कश्मीर चुनाव से पहले आतंक के निर्णायक खात्मे में जुटी मोदी सरकार
जम्मू कश्मीर में जवानों की तैनाती को लेकर सुरक्षा बलों ने सभी सवालों के जवाब दे दिये हैं. लगता तो ऐसा है कि घाटी में आतंकवाद आखिरी सांसें गिन रहा है, लेकिन सच तो ये भी है कि चुनौतियां भी कम नहीं हैं.
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जम्मू-कश्मीर में हाल फिलहाल थोड़ा कंफ्यूजन का माहौल रहा और इसीलिए अफवाहों के फैलने का मौका भी मिला. धीरे-धीरे ही सही सरकार और सेना की ओर से स्थिति साफ की जाने लगी है. एक साथ घाटी में इतनी सारी गतिविधियां होने लगी थीं कि किसी को भी कुछ समझ में आना मुश्किल हो रहा था.
अभी सुरक्षा बलों की 100 कंपनियां भेजे जाने को लेकर चर्चाओं का दौर थमा नहीं कि दिल्ली से 28 हजार जवान और भेजे जाने की खबर आने लगी. घाटी में आर्मी और एयरफोर्स को भी हाई अलर्ट पर रहने को कहा गया है.
'लेकिन ये सब क्यों?' ये पूछते पूछते कश्मीर का अब्दुल्ला परिवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी कर आया. महबूबा मुफ्ती तो बारूदी बयान देने के बाद कश्मीरी नेताओं को एक मंच पर जुटाने में ही जुटी हुई हैं. लगे हाथ महबूबा मुफ्ती ने 35A पर सूबे से आने वाले बीजेपी नेताओं से भी साथ आने की अपील कर डाली है.
वैसे समझा ये जा रहा था कि 15 अगस्त नजदीक होने और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की भी तैयारियों के चलते ये सब हो रहा था, लेकिन अब सुरक्षा बलों ने ऐसे सारे कंफ्यूजन पर पूरी तस्वीर साफ कर दी है.
सुरक्षा बलों ने अमरनाथ यात्रियों पर हमले की कोशिश तो नाकाम कर ही दी है - कश्मीर में पनप रहे स्थानीय आतंकवादियों की भी शेल्फ लाइफ को लेकर कंफ्यूजन खत्म कर दिया है.
फिर भी कोई जोखिम न उठाते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अमरनाथ यात्रा की अवधि घटाने का फैसला किया है. अमरनाथ यात्रा 15 अगस्त तक चलने वाली थी, लेकिन उसे तत्काल प्रभाव से रोका जा रहा है. अमरनाथ यात्रियों के साथ साथ दूसरे सैलानियों के लिए भी एडवाइजरी जारी की गयी है - कहा गया है कि बड़े आतंकी हमले के इनपुट हैं, इसलिए जल्द से जल्द सैलानी अपनी यात्रा खत्म कर लौट जायें.
अब आतंकियों की शेल्फ लाइफ सिर्फ 1 साल है
कश्मीर में सेना, CRPF और पुलिस ने मिल कर आतंकवादियों की बड़ी साजिश नाकाम कर दी है. एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में बताया गया कि ये आतंकवादी पाक फौज के सपोर्ट से अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाने की कोशिश कर रहे थे. ऑपरेशन में आतंकवादियों को मार गिराने के साथ ही भारी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार और पाकिस्तान में बनीं माइंस भी बरामद की गयी हैं.
सुरक्षा बलों ने जो हथियार बरामद किये हैं उनमें पाकिस्तान की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में बनी माइंस और IED भी शुमार हैं. प्रेस कांफ्रेंस में सुरक्षा बलों के अफसरों ने अमरनाथ यात्रा रूट से बरामद टेलीस्कोप लगी M-24 अमेरिकन स्नाइपर राइफल भी दिखाया. ये सब सटीक खुफिया इनपुट के मिलने से संभव हो पाया है.
अमरनाथ यात्रा के रूट से मिले आतंकियों के हथियार बता रहे हैं पाकिस्तान की मंशा
सेना की ओर से घाटी में जारी आतंकवाद और उसके खिलाफ एक्शन को लेकर भी कई अहम जानकारी दी गयी है - जो कश्मीरी लोगों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. चिनार कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों ने कश्मीरी लोगों खासकर उन नौजवानों के मां-बाप को सख्त चेतावनी दी है कि अगर वे बच्चों की खैरियत चाहते हैं तो हर हाल में दहशतगर्दी की राह पकड़ने से रोकने में अभी से जुट जायें.
सेना और सुरक्षा बलों के आंकड़े बताते हैं कि जो स्थानीय आंतकवादी मुठभेड़ में मारे गये हैं उनमें 83 फीसदी पहले पत्थरबाज रहे हैं. सेना ने कश्मीर के लोगों को साफ साफ बता दिया है कि जिन बच्चों को वो रोजाना ₹ 500 के लिए पत्थरबाज बनने से नहीं रोकते उनका मरना तय है.
सुरक्षा बलों ने जो आंकड़े जुटाये हैं उनके मुताबिक घाटी में आतंकवाद की राह पर निकले 7 फीसदी नौजवानों को ऑपरेशन में 10 दिन के भीतर मार गिराया गया है. ऐसे 9 फीसदी को आतंकी बनने के महीने भर के अंदर और 17 फीसदी को 3 महीने के भीतर मार गिराया गया है.
लेटेस्ट अपडेट के मुताबिक, आतंकी सफर पर निकले सभी कश्मीरी नौजवान एक साल के भीतर सुरक्षा बलों के हाथों मार डाले गये हैं. आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत भी दो दिन के दौरे पर कश्मीर में हैं और सुरक्षा इंतजामों का जायजा ले रहे हैं. हाल ही में जनरल बिपिन रावत ने भी कह दिया था कि अगर किसी भी कश्मीरी नौजवान ने आतंकवाद का रास्ता अख्तियार किया तो उनके हथियार सेना ले लेगी और वे सीधे कब्र में जाएंगे. फिलहाल हो भी यही रहा है.
सबसे खास बात जो सैन्य अफसरों ने कश्मीर के लोगों को समझाने की कोशिश की है, वो है - हथियार उठाने वाले कश्मीरी नौजवान की शेल्फ-लाइप अब महज 365 दिन ही है. साल भर से ज्यादा उसका बचे रहना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है. सेना की ओर से साफ कर दिया गया है कि अगर लोग अपने बच्चों की जिंदगी चाहते हैं तो जैसे भी संभव हो उन्हें हथियार उठाने से रोक लें.
CRPF की ओर से भी कहा गया है कि मददगार नाम से जो हेल्पलाइन नंबर 144112 चलाया जा रहा है, उसका फायदा चाहें तो आतंकवादी भी उठा सकते हैं - लेकिन कुछ और नहीं बल्कि सरेंडर करने के लिए. फिर तो नौजवान बच्चों के मां-बाप भी चाहें तो खुद पहल कर सरेंडर के लिए तैयार कर उनकी जिंदगी बचा सकते हैं - लेकिन मान कर चलना होगा ये आखिरी मौका ही है.
सरहद है - हाई अलर्ट नहीं तो क्या स्लीप मोड होना चाहिये?
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के जम्मू-कश्मीर दौरे के बाद घाटी में सुरक्षा बलों के 10 हजार जवान भेजे गये थे. अभी आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत जम्मू-कश्मीर के दो दिन के दौरे पर हैं. आर्मी चीफ सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा कर रहे हैं - और इसी बीच खबर आई है कि केंद्र की मोदी सरकार 25 जवानों की नयी खेप भेजने जा रही है. हालांकि, सरकारी सूत्रों के हवाले से कुछ मीडिया रिपोर्ट में ये भी बताया जा रहा है कि सिर्फ 10 हजार जवानों को ही भेजने का आदेश दिया गया है - और वे अपनी पोस्ट पर भेजे जा रहे हैं.
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, 'गृह मंत्रालय ने 28 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती का मौखिक आदेश जारी किया है. ये तैनाती उन 10 हजार जवानों से अलग है, जिसका फैसला पहले ही लिया जा चुका है.'
साथ ही, राष्ट्रीय राइफल्स और सेना की दूसरी यूनिट को एलओसी और संबंधित इलाकों में तैनात किया जा रहा है. एयरफोर्स भी घाटी में पेट्रोलिंग कर रही है जिसे पहले से ही अलर्ट मोड में रखा गया है. एयरफोर्स जवानों की सुरक्षा की निगरानी कर रही है.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सुरक्षा बलों की इस गतिविधि को लेकर सवाल उठा रहे हैं. उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा है, 'सेना और वायुसेना को हाई अलर्ट पर क्यों रखा गया. क्या ये 35A या परिसीमन को लेकर हो रहा है? इस तरह का अलर्ट अगर जारी किया गया है तो ये काफी अलग है.'
What “on going situation” in Kashmir would require the army AND the Air Force to be put on alert? This isn’t about 35A or delimitation. This sort of alert, if actually issued, would be about something very different. https://t.co/FTYG36F6aD
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) August 2, 2019
ठीक है. उमर अब्दुल्ला सूबे के सीएम रह चुके हैं और उनकी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस को भी जल्द होने जा रहे विधानसभा चुनाव भी लड़ना है. अब राजनीति करनी है तो सवाल तो उठाने ही होंगे.
जम्मू-कश्मीर सरहद से लगा है. पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ की कोशिशें, गोलीबारी और गोलाबारी भी आम बात है. ऐसे में भी अगर सुरक्षा इंतजामों पर सवाल उठता है तो जवाब भी वही होगा - सरहद है, सरहद पर जवान हाई अलर्ट नहीं तो क्या स्लीप मोड तैनात होने चाहिये?
बहरहाल, सेना ने जो जानकारी दी है उसमें उमर अब्दुल्ला का कन्फ्यूजन भी खत्म हो ही गया होगा.
मोदी सरकार ने सेनाओं को तो तभी मनमर्जी की छूट दे डाली थी जब पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हमला हुआ था - बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भी वे आदेश वापस नहीं लिये गये हैं. सेना का भी कहना है कि हम अपना काम कर रहे हैं और जो अक्साई-चिन जैसी चीजें तो राजनीतिक नेतृत्व ही हल कर पाएगा.
वैसे राजनीतिक नेतृत्व भी आगे बढ़ कर चीजों को हैंडल कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के कश्मीर पर मध्यस्थता की पहल को भारत ने सख्ती से ठुकरा दिया है. आसियान की बैठक में हिस्सा लेने बैंकॉक पहुंचे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने अमेरिकी समकक्ष माइक पोम्पियो को सीधे शब्दों में दो टूक साफ कर दिया है कि अगर कश्मीर को लेकर बातचीत की कोई स्थिति बनी भी तो सिर्फ पाकिस्तान के साथ होगी. शिमला समझौते के तहत भारत किसी भी तीसरे पक्ष को किसी भी सूरत में इजाजत नहीं देने वाला. मान कर चलना चाहिये कि ये मैसेज चीन भी पा ही चुका होगा क्योंकि वो भी पंचायत करने के लिए बेचैन नजर आ रहा था. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव लायक हालात बनाने की कोशिशें काफी तेज हैं और कुलभूषण जाधव केस में भी पाकिस्तान ICJ के आदेशों के चलते कांसुलर एक्सेस देने के राजी हो गया है.
बाकी सब तो ठीक है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की हिदायतों के हिसाब से काम कर रहे JK गवर्नर सत्यपाल मलिक की चुनौतियां इससे खत्म नहीं हो पा रही हैं. गवर्नर मलिका जहां कहीं भी होते हैं कश्मीर के लोगों को मैसेज देने की कोशिश करते हैं. हाल ही में मलिक ने समझाया था कि अगर किसी को पाकिस्तान वाली आजादी चाहिये तो वे पल्ली तरफ चले जायें, कोई नहीं रोकने वाला है. सेना ने भी साफ कर दिया है कि लोग अपने बच्चों की जिंदगी के बारे में जरूर सोचें. तमाम तरीकों से गवर्नर भी लोगों को ऐसी ही बातें समझाने की कोशिश कर रहे हैं - जन्नत को कुछ हुआ नहीं है, लोग असल बात को समझ लें तो जम्मू-कश्मीर देश का सबसे बड़ा विकास का मॉडल हो सकता है.
विकास की बातें तो ठीक हैं, लेकिन विश्वास का क्या? मोदी सरकार 2.0 में एक ऐड-ऑन फीचर के साथ स्लोगन हो गया है - सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास. यही वो विश्वास है जो सरकार को हासिल करना है. घाटी के लोगों का विश्वास.
कश्मीरी लोगों में आम धारणा केंद्र के परायेपन को लेकर बरसों से बनी हुई है. कश्मीर के मुख्यधारा और अलगाववादी सभी नेता इसी धारणा को बनाये रखने की जुगत में लगे रहते हैं. यही वजह है कि सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने वाले कश्मीरी नौजवानों के मां-बाप शहीद समझते रहे हैं. ये चेतावनी तो ठीक है कि अगर कश्मीरी अपने बच्चों की मौत पर सोच में सुधार नहीं करेंगे वे आतंकी की मौत ही मरते रहेंगे. कश्मीरी आतंकी बुरहान वानी के मां-बाप अब तक यही खुद भी समझते हैं और दूसरों को भी समझाते आ रहे हैं.
जब तक कश्मीरी लोग केंद्र के साथ परायेपन की बातों को दूर रख कनेक्ट नहीं होते, न तो 'जम्हूरियत, इंसानियत, कश्मीरियत' का फॉर्मूला कामयाब होगा, न सबका साथ और विकास के साथ सबका विश्वास हासिल हो सकेगा.
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