प्रधानमंत्री मोदी दुरूस्त तो आये - लेकिन अच्छी टीम बनाने में इतनी देर क्यों कर दी?
मोदी ने इस फेरबदल के जरिये ये भी जताने की कोशिश की है कि उनकी टीम में वही फिट हो पाएगा जो काबिल होगा - और काबिलियत के पैमाने में पॉलिटिक्स कोई शर्त नहीं है. वैसे भी माना जाता है कि कुछ करीबियों को छोड़ दें तो नेताओं से ज्यादा मोदी नौकरशाहों पर भरोसा करते हैं.
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मुमकिन है ये महज संयोग हो, लेकिन हुआ तो यही कि हमेशा की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद विदेश दौरे पर रवाना हो गये - 'तब तक के लिए तुम्हारे हवाले वतन नये साथियों.'
मिलते हैं... नये साथियों...
मई, 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद मोदी ने 9 नवंबर को 21 नये मंत्रियों को शामिल किया और दो दिन बाद दस दिन के विदेश दौरे पर चले गये. फिर 5 जुलाई 2016 को मोदी ने मंत्रिमंडल में दूसरी बार फेरबदल की और उसके दो दिन बाद अफ्रीकी मूल के चार मुल्कों के सफर पर चले गये. इस बार वो ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में हिस्सा लेने चीन रवाना हो रहे हैं.
आखिर चौंका ही दिया!
नियुक्तियों के मामले में प्रधानमंत्री मोदी हमेशा चौंकाते रहे हैं, इसलिए अब ये एक नियमित अपेक्षा सी महसूस होने लगी है. सवाल ये उठ रहे थे कि क्या देश को स्थाई रक्षा मंत्री मिलेगा? क्योंकि मनोहर पर्रिकर के गोवा का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद से रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार वित्त मंत्री अरुण जेटली के जिम्मे रहा.
अब देश को स्थाई और पहली महिला रक्षा मंत्री मिल गया है. वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री रह चुकीं निर्मला सीतारमण को प्रमोट कर देश का नया रक्षा मंत्री बनाया गया है. वैसे तो इस देश को इंदिरा गांधी के रूप में महिला प्रधानमंत्री पहले ही मिल चुका है, लेकिन किसी महिला को पहली बार रक्षा मंत्री बनाया गया है. प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी के पास रक्षा मंत्रालय भी रहा था.
देश में पहली बार...
दुर्घटनाओं पर काबू पाने में नाकाम सुरेश प्रभु के रेलवे छोड़ने के बाद पीयूष गोयल को नया रेल मंत्री बनाया गया है. बतौर ऊर्जा राज्य मंत्री गोयल के बेहतरीन काम के लिए ही उन्हें प्रमोशन दिया गया और अब उनके ऊपर रेलवे के सुधार का दारोमदार होगा.
मोदी ने इस फेरबदल से साफ कर दिया है कि कुछ भी हो काम हमेशा बोलता है. चार राज्य मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण और मुख्तार अब्बास नकवी को प्रमोशन दिया जाना इस बात का संकेत हैं कि जो काम करेगा वो अंदर तो रहेगा ही तरक्की भी उसी की होगी और निकम्मों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.
धर्मेंद्र प्रधान को कैबिनेट मिनिस्टर बनाने के साथ ही उन्हें राजीव प्रताप रूडी वाले कौशल विकास का जिम्मा भी सौंपा गया है. इसके साथ ही उनके पास पेट्रोलियम मंत्रालय भी बना रहेगा.
पॉलिटिक्स नहीं, काबिलियत ज्यादा जरूरी
मोदी ने इस फेरबदल के जरिये ये भी जताने की कोशिश की है कि उनकी टीम में वही फिट हो पाएगा जो काबिल होगा. मोदी के काबिलियत के इस पैमाने में पॉलिटिक्स सबसे बड़ी शर्त नहीं है. वैसे भी माना जाता रहा है कि कुछ करीबियों को अलग रख कर देखें तो मोदी नेताओं से ज्यादा नौकरशाहों पर ही भरोसा करते हैं.
मोदी के नये सेलेक्शन में ब्यूरोक्रेसी से आने वाले चार चेहरे हैं. मजे की बात ये है कि इनमें से दो तो संसद के किसी सदन के सदस्य भी नहीं हैं. अल्फोंस कन्नाथनम और हरदीप सिंह पुरी को छह महीने के भीतर किसी सदन की सदस्यता लेनी होगी.
ब्यूरोक्रेसी से आने वाले आरके सिंह को ऊर्जा एवं नवीकरणीय एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है. इससे पहले ये जिम्मेदारी पीयूष गोयल के पास थी. देश के गृह सचिव रह चुके आरके सिंह को मोदी सरकार में मंत्री पद दिया जाना भी हैरान करने वाला माना जा रहा है.
ये आरके सिंह ही रहे जिन्होंने 2015 के बिहार चुनाव में बीजेपी पर पैसे लेकर दागियों और अपराधियों को टिकट देने का आरोप लगाया था. सिर्फ इतना ही नहीं, आरके सिंह ने ललित मोदी गेट को लेकर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी कठघरे खड़ा कर दिया था. आरा से सांसद आरके सिंह के अलावा बिहार के बक्सर से अश्विनी चौबे को भी राज्य मंत्री बनाया गया है. अश्विनी चौबे को प्रधानमंत्री मोदी का करीबी भी बताया जाता है जिन्हें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री बनाया गया है.
आरके सिंह के साथ कई और भी दिलचस्प वाकये जुड़े हैं. जब 23 अक्टूबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा बिहार में रोकी गयी थी तब वो समस्तीपुर के डीएम थे. यहीं नहीं जब यूपीए शासन में पी. चिदंबरम के जमाने में भगवा आतंकवाद की थ्योरी चली तो वो केंद्रीय गृह सचिव थे. जमाना बदल चुका है. बीती बातें सिर्फ याद करने के लिए ही बची हैं.
आरके सिंह के अलावा अल्फोंस 1979 बैच के केरल कैडर के आईएएस अफसर रहे हैं. 1994 में टाइम मैगजीन ने अल्फोंस को दुनिया के 100 युवा ग्लोबल लीडर्स की सूची में शामिल किया था. बतौर डीडीए के कमिश्नर अल्फोंस ने 15 हजार गैरकानूनी इमारतों का अतिक्रमण हटाया और उसके बाद उन्हें दिल्ली का डिमॉलिशन मैन कहा जाने लगा.
अल्फोंस के जरिये बीजेपी केरल में पांव जमाने की कोशिश करेगी, ऐसा माना जा रहा है. केरल में टूरिज्म का बड़ा कारोबार है और उन्हें पर्यटन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिये जाने के पीछे एक वजह ये भी जरूर रही होगी. इसके अलावा उनके पास सूचना और प्रसारण मंत्रालय की भी जिम्मेदारी रहेगी. 1974 बैच के आईएफएस अधिकारी रह चुके हरदीप सिंह पुरी को राज्य मंत्री के रूप में स्वतंत्र प्रभार मिला है और उन्हें आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय मिला है. पुरी को विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों का जानकार माना जाता रहा है इसीलिए उम्मीद थी कि उन्हें विदेश या रक्षा मंत्रालय मिल सकता है. मुंबई पुलिस के कमिश्नर रह चुके सत्यपाल सिंह को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया है.
थोड़ा ध्यान चुनावी राजनीति पर भी...
बीजेपी ने महेंद्र नाथ पांडेय को सरकार से संगठन में भेज कर यूपी के ब्राह्मणों को जो मैसेज देने की कोशिश की, अब उसे डबल कर दिया है - और इस डबल बेनिफिट स्कीम में निशाना भी डबल लगाया है. महेंद्र नाथ पांडेय के यूपी बीजेपी चीफ बनने के बाद दूसरे ब्राह्मण सांसद शिव प्रताप शुक्ल को मंत्री बना कर भी मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने कई समीकरणों को दुरूस्त करने की कोशिश की है.
इस बात के संकेत तो बीजेपी ने शिव प्रताप शुक्ल को राज्य सभा में भेज कर ही दे दिये थे. लगातार कई बार विधायक और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके शिव प्रताप शुक्ल बाद के दिनों में मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चलते हाशिये पर चले गये थे. इसके चलते गोरखपुर और उसके आस पास के इलाकों में ठाकुरों और ब्राह्मणों में विभाजन की रेखा खिंच गयी थी. 2002 में योगी ने शिव प्रताप के खिलाफ हिंदू महासभा के उम्मीदवार राधामोहन अग्रवाल को उतार कर हरा दिया था. तभी से परंपरागत ठाकुर और ब्राह्मण वोटों में शक्ति संतुलन कायम करना बीजेपी के लिए चुनौती बनी हुई थी. शिव प्रताप को पहले सांसद और अब मंत्री बनाकर बीजेपी ने अपनी तरफ से ऐसी कोशिश की है. इसके साथ ही पूर्वांचल से कलराज को हटाने के बाद बीजेपी ने संकेत देने की कोशिश की है कि ब्राह्मण समुदाय इसे अन्यथा न ले.
टीम मोदी नये अवतार में...
उधर, कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और यही वजह है कि ताकतवर नेता अनंत कुमार हेगड़े को सोच समझ कर जगह दी गयी है. हेगड़े उन नेताओं में शामिल थे जिन्होंने कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया था - और ये बात बीजेपी को बहुत सूट करती है. मध्य प्रदेश से आने वाले दलित नेता वीरेंद्र कुमार को महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री तो राजस्थान के गजेंद्र सिंह शेखावत को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में भेजा गया है.
उमा भारती का मंत्रालय नितिन गडकरी के जिम्मे हो गया है जबकि उमा को पेय जल एवं स्वच्छता मंत्रालय पहुंचा दिया गया है. रेलवे छोड़ने वाले सुरेश प्रभु अब वाणिज्य मंत्रालय का कामकाज देखेंगे और स्मृति ईरानी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनी रहेंगी.
कुल मिला कर देखें तो प्रधानमंत्री मोदी और उनके सिपहसालार अमित शाह ने मिल कर टीम तो अच्छी बनायी है लेकिन इसमें इतनी देर लगा दी कि अच्छे दिनों की अब तो उम्मीद नहीं बची. वक्त कम होने के कारण नयी टीम पर दबाव भी ज्यादा होगा - और फिर कितना कुछ हो पाएगा कहना मुश्किल हो रहा है. महिला आरक्षण बिल के मामले में राजनीतिक दलों का जो भी रवैया हो, प्रधानमंत्री मोदी ने चार लोगों की कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी मेें दो महिलाओं को तो जगह दे ही दी है. है कि नहीं?
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