हम बॉलीवुड कलाकारों को आदर्श की मूर्ति मानना कब बंद करेंगे
हीरो हो, या हिरोइन. फिल्म के पर्दे पर उसूलों का पालन करना, आदर्शवादी जीवन जीना और आदर्शवादी बातें करना उसके प्रोफेशन का हिस्सा है. यदि राजनीति में हाथ आजमा कर, या पैर अड़ाकर उन्हें कुछ 'ज्यादा' मिलता है, तो ऐतराज क्यों हो?
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अक्षय कुमार भारतीय सिनेमा का वो चेहरा हैं, जिनका ख्याल आते ही दिमाग में एक हीरो की तस्वीर घूमने लगती है. वो हीरो जो हीरोइन को गुंडों से बचाने और रोमांस करने के अलावा देशभक्ति के साथ देश के दुश्मनों से लोहा लेता है. लेकिन आज एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसने लोगों के दिमाग में बनने वाली तस्वीर को बदलकर रख दिया है. आज अक्षय कुमार पीएम मोदी का इंटरव्यू लेते दिखे. एक मिनट... कहीं आप भी तो ये नहीं सोचने लगे कि अक्षय कुमार भाजपाई हैं???
ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने अक्षय कुमार द्वारा पीएम मोदी का इंटरव्यू लेने के वीडियो देखते ही ये नतीजा निकाल लिया कि वह भाजपाई हैं. बहुत से लोग ये देखकर फूले नहीं समा रहे हैं, तो कइयों के दिल टूट गए. ऐसा इसलिए क्योंकि वह तो अक्षय कुमार को एक हीरो मानते थे, जो देश के लिए लड़ता है, दुश्मनों की छुट्टी कर देता है और विलेन को उसके किए की सजा भी देता है. अब एक सवाल ये उठता है कि हम बॉलीवुड कलाकारों को उनके अभिनय के आधार पर आदर्श की मूर्ति क्यों मान लेते हैं? हीरो हो, या हिरोइन. फिल्म के पर्दे पर उसूलों का पालन करना, आदर्शवादी जीवन जीना और आदर्शवादी बातें करना उसके प्रोफेशन का हिस्सा है. इसके लिए वो बाकायदा पैसे भी लेते हैं. यदि राजनीति में हाथ आजमा कर, या पैर अड़ाकर उन्हें कुछ 'ज्यादा' मिलता है, तो ऐतराज क्यों हो?
कहीं आप भी तो ये नहीं सोचने लगे कि अक्षय कुमार भाजपाई हैं???
हंगामा क्यों है बरपा, अक्षय कुमार ने मोदी का इंटरव्यू जो लिया है !
अक्षय कुमार ने पीएम मोदी का इंटरव्यू क्या लिया, दोनों ही लोगों की चर्चा आसमान छूने लगी. ट्विटर पर तो सुबह से शाम तक #ModiWithAkshay ट्रेंड करता रहा. कुछ अक्षय कुमार की तारीफों के पुल बांधते रहे, तो कुछ ने उन्हें भाजपाई के साथ-साथ मतलबी तक कह डाला. लोग तो ये भी कहने लगे कि फिल्में नहीं चलीं तो अक्षय कुमार का प्लान बी तैयार है. यहां सवाल ये है कि अगर इंटरव्यू लिया तो इसमें गलत क्या है? क्या लोग ये मान रहे हैं कि अक्षय कुमार को किसी राजनीतिक पार्टी का साथ नहीं देना चाहिए था?
अक्षय कुमार को लोग इतना आदर्शवादी क्यों समझ रहे हैं. वो तो फिल्में करने के लिए भी पैसे लेते हैं और पैसे ठीक-ठाक हों तो हीरो के बजाय विलेन तक बन जाते हैं. हाल ही में आई रजनीकांत की फिल्म 2.0 ताजा उदाहरण है. इसके अलावा खिलाड़ी 420, अजनबी, ब्लू और 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा' में भी वह विलेन की भूमिका में थे. तो ये सब जानकर भी मन कुछ बदला या फिर अभी भी अक्षय कुमार द्वारा पीएम मोदी का इंटरव्यू लेना गलत ही लग रहा है? वैसे अगर राजनीतिक के संदर्भ में बात करें तो सिनेमा जगत में दो कैटेगरी के कलाकार मिलेंगे.
पहले बात उनकी, जो खुलकर राजनीतिक कर रहे हैं
ताजा उदाहरण है सनी देओल का, जिन्होंने मंगलवार को ही राजनीति में कदम रखा है. थोड़ी पीछे जाएं तो उर्मिला मातोंडकर, रवि किशन और निरहुआ जैसे कलाकारों ने भी राजनीति में कदम रखा है. यानी इन लोगों ने खुलकर किसी न किसी राजनीतिक पार्टी को अपना समर्थन दिया और उसमें शामिल हो गए. राजनीतिक पार्टियां किसी भी अभिनेता को उसके स्टारडम के भरोसे टिकट देते हैं. वैसे भी, अगर किसी नए नेता को चुनाव लड़ाएंगे तो उसकी छवि बनाने में पैसा और वक्त बर्बाद होगा, जबकि फिल्मी सितारों की छवि पहले से ही काफी अच्छी होती है. फिल्मी सितारों के ढेर सारे फॉलोअर का फायदा राजनीतिक पार्टियों को मिलता ही है.
दूसरे वो, जो राजनीति में हाथ नहीं डालते, लेकिन पैर फंसाए रखते हैं !
देखा जाए तो अक्षय कुमार इसी कैटेगरी के हैं. वह खुलकर ये नहीं कहते कि वह भाजपाई हैं, लेकिन गाहे-बगाहे पीएम मोदी की तारीफ जरूर कर दिया करते हैं. वहीं दूसरी ओर, अक्षय कुमार की पत्नी और फिल्म अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना के सोशल मीडिया अकाउंट पर तो पीएम मोदी की तारीफें और विपक्ष की बुराई अक्सर देखने को मिल जाती है. अमिताभ बच्चन भी इसी कैटेगरी के हैं. उनकी पत्नी जया बच्चन तो समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद हैं, लेकिन वह खुद पीएम मोदी की तारीफ करते हैं और उनके कैंपेन भी करते हैं. स्वरा भास्कर को भी इस कैटेगरी में शामिल किया जा सकता है. वह राजनीति में नहीं उतर रही हैं, लेकिन सक्रिय रूप से पीएम मोदी की बुराई और कन्हैया का प्रचार करने में व्यस्त हैं.
पीएम मोदी का इंटरव्यू लेने के बाद अक्षय कुमार की छवि कुछ लोगों में मन में बिगड़ी भी जरूर है. हो सकता है जैसे कुछ लोगों ने शाहरुख-आमिर की फिल्में देखना छोड़ दिया है, वैसे ही अक्षय कुमार की फिल्में ना देखें. लेकिन अक्षय कुमार ने ये कदम उठाने से पहले सोचा जरूर होगा और हो सकता है कि कैल्कुलेशन भी की हो... कि कुछ लोग छोड़ेंगे तो बहुत से लोग जुड़ेंगे भी. तो फिल्मी सितारों का आकलन पर्दे पर किए उनके अभिनय के हिसाब से ना करें. पर्दे के पीछे की दुनिया को देखने की कोशिश करें, फिल्मी हस्तियों को हकीकत की जमीन पर देखेंगे तो कभी उन्हें आदर्श की मूर्ति नहीं मानेंगे. रही बात मोदी का समर्थन करने की, तो हर किसी का अपना निजी मामला है, कोई मोदी का समर्थन करेगा तो कोई मोदी का विरोध. यही तो लोकतंत्र की खूबसूरती है.
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