मानसून सत्र - क्या यह भारत का नुकसान है?
देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब मुख्यधारा की एक पार्टी के सर्वोच्च नेता ने सदन के वेल में आकर हंगामें का नेतृत्व किया हो. उन्होंने तो अपने कद और गरिमा का भी ख़याल नहीं रखा.
-
Total Shares
संसद का तयशुदा मानसून सत्र संपन्न हो गया. राजनीतिक रूप से यह सत्र काफी शिक्षा प्रदान करने वाला लेकिन निराशा भरा था. संसद भारतीय लोकतंत्र का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्वकर्ता है पर बिना किसी एक मुद्दे के 'संसदीय कार्रवाही का बाधित होना' संसदीय व्यवस्था में भेद्यता को रेखांकित करता है.
जीएसटी के महत्व को अतिरंजित नहीं होना चाहिए. यह पूरे देश को एक आर्थिक बाजार में बदलता है. यह माल और सेवाओं की सहज और निर्बाध रूप से आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है. यह परेशानी और भ्रष्टाचार को कम करता है. यह एक समान कर व्यवस्था को प्रतिपादित करता है तथा 'कर के ऊपर कर' की अवधारणा को समाप्त करता है. इससे कर राजस्व में उछाल आता है और सकल घरेलू उत्पाद पर एक अनुकूल प्रभाव पड़ता है. जीएसटी को देश की मुख्यधारा की अधिकतम राजनीतिक पार्टियों का लगातार समर्थन प्राप्त हुआ है. कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार ने 2006 में जीएसटी की अवधारणा की घोषणा की थी और इस विधेयक को 2011 में पेश किया गया था. आज जीएसटी पर कांग्रेस अपने कदम वापस खींच कर रही है. कांग्रेस पार्टी की असहमति - टिप्पणी की आपत्तियां विरोधाभासी और तुच्छ हैं. इस मुद्दे पर संसद का बहुमत कांग्रेस के खिलाफ है. इसलिए इसका पारित होना राज्य सभा द्वारा इसपर मीमांसा को केवल रोकने के के उद्देश्य से बिना किसी कारण इख्तियार किये गए अशांति और वाकयुद्ध पर निर्भर करता है. कांग्रेस इस बात से स्पष्ट रूप से अवगत है कि संविधान संशोधन के पारित होने में किसी भी तरह की देरी इस विधेयक को कम-से-कम एक वर्ष के लिए विलम्बित कर देगी जिसको कि अधिकतम राज्यों द्वारा स्वीकार कर लिया गया है. इससे कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट हो जाती है. उनकी प्राथमिकता सूची में राष्ट्रीय हित सबसे नीचे है.
कांग्रेस पार्टी ने यह प्रदर्शित किया है कि लगातार ये सारी चीजें एक परिवार का गुलाम बनकर रह गई है. यह राष्ट्रीय हित और नीतिगत मुद्दों पर भी समझौता करने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि कांग्रेस अब तक 2014 में मिली अपनी अप्रत्याशित चुनावी हार को पचा नहीं पाई है. इस सत्र में भारत का नुकसान कांग्रेस पार्टी का लाभ कतई नहीं हो सकता. इनके 'बिना किसी एक कारण के बिना संसद में व्यवधान' की नीति के खिलाफ जनमत में लोकप्रिय अस्वीकृति है. लोक सभा में कल का बहस कांग्रेस पार्टी के तर्क के खोखलेपन को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर देता है.
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने इस सत्र में सदन में निम्नतम मर्यादा का उदाहरण प्रस्तुत किया. देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब मुख्यधारा की एक पार्टी के सर्वोच्च नेता ने सदन के वेल में आकर हंगामें का नेतृत्व किया हो. उन्होंने तो अपने कद और गरिमा का भी ख़याल नहीं रखा. जहाँ तक राहुल गांधी का सवाल है, तो इस बात की कोई गंभीर उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह बहस के स्तर को उठा पाएंगें. वह नारेबाजी और एक संसदीय भाषण के बीच के अंतर को पहचान पाने में नाकाम रहे हैं. जिस तेजी से वह आगे बढ़ रहे हैं, उसी तरह से वह और अधिक अपरिपक्व होते जा रहे हैं. आक्रामक शारीरिक भाषा तर्कसंगत निष्कर्ष का विकल्प कदापि नहीं हो सकती. यह राजग सरकार है जिसने अवैध विदेशी सम्पत्तियों के खिलाफ कड़े क़ानून बनाये. यह राजग सरकार है जो वर्त्तमान विवाद के केंद्र में रहे आरोपी अपराधी को सजा दिलाने के लिए प्रभावी कदम उठा रही है.
यह सत्र आम लोगों की इस राय पर प्रकाश डालता है और बतलाता है कि किस तरह कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक हताशा द्वारा भारत के आर्थिक हितों का फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया है. भारतवर्ष इस पर एक साथ खड़ा है हालांकि थोड़ा निराश है. इस हताशा से उभरता विरोध देश को इस चुनौती का सामना करने के लिए सम्बल प्रदान करेगा.
(केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के फेसबुक पेज से साभार)
आपकी राय