प्रवासियों का बहुत पुराना घाव भरा है मोदी ने
मैं फेसबुक के हेडक्वार्टर गई थी सिर्फ मोदी को देखने, लेकिन बाहर आते वक्त मेरे जैसे हज़ारों दिलों ने मन ही मन उनको शुक्रिया कहा होगा.
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भारतीय राजनीति से मेरी दिलचस्पी सालों पहले ही खत्म हो गई थी. भारत से 16 साल दूर रहने पर मैंने राजनीति को छोड़कर भारत की लगभग हर चीज़ को मिस किया. जब मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने, तब खबरें, सोशल मीडिया के प्रभाव से मैं ये मानने लगी थी कि बदलाव आ रहा है, लेकिन फिर भी मैं राजनीति में नहीं उलझी. मैंने हमेशा अपनी मां से कहा- हम भारतीय किसी भी आदमी को बड़ी आसानी से एक जादूगर मान लेते हैं, और समझते हैं कि वो एक रात में सबकुछ बदल देगा. प्रधानमंत्री मोदी की भारत को बदलने की सकारात्मक खबरें पढ़कर मुझे लगा कि ये ज्यादा दिन तक नहीं चलेंगी. और बहुत जल्दी ये दिखने भी लग गया. वो क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं और उनकी विदेशी यात्राओं पर धीरे-धीरे सवाल उठने लगे. तब भी मुझ पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा...मुझे पता था कि ये तो होना ही था.
और फिर सिलीकॉन वैली में मोदी के आने की खबरें आने लगीं. मैंने किसी भी राजनेता को 'लाइव' नहीं सुना था. और मुझे उसमें दिलचस्पी भी नहीं थी, इसलिए मैंने उस कार्यक्रम के लिए खुद को रजिस्टर भी नहीं कराया. पर मेरी एक खास दोस्त जो फेसबुक के लिए काम करती है मेरे पास आई. उसने कहा कि उसके पास दो एक्स्ट्रा पास हैं, क्या तुम मोदी को 'लाइव' सुनना चाहोगी? मैंने अपना कैलेंडर देखा और कहा, चलो ठीक है, चलते हैं. मैं फेसबुक के ऑफिस जाऊंगी और नरेन्द्र मोदी को देखूंगी.
मैं बस ऐसे ही जा रही थी, वीकेंड इंज्वाय करने के हिसाब से. उनके भाषण से मुझे बहुत उम्मीदें नहीं थीं, मेरे लिए वो कोई बहुत खास बात नहीं थी. 30 मिनिट के इंतजार के बाद, आखिरकार मोदी मार्क के साथ आए. और वो लोगों के सवालों के जवाब देने लग गए. पता नहीं कैसे और कब ये बात मेरे मन में आई कि एक प्रधानमंत्री किसी सोशल मीडिया कंपनी के सीईओ के साथ बात क्यों करेगा, और ये कार्यक्रम लाइव चल रहा है, अक्सर ऐसा सुनने में नहीं आता है. वहां मोदी ये बता रहे थे कि कैसे वो सोशल मीडिया को पसंद करने लगे, कैसे उन्हें पता लगा कि इससे क्या क्या सीख सकते हैं और कैसे अलग-अलग भाषाओं में संदेशों का अनुवाद कर सकते हैं, और ये चीनी और इजरायल के लोगों के लिए कितना प्रभावी है. और तब मुझे अहसास हुआ कि ये अलग हैं. वो अलग इसलिए नहीं हैं कि वो अमेरिका में अपने चाहने वालों की संख्या बढ़ा रहे हैं, बल्कि अलग इसलिए हैं कि वो अपने देश और देश के लोगों के लिए अपनी विस्तृत सोच का प्रसार कर रहे हैं. उसी समय वो खड़े हुए और अपने परिवार और अपने मूल्यों के साथ जुड़े रहकर उन्होंने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश दिया, ठीक उसी तरह जैसे वो किसी भी भारतीय के साथ करते.
लेकिन एक बात, जिसने मुझे उनसे और भारतीय राजनीति से जोड़ा वो थी उनकी 'ब्रेन गेन थ्योरी', न कि 'ब्रेन ड्रेन'(प्रतिभा पलायन). सालों से अमेरिका में रहने के कारण मुझ पर प्रतिभा पलायन की दोषी होने का ठप्पा लगा हुआ था, खासतौर पर स्वदेश में मेरे दोस्तों की नजर में. पर ये बात वर्षों से जमा हुए घावों पर मरहम का काम कर रही थी. हां हम एनआरआई हैं. कहने को अमेरिकन इंडियन लेकिन हम आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं. लोगों ने वर्षों से ये सवाल उठाए हैं. लेकिन अब एक प्रधानमंत्री आते हैं जो विदेशी धरती पर खड़े होकर हमें एक प्रमाणपत्र दे रहे है कि हम ने हमारे देश का दोहन नहीं किया है, बल्कि हम एक निवेश बने जिसे हमारे देश ने वर्षों में बनाया और अब इससे रिटर्न्स मिल रहे हैं जो किसी न किसी तरह हर देशवासी को लाभान्वित कर रहे हैं. एनआरआई हमेशा से और हमेशा ही भारत का हिस्सा रहेंगे, हमारी इन भावनाओं को समझने के लिए, मेरे जैसे हज़ारों दिलों ने मन ही मन नरेंद्र मेदी को शुक्रिया कहा.
मैं अपनी एक ख्वाहिश से बात खत्म करूंगी- एक ऐसा भी दिन आएगा, जब भारत से एक प्रधानमंत्री आएगा और वो पहला अमेरिकन इंडियन राष्ट्रपति बनाने के लिए अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों को धन्यवाद देगा. और सरहदों के पार मेरी 'कर्मभूमि' और मेरी 'जन्मभूमि' के बीच रिश्ते और भी मज़बूत होंगें...आमीन !!
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