शर्म! मोदी जी, आपकी नाक के नीचे ही महफूज नहीं हैं बेटियां
मोदी जी, देश के विकास के नाम पर आप दुनियाभर में आना-जाना कर रहे हैं. आपके मंत्री और समर्थक गाय के नाम पर कोहराम मचाए हुए हैं. और इसी बीच दो बेटियों (ढाई और 5 साल की) को आपकी नाक के नीचे (दिल्ली में) वहशी बर्बाद कर देते हैं. अब बताइए, बेटी बचाओ के नारे के साथ गोरक्षा वाली तेजी क्यों नहीं दिखाई जा रही?
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पिछले शुक्रवार की ही खबर थी कि एक पांच साल की लड़की का तीन लोगों ने मिल के बलात्कार किया और कल फिर से ढाई साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार हुआ, दोनों के जननांग बुरी तरह चोटिल हैं और उन से लगातार खून बह रहा है. लेकिन इन सब ख़बरों से बेखबर 'बहुत हुआ नारी पार वार, अब की बार मोदी सरकार' का नारा देने वाले बीजेपी के नेता सुबह से शाम तक सिर्फ गौ-रक्षा का महत्व ही समझा रहे हैं. लड़कियों को दिन ढलते ही घर आने की सलाह देने वाले संस्कृति मंत्री का अभी तक कोई बयान नहीं आया. योगी आदित्यनाथ का खून भी अभी तक नहीं खौला. शायद उन के संस्कृति रक्षण की परिभाषा सिर्फ गाय तक ही सीमित है.
एक दूसरी खबर में एक शख्स को गाय की तस्करी में शामिल होने के शक के चलते पीट पीट कर मार डाला गया.
जिस समय हम बीजेपी के वरिष्ठ नेता मनोहर लाल खट्टर के इस बयान पर कि मुसलमान बीफ़ खाएं तो भारत छोड़ें, पर परिचर्चा कर और सुन रहे थे, हिमाचल प्रदेश में एक गरीब को गाय की तस्करी में शामिल होने के शक के बिनाह पर पीट पीट कर मौत के घाट उतारा जा रहा था. मनोहर लाल खट्टर बीजेपी के उन उभरते नेताओं में से एक हैं जो मुंह खोलते ही एक कन्ट्रोवर्सी को जन्म देते हैं. इस से पहले उनके इस बयान पर कि स्वतंत्रता का मतलब ये नहीं कि लडकिया नंगी घूमें, वो काफी चर्चा में रहे थे. ये देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि स्व-घोषित अच्छे नसीब वाले ने जब से PM के पद को नवाज़ा है, देश का समय और उर्जा बहुत सारी घटिया चर्चाओं पर खर्च हो रहा है जैसे कौन रामजादे हैं और कौन हरामजादे, बीफ़ खाओ या मत खाओ, मटन खाओ या मत खाओ, नंगे घूमो या कपडे पहन के घूमो, घर कब लौट के आओ, वगेराह, वगेराह.
प्रधानमन्त्री जी ने कह तो दिया कि दादरी की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, अब उनसे ये उम्मीद मत रखना कि वो शिमला में हुए नरसंहार पर भी बोलें. प्रधानमन्त्री ने कहा कि बताओ इस तरह की घटनाओं में उनकी पार्टी और सरकार की क्या भूमिका है! प्रधानमन्त्री जी ने पल्ला छाड़ लिया है, अब शान्ति रखिये. रही बात साध्वी प्राची और खट्टर की तो प्रधानमन्त्री कह चुके हैं, उनकी मत सुनो, अरे, खुद प्रधानमन्त्री की भी मत सुनो. अब बेचारा अखलाक जब मरा तो वो किसी नेता का भड़काऊ बयान थोड़े ही सुन रहा था, या कल शिमला में भीड़ के हाथों शक की बिनाह पर मरने वाला गरीब भी कोई भड़काऊ बयान सुनने नहीं गया था. तो प्रधानमंत्री जी, आप की ये सलाह एकतरफ़ा और अप्रासांगिक है, दोनों ही मौतों में एक निहत्था इंसान एक भीड़ का शिकार बना है , वो कोई बराबरी की लड़ाई नहीं थी.
लेकिन, अब एक बात तो साफ़ है कि खट्टर, साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ और हिंदूवादी संगठन गोरक्षा दल के गुर्गों ने प्रधानमन्त्री की इस अपील कि ' मेरी भी मत सुनना ' को एकदम सीरियसली ले लिया है. तभी जो स्थिति जो प्रधानमन्त्री के बोलने से पहले थी , वो ही अब भी है. अब अगर पार्टी और सरकार के लोग स्वयं प्रधानमंत्री की बात को नज़रंदाज़ कर रहे है तो ये स्थिति काफी एलार्मिंग है और इस तरह के नियंत्रण का अभाव अराजक और अलोकतांत्रिक ताकतों को ही मज़बूत करेगा. और अगर ये सब विकास के मुखोटे में छुपा एक एजेंडा है तो भी ये हमें स्वीकार नहीं है.
मनमोहन सिंह की सरकार में जो भी स्थिति थी , हमने उस से बेहतर स्थिति पाने के लिए मोदी सरकार को वोट दिया था. मोदी जी और उनके नेताओं ने उस समय चिल्ला चिल्ला कर ये क्यों नहीं बताया कि वो इस बार गाय का उद्धार करेंगे और बीफ़ खाने वालों को देश-निकाला देंगे. आपने विकास, गुजरात माँडल और अच्छे दिन बोल बोल कर देश की जनता का वोट लिया और बदले में हमें महंगाई और मंदी के भंवर में डाल दिया. और इस से पहले विकास के ठगे लोग अपना मुंह खोलते , आप ने उन का दिमाग भरमाने के लिए उन के दिमाग में गाय का गोबर भरना शुरू कर दिया.
बस बहुत हुआ. अब सुधर जाओ. देश में और भी कई ज्वलंत मुद्दे हैं, महंगाई है, बलात्कार हैं, युवाओं के दम तोड़ते सपने हैं. आपसे पूरे हो रहे हो तो ठीक, नहीं हो रहे तो साफ़ साफ़ बता दो, देश की जनता नया रास्ता चुन लेगी. लेकिन प्लीज, हमें गाय, गाय के गोबर और गौ-मूत्र में न उलझाओ. हम मंगल तक पहले ही पहुच चुके हैं, देश तकनीकी और विज्ञान के आधुनिक रास्ते पर पहले से चल रहा है, अब हमारे रास्ते में रामदेव और मोहन भगवत नाम के रोड-ब्लॉक मत बिछाओ.
कुछ तो ग़लत हो रहा है देश में, जो मासूमों से बलात्कार पर हमारे नेता चुप हैं लेकिन गाय की बात चलते ही आर या पार की बात करने लगते हैं. क्या विकास एक मुखौटा था?
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