बंगाल ही क्यों मोदी-शाह के मिशन-2021 में केरल से तमिलमाडु तक हैं
मोदी-शाह का मिशन-2021 (Modi Shah Mission 2021) अभी सिर्फ पश्चिम बंगाल तक (West Bengal Election 2021) ही सीमित रहने वाला है - केरल और तमिलनाडु (Kerala and Tamil Nadu) को लेकर बस इतनी ही कोशिश है कि अगली बार सरकार बनाने में कोई अड़चन न हो.
-
Total Shares
पश्चिम बंगाल चुनाव (West Bengal Election 2021) बीजेपी नेता अमित शाह के लिए पार्टी के पंचायत से पार्लियामेंट तक वाले स्वर्णिम काल के रास्ते में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. पश्चिम बंगाल पर जोर तो है ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र की बीजेपी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते हुए अन्य राज्यों में भी पांव जमाने की कोशिशें जारी हैं - तमिलनाडु को लेकर तो ये भी साफ हो चुका है कि 'अबकी बार...' नहीं बल्कि, 'अगली बार'. केरल और तमिलनाडु (Kerala and Tamil Nadu) को लेकर करीब करीब एक जैसी ही अपेक्षा लगती है.
2021 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में सिर्फ असम में बीजेपी की सरकार है. पश्चिम बंगाल को तो बीजेपी के एजेंडे में सबसे ज्यादा तरजीह मिल रही है, लेकिन पार्टी नेतृत्व की नजर केरल पर भी है. मान कर चलना होगा, वायनाड से सांसद होने के नाते राहुल गांधी केरल में कांग्रेस का कद बढ़ाने की कोशिश तो करेंगे ही. मालूम नहीं राहुल गांधी बीजेपी के हमलों का कैसे जवाब देंगे कि क्यों लेफ्ट पार्टियां केरल में कांग्रेस की दुश्मन हैं और पश्चिम बंगाल में दोस्त बनी हुई हैं!
ऐसा भी नहीं कि मोदी-शाह के मिशन-2021 (Modi Shah Mission 2021) में सिर्फ राज्यों के विधानसभा चुनाव ही हैं - हरियाणा में बीजेपी को किसानों के आंदोलन की वजह से झटका जरूर लगा है, लेकिन हैदराबाद नगर निगम चुनाव में अमित शाह ने बीजेपी के सभी बड़े बडों को उतार कर ये तो साफ कर ही दिया है कि वो आगे से पार्लियामेंट की ही तरह पंचायत चुनाव भी लड़ने जा रहे हैं.
अबकी बार सिर्फ पश्चिम बंगाल!
बीजेपी नेता अमित शाह का तात्कालिक प्रयास तो यही है कि जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां कम से कम पांव रखने भर की जगह बन जाये. पश्चिम बंगाल को लेकर 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की यही कोशिश रही, जबकि पूरा जोर असम में सत्ता हथियाने पर रहा. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में हार से बीजेपी नेतृत्व खासा परेशान रहा. असम चुनाव में बीजेपी की रणनीति थोड़ी बदली हुई भी रही. अमित शाह ने सर्बानंद सोनवाल को मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर पहले ही भेज दिया था. केंद्र सरकार में मंत्री होने के आखिरी दिनों में सर्बानंद सोनवाल का ज्यादा ध्यान असम पर ही देखा गया. 2019 में 18 लोक सभा सीटें जीत लेने के बाद बीजेपी नेतृत्व को लगा कि अब पांव तो जम ही चुके हैं खड़े होने की कोशिश के साथ सत्ता पर काबिज होने को लेकर भी हाथ आजमा लिया जाये.
ये आम चुनाव में मिले लोगों के सपोर्ट से बढ़ा आत्मविश्वास ही है जो अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ विध्वंसक रणनीति तैयार कर रखी है - शुभेंदु अधिकारी बीजेपी को कितना फायदा पहुंचा पाएंगे ये तो देखना होगा, लेकिन बीजेपी ने उनके जरिये ममता बनर्जी को निश्चित तौर पर मिलने वाले फायदे की सप्लाई तो पूरी तरह काट ही डाली है. अब जिस रणनीति पर बीजेपी नेतृत्व आगे बढ़ रहा है, लगता है शुभेंदु अधिकारी के साथ साथ मुकुल रॉय भी चल जाएंगे. बारी बारी ही सही, बीजेपी ने तो ममता बनर्जी से उनके करण-अर्जुन को छीन ही लिया है.
ये सही है कि ममता बनर्जी अपने तरीके से अमित शाह की बढ़त को काउंटर करने की कोशिश कर रही हैं. बासुदेव बाउल का अमित शाह को लंच कराने के बाद ममता बनर्जी की तारीफ में म्युजिकल कसीदे पढ़ना कोई मामूली बात भी नहीं है, लेकिन अंदर ही अंदर बीजेपी जिस तरह काम कर रही है, वो भारी उलटफेर करने वाला लगता है.
मोदी-शाह की जोड़ी दक्षिण भारत के विधानसभा चुनावों में ऐसे प्रदर्शन की कोशिश में है कि नतीजे आने के बाद उत्तर भारत की राजनीति को लेकर फिक्र करने की जरूरत न रहे!
जहां कहीं भी बीजेपी चुनावी तैयारियों में लगती है, RSS की टीम पहले से ही डेरा जमा लेती है और बीजेपी के पक्ष में परसेप्शन मैनेजमेंट में लग जाती है. पश्चिम बंगाल को लेकर अमित शाह ने इस बार संघ के प्रचारकों के साथ साथ एक ऐसी भी टीम मैदान में उतार रखी है, जिसके काम करने का तरीका 2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी के संपर्क फॉर समर्थन कार्यक्रम से काफी मिलता जुलता है.
द प्रिंट वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी नेतृत्व ने 70-100 पेशेवरों की टीम को फील्ड में उतार रखा है. ये डॉक्टर, आईआईटी ग्रेजुएट, प्रोफेसर, वकील और स्ट्रीट प्ले करने वालें पेशेवरों की टीम है जो लोगों के बीच पैठ बना कर फीडबैक ले रहे हैं. इनके फीडबैक से जो रिपोर्ट तैयार होगी उसकी समीक्षा के बाद ही बीजेपी का मैनिफेस्टो भी तैयार होने वाला है.
'प्रोफेशनल्स फॉर बंगाल' संघ प्रचारक रहे बीजेपी के संयुक्त महासचिव शिवप्रकाश के दिमाग की उपज है - और ये पेशेवर बगैर किसी झंडे या बैनर के लिए सीधे वोटर के बीच काम कर रहे हैं. ये लोगों से मिलते तो संघ वाले अंदाज में ही हैं, लेकिन निजी तौर पर - अपने खुद के परिचय के बूते. ये लोगों से बात कर उनकी चिंताओं को समझने की कोशिश करते हैं - और अगर एक बार ऐसे खुल कर संवाद होने लगे फिर तो पार्टी का एजेंडा लागू हो ही जाएगा.
पेशेवरों की ये टीम फील्ड में उतारने के पीछे अमित शाह की ये भी सोच रही होगी कि बीजेपी की लड़ाई महज ममता बनर्जी से ही तो है नहीं, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर और उनकी टीम भी तो काफी पहले से ही काम में लगी हुई है. शुभेंदु अधिकारी को मनाने से लेकर लेफ्ट के विधायकों और कद्दावर नेताओं को टीएमसी में लाने के लिए प्रशांत किशोर कितनी मशक्कत कर रहे हैं, पश्चिम बंगाल से आने वाली खबरें बताती ही हैं.
ये तो साफ है कि बीजेपी की रणनीतियां भी अंदर और बाहर दोनों जगह से गुल खिला ही रही हैं - तभी तो तो ममता बनर्जी, भतीजे अभिषेक और प्रशांत किशोर की मदद से भी न तो शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी ज्वाइन करने से रोक पायीं - और न ही, जैसी की खबरें आ रही हैं, उनके सांसद पिता और भाई को ही रोकने की स्थिति में हैं. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी को शुभेंदु के साथ बोनस में दो-दो तृणमूल कांग्रेस सांसद भी मिल जाएंगे.
केरल और तमिलनाडु अगली बार
2024 को ध्यान में रख कर अगर बीजेपी दक्षिण भारत की राजनीति में पैठ बनाने के बारे में गंभीरता से सोच रही है तो ये साल सबसे बड़ा मौका दे रहा है. पश्चिम बंगाल के अलावा जिन दो राज्यों - केरल और तमिलनाडु पर बीजेपी की नजर है, विधानसभा चुनाव 2021 में ही होने वाले हैं.
तमिलनाडु में तो बीजेपी और सत्ताधारी एआईएडीएमके के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की भी घोषणा हो चुकी है. अमित शाह के चेन्नई दौरे में ये घोषणा की गयी जब मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी के साथ साथ डिप्टी सीएम ओ. पनीरसेल्व में भी मौजूद रहे. एआईएडीएमके की घोषणा के बीच ही अमित शाह तमिलनाडु बीजेपी कार्यकर्ताओं से मुखातिब हुए - और अपने मोटिवेशनल स्पीच में समझाया कि अगली बार यानी 2026 के लिए ऐसी तैयारी करें कि बीजेपी तमिलनाडु में अपने बूते सरकार बनाने में कामयाब हो जाये.
अमित शाह के दौरे में एआईएडीएमके से गठबंधन तो फाइनल हो गया, लेकिन वो काम लटका ही रह गया जिसके लिए बीजेपी नेतृत्व बरसों से लगा हुआ है - रजनीकांत का सपोर्ट हासिल करने की. अमित शाह के दौरे से पहले एक मध्यस्थ के जरिये रजनीकांत को मैसेज पहुंचा दिया गया था, लेकिन तमाम चर्चाओं के बावजूद वो मुलाकात नहीं ही हो सकी.
केरल के मामले में देखा जाये तो अब जाकर बीजेपी इस स्थिति में पहुंच पायी है कि उसे नजरअंदाज तो नहीं किया जा सकता, लेकिन पंचायत चुनाव में उसके प्रदर्शन के आधार पर कोई बड़ी उम्मीद भी नहीं की जा सकती. जैसे कश्मीर घाटी में भी बीजेपी खाता खोलने में कामयाब रही है, करीब करीब वैसे ही केरल में हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भी बीजेपी कुछ इलाकों में हाजिरी लगाने में सफल रही है. 2015 के मुकाबले ग्राम पंचायत चुनावों में बीजेपी को 14 के मुकाबले 9 सीटें ज्यादा यानी 23 मिली हैं.
बीजेपी सांसद केजे अल्फोन्स का कहना है कि 23 ग्राम पंचायतों में जीत दर्ज कराने के साथ साथ 50 ग्राम पंचायतों में बीजेपी दूसरे राजनीतिक दलों के मुकाबले में आ चुकी है. केरल में सत्ताधारी एलडीएफ का प्रदर्शन मुख्यमंत्री पी. विजयन के लिए करीब करीब चिंतामुक्त करने वाला है. रिपोर्ट के मुताबिक, 941 ग्राम पंचायतों में से 514 और 14 जिला पंचायतों में से 10 जिले एलडीएम की झोली में ही गये हैं.
केरल को लेकर अमित शाह ने 2019 से पहले तब काफी सक्रियता दिखायी थी जब सबरीमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. फैसले के विरोध में अमित शाह ने यहां तक कह डाला था कि अदालतों को ऐसे ही फैसले सुनाने चाहिये जिन पर अमल किया जा सके - हालांकि, आम चुनाव में बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका, लेकिन कांग्रेस एक सीट जीतने में तो कामयाब रही ही. राहुल गांधी की वायनाड सीट. पंचायत चुनावों में बीजेपी की सबरीमाला मुहिम के गढ़ रहे पालाकाड में उत्साहवर्धक समर्थन हासिल हुआ है. ज्यादा कुछ नहीं तो, तिरुअनंतपुरम की शहरी आबादी में घुसपैठ कर बीजेपी विधानसभा चुनावों में मजबूत मौजूदगी दर्ज करा सकती है.
निजी प्रदर्शन के बूते केरल और एआईएडीएमके के साथ गठबंधन की बदौलत तमिलनाडु में भी बीजेपी के बेहतरीन तो नहीं, लेकिन बेहतर प्रदर्शन के संकेत जरूर मिलने लगे हैं - और पश्चिम बंगाल में कहीं उलटफेर कर दिया तो उत्तर भारत में जमीन बनाये रखने को लेकर बीजेपी नेतृत्व की फिक्र काफी कम हो सकती है.
इन्हें भी पढ़ें :
2020 में जोखिम उठाने वाले इन 5 नेताओं की उम्मीदें नये साल पर ही टिकी हैं
ममता बनर्जी का अमित शाह को उनके अंदाज में ही संगीतमय जवाब
5 कारण, कांग्रेस से 'खुशबू' खींचकर कैसे 'कमल' को तमिलनाडु में बल मिला है
आपकी राय