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Updated: 28 जुलाई, 2021 07:01 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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2019 का आम चुनाव जीतने के बाद देश में मोदी-शाह की भाजपा (Modi Shah BJP) अजेय सी लगने लगी थी. चुनावों में 'चौकीदार चोर है' जपने वाले राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ कर भाग खड़े हुए तो बैठने का नाम ही नहीं ले रहे हैं - थोड़ा महाराष्ट्र और थोड़ा झारखंड को छोड़ दें तो तमिलनाडु में डीएमके ने बस इज्जत बचा ली है.

पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे आने से पहले तक सिर्फ प्रशांत किशोर को छोड़ दें तो ज्यादातर लोगों का नजरिया यही रहा कि मोदी-शाह बंगाल भी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के लिए नहीं छोड़ने वाले, सिवा प्रशांत किशोर के - और वो पूरी तरह सही भी साबित हो गये क्योंकि बंगाल में बीजेपी सौ सीटों के आंकड़े तक नहीं ही पहुंच पायी. बंगाल में संतोष करने के लिए बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी की तरफ से ममता बनर्जी को शिकस्त का तोहफा ही रहा, बस.

बात चुनावी राजनीति की हो तो प्रशांत किशोर की हर बात महत्वपूर्ण हो जाती है और बंगाल में बीजेपी को लेकर उनकी भविष्यवाणी सही होने के बाद तो उनकी बातों को गंभीरतापूर्वक लिया जाना भी जरूरी हो जाता है.

बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने नया दावा किया है कि बीजेपी को जितना समझा जा रहा है, उतना ताकतवर राजनीतिक दल नहीं है - और वो बड़े आराम से समझा रहे हैं कि 2014 में जो कांग्रेस के साथ हुआ वैसा ही 2024 में बीजेपी के साथ हो सकता है.

मोदी सरकार के केंद्र में अब तक सात साल हो चुके हैं और अगले तीन साल तक बीजेपी के पास अकेले इतनी सीटें हैं कि कोई भी बाल बांका करने का दुस्साहस नहीं कर सकता. फिर भी प्रशांत किशोर को ऐसा क्यों लगता है कि 2024 में मोदी-शाह को राजनीतिक शिकस्त देना नामुमकिन नहीं है - वो भी तब जबकि ऐसा चैलेंज करने का दम न तो ममता बनर्जी में दिखायी पड़ रहा है, न ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi). प्रशांत किशोर ने अब तक ये तो नहीं बताया है, लेकिन इस बात को समझा जाना भी जरूरी हो जाता है.

2024 में मोदी-शाह कौन करेगा चैलेंज?

पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान ही बीजेपी के आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने ममता बनर्जी के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का एक ऑडियो शेयर किया था जो बाद में वायरल हो गया. ये ऑडियो क्लिप क्लबहाउस चैट ऐप से लिया गया था जिसमें प्रशांत किशोर कुछ पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. ऑडियो में बातें तो बहुत हुई थीं, लेकिन अमित मालवीय ने काट छांट कर बीजेपी की फायदे वाली बातें शेयर की थी.

बातचीत के दौरान प्रशांत किशोर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बंगाल में तो बराबर लोकप्रिय बता रहे थे, लेकिन बाद के इंटरव्यू में ऐसे सवालों के जबाव में यहां तक बताया कि देश में मोदी का कोई सानी नहीं - और एक इंटरव्यू में तो राहुल गांधी और मोदी में तुलना करते हुए फर्क भी समझाया था.

एक बार तो प्रशांत किशोर मोदी-शाह की बीजेपी के खिलाफ कोई मोर्चा खड़ा किये जाने की संभावना को ही असंभव बता डाला था, लेकिन अब वो दावा करने लगे हैं कि तीन साल बाद बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करना मुश्किल भले हो, लेकिन नामुमकिन तो नहीं ही है.

एनडीटीवी के साथ बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा था, 'मैं तीसरे या चौथे मोर्चे में विश्वास नहीं करता... विश्वास नहीं करता कि तीसरा या चौथा मोर्चा सफलतापूर्वक बीजेपी को चुनौती दे सकता है."

लेकिन ताजा बातचीत के बाद बीबीसी हिंदी ने लिखा है कि तमाम चीजों के बावजूद 'प्रशांत किशोर को लगता है कि 2024 में तीसरी बार सत्ता में आने का प्रयास करने वाली बीजेपी को हराना असंभव नहीं है.'

rahul gandhi, narendra modi, mamata banerjeeमोदी के मुकाबले ममता बनर्जी रेस में राहुल गांधी से आगे निकल चुकी हैं

ऐसा लगता है प्रशांत किशोर एक रणनीति के तहत ऐसी टिप्णियां करते रहे हैं. हर कुछ दिन बात एक खास बात कही है. वो दावा तो अब भी करते हैं कि मोदी-शाह के खिलाफ कोई तीसरा या चौथा मोर्चा खड़ा नहीं किया जा सकता, लेकिन ये भी कह रहे हैं क बीजेपी को जितना शक्तिशाही समझा जाता है, वैसी वास्तव में वो है नहीं. नये इंटरव्यू में कहते हैं, 'विकल्प और पर्याप्त उदाहरण मौजूद हैं, जो दिखाते हैं कि सही रणनीति और प्रयासों से बीजेपी को हराया जा सकता है.'

प्रशांत किशोर का मानना है कि किसी भी राजनीतिक दल के लिए बीजेपी को चैलेंज करने के लिए पूरा स्पेस है, भले ही वो कोई नया राजनीतिक दल हो या फिर पुराना ही क्यों न हो. प्रशांत किशोर का मानना है कि 80 के दशक से ही कांग्रेस का पतन शुरू हो चुका है, लेकिन बीजेपी को चुनौती देने वाली देश में सबसे बड़ी पार्टी भी अभी वही है.

बीजेपी के केंद्र की सत्ता में हैट्रिक लगाने के बीबीसी के सवाल पर प्रशांत किशोर कहते हैं, ''विकल्प और पर्याप्त उदाहरण मौजूद हैं, जो दिखाते हैं कि सही रणनीति और प्रयासों से बीजेपी को हराया जा सकता है.''

चलिये मान भी लेते हैं कि सत्ता की तीसरी पारी की कोशिश के दौरान बीजेपी को हरा पाने का स्कोप है - लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही कि बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन?

बेशक विपक्षी खेमे में प्रशांत किशोर के एक्टिव, शरद पवार के परदे के पीछे और सामने से यशवंत सिन्हा की कोशिशों की बदौलत एकजुट होने के प्रयास जारी हैं. ये भी मान लेते हैं कि शुरुआती दौर में कांग्रेस को दरकिनार किये जाने के बाद प्रशांत किशोर अब राहुल गांधी सहित पूरे परिवार से मिल चुके हैं.

कोई दो राय नहीं कि विपक्षी खेमे में पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी के नेतृत्व की स्वीकार्यता बढ़ी भी है, लेकिन मोदी के मुकाबले लोगों के बीच वो बहुमत का पसंदीदा चेहरा बनने जा रही हैं, फिलहाल तो संभव नहीं लगता.

मोदी बनाम ममता और राहुल

पश्चिम बंगाल चुनावों से लेकर अब तक प्रशांत किशोर के कई बयान आये हैं, लेकिन वे सभी रणनीतिक तौर पर एक खास लाइन पर ही फोकस लगते हैं - और साफ तौर पर समझ में आ जाता है कि प्रशांत किशोर की कंपनी आई-पैक और तृणमूल कांग्रेस का कांट्रैक्ट 2026 तक बढ़ाने का मकसद क्या है?

क्लबहाउस चैट में प्रशांत किशोर कहते सुने गये थे, 'मोदी बंगाल में बहुत लोकप्रिय हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है - वो ममता बनर्जी जितने लोकप्रिय हैं.'

ऑडियो चैट वायरल होने के बाद मोदी और राहुल गांधी की तुलना को लेकर पूछे गये एक सवाल पर प्रशांत किशोर का जवाब रहा, 'दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है... इसका बैठकर विश्लेषण करने की जरूरत है... दोनों की कार्यशैली अलग है. मोदीजी के जो काम करने का तरीका है, वो उनको सूट करता है - उनके लिए वो सफल रहा है.'

मोदी और ममता की तुलना में भी प्रशांत किशोर दोनों की अलग अलग खासियत भी बता चुके हैं, 'मोदीजी की जो ताकत है, वो एक गजब के श्रोता हैं... दूसरों को सुनने में उनका कोई सानी नहीं है... ' बिलकुल वैसे ही प्रशांत किशोर के मुताबिक ममता बनर्जी की ताकत बुनियादी चीजों को लेकर उनकी समझ है, 'जो उनकी एनर्जी है जो लोगों से जुड़ने की उनकी क्षमता है...'

मोदी और ममता की लोकप्रियता को बराबर और राहुल गांधी से तुलना में जमीन आसमान का फर्क बताकर प्रशांत किशोर एक तरीके से समझा तो यही रहे हैं कि ममता बनर्जी ही मोदी को एक दिन चैलेंज कर सकती हैं, लेकिन राहुल गांधी को इसके लिए भी मीलों का सफर तय करना होगा.

2024 के पॉलिटिकल सीन को कैसे समझें?

बीजेपी की चुनावी राह के ज्यादातर रोड़े उसके राष्ट्रवाद के एजेंडे और हिंदुत्व की राजनीति के आगे नतमस्तक होकर रास्ता दे देते हैं. विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे जरूर बीजेपी के लिए मुश्किल साबित होते हैं, लेकिन अब तक ऐसा कभी नहीं लगा है कि मोदी-शाह को ऐसी चीजों की बहुत परवाह भी रहती है.

अयोध्या मुद्दे से लेकर जम्मू-कश्मीर तक बीजेपी बारी बारी इस्तेमाल कर चुकी है. आम चुनाव में मंदिर मुद्दा तो होल्ड ही कर लिया था और झारखंड या दिल्ली में ये चले नहीं. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का ढिंढोरा तो बीजेपी नेतृत्व ने महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में भी दिल खोल कर पीटा था, लेकिन सीटों की संख्या नहीं बढ़ा पाये.

कोरोना संकट के दौरान लोगों ने जो मुश्किलें झेलीं वो नोटबंदी के साइड इफेक्ट जैसी ही थीं, लेकिन कोविड 19 के प्रकोप के दौरान जरूरी दवाइयो, अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन के लिए जिस तरीके से सड़क पर लोक मारे फिरते दिखे, बीजेपी ऊपर से नीचे तक हिल गयी है, इसमें कोई दो राय नहीं है. लंबी खामोशी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से संवाद के दौरान गला भर आना और योगी आदित्यनाथ के अड़ जाने पर अरविंद शर्मा को खूबसूरत सपने दिखाने के बाद मोदी-शाह का खामोशी कदम पीछे खींच लेना बता रहा है कि खुद बीजेपी नेतृत्व भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं देख पा रहा है.

देश के सामने अभी जो समस्याएं खड़ी हैं या जो राजनीतिक समीकरण बनते बिगड़ते नजर आ रहे हैं, ये समझना जरूरी हो गया है कि आखिर चल क्या रहा है? पब्लिक मेमरी को शॉर्ट माना जाता है - बीजेपी को पक्का यकीन है कि यूपी चुनाव के माहौल बनते बनते लोग कोविड 19 के दिनों को भूल कर मंदिर निर्माण को लेकर खुशी जता रहे होंगे. जाहिर है क्रेडिट तो बीजेपी को ही मिलना है.

फिर भी अभी के हिसाब से तीन साल बाद काफी बदलाव संभव हैं, लेकिन कुछ सवाल ऐसे भी हैं जिनके जवाब तलाश कर 2024 के सिचुएशन की काफी हद तक परिकल्पना की जा सकती है -

1. राहुल गांधी क्या करेंगे : ये ठीक है कि पंजाब के बाद राजस्थान कांग्रेस का झगड़ा सुलझाने की शिद्दत से कोशिश हो रही है, लेकिन जिस तरह कांग्रेस नेतृत्व पार्टी की अंदरूनी समस्याओं में उलझा हुआ है - लगता तो नहीं कि राहुल गांधी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर नहीं देने जा रहे हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि जिसका कांग्रेस को लीड करने का भरोसा ही डोल गया हो, वो लोगों को कैसे विश्वास दिलाएगा कि मोदी से बेहतर देश के नेतृत्व दे सकेगा.

2. मोदी के खिलाफ मोर्चा : जहां तक अब तक हर बार असफल रहे तीसरे मोर्चा की बात है, वो तो तभी संभव है जब कांग्रेस और बीजेपी से अलग क्षेत्रीय नेताओं का कोई गठबंधन खड़ा करने की कोशिश हो, लेकिन अगर मोदी-शाह के खिलाफ एक ही संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश चल रही हो, तो क्या कहेंगे? प्रशांत किशोर के कहने का मतलब भी तो यही लगता है.

3. ममता बनर्जी, कोई और नहीं : ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बता कर प्रशांत किशोर ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ममता बनर्जी ही प्रधानमंत्री मोदी को टक्कर दे सकती हैं - राहुल गांधी नहीं.

4. कौन होगा चैलेंजर : सवाल ये है कि क्या बीजेपी को वास्तव में 2024 में शिकस्त दी जा सकती है? सही वस्तुस्थिति तो तात्कालिक हालात ही बताएंगे, लेकिन अभी ये तो कहा ही जा सकता है कि बीजेपी या मोदी-शाह को कोई चैलेंज कर सकता है तो वो बीजेपी ही है या फिर खुद मोदी-शाह.

5. विपक्षी मोर्चा कितना टिकाऊ : 2024 में संभावित राजनीतिक समीकरण: 2024 कई तरह के राजनीति समीकरणों के संकेत मिलते हैं - हो सकता है बीजेपी बहुमत के आस पास पहुंचे. हो सकता है बीजेपी बहुमत से चूक जाये - और विपक्षी मोर्चा सरकार बनाने की कोशिश करे.

फर्ज कीजिये किसी तरह बहुमत के करीब पहुंच कर भी बीजेपी जोड़-तोड़ से सरकार बनाने का इरादा त्याग देती है, जैसा कि उसने महाराष्ट्र में किया या अब तक ढो रही है - हो सकता है नयी सरकार में कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री पद को लेकर झगड़ा शुरू हो जाये और जैसे इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई के लिए चरण सिंह का इस्तेमाल किया था या राजीव गांधी ने घर के सामने टहलते हुए दो सिपाहियों के बहाने चंद्रशेखर सरकार से सपोर्ट वापस ले लिया था - अगली बार बीजेपी कोई नया खेल कर दे!

एक फायदा ये जरूर हो सकता है कि ये सब होने पर देश को एक मजबूत विपक्ष मिल सकता है - और बड़ा नुकसान ये कि एक बार फिर से देश में कमजोर सरकारों को दौर शुरू हो जाएगा!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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