. भाजपा मिज़ोरम को लेकर कितनी संजीदा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मिज़ोरम में ताक़त झोंकी है और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मिज़ोरम में सभा की है.
मिजोरम इलेक्शन में भाजपा के लिए आर या पार वाली लड़ाई है पर भाजपा के लिहाज से मिजोरम को साधना थोड़ा मुश्किल ही लगता है. भाजपा की छवि मोटे तौर पर एक हिंदूवादी पार्टी के तौर पर रही है उस लिहाज से मिज़ोरम की जमीन भाजपा के लिए उतनी उपजाऊ नहीं लगती. मिज़ोरम एक ऐसा राज्य है जहां की 87 प्रतिशत आबादी ईसाई धर्म को मानने वाली है तो वहीं 3 प्रतिशत के करीब की आबादी हिंदू धर्म को मानती है. अगर आबादी के लिहाज से देखें तो भाजपा का राम मंदिर का मुद्दा उसे यहां वोट नहीं दिला सकता हालांकि इसी साल के शुरुआत में भाजपा ने नागालैंड की 40 में से 12 जबकि मेघालय की 60 में से 2 सीट जीतने में कामयाब रही थी, भाजपा वर्तमान में इन दोनों राज्यों में सरकार में है.
नागालैंड और मेघालय भी ईसाई धर्म बहुलता वाले राज्य हैं. इसके अलावा हाल के वर्षों में जिस तरह से भाजपा ने एक के बाद एक छः नार्थ ईस्ट के राज्यों में सत्ता तक पहुंची है उससे यह उम्मीद जरूर है कि भाजपा कम से कम यहां अपना खाता खोलने में सफल हो सकती है. मिज़ोरम में पिछले एक दशक से कांग्रेस की सरकार है, कांग्रेस के एल लथनहवला वर्त्तमान में मिज़ोरम के मुख्यमंत्री हैं. 2008 में कांग्रेस ने इनकी अगुवाई में जबरदस्त जीत दर्ज की थी. तब से लेकर अभी तक वह लगातार राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. इसके पहले भी वह 1984 से लेकर 1986 तक और फिर 1989 से लेकर 1998 तक राज्य मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वह अब तक 4 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. मिज़ोरम में कांग्रेस को मुख्य चुनौती मिज़ो नेशनल फ्रंट(एम एन एफ) से ही मिल रही है, जो राज्य में मुख्य विपक्षी दल है. हालांकि एम एन एफ भाजपा द्वारा बनाये गए नेडा में भी शामिल है मगर वर्तमान चुनाव में भाजपा और एम एन एफ अलग अलग चुनाव मैदान में हैं.
वर्तमान में मिज़ोरम में सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर जोरों पर है और इसी का नतीजा है कि हाल में कई कांग्रेसी नेता अपनी पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं, तो वहीं कुछ ने भाजपा का भी दामन थामा है. ऐसे में भाजपा इन पुराने कांग्रेसियों से उम्मीद कर रही होगी कि वो भाजपा को राज्य में खाता खोलने में मदद करेंगे. जानकार भी मानते हैं कि इस बार भाजपा अपनी झोली में कुछ एक सीट समेट सकती है. और अगर नतीजों के बाद अगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलती है तो कुछ सीटों के साथ भी भाजपा किंगमेकर की भूमिका में आ सकती है जैसा की भाजपा मेघालय में भी कर चुकी है.
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