पीएम मोदी के दौरे से पहले चमका मोरबी का अस्पताल! यही तो आश्चर्य है...
नए वाटर कूलर से लेकर रंगाई-पुताई तक मोरबी अस्पताल (Morbi Hospital) के तो जैसे दिन ही बहुर गए. और, अब मोरबी अस्पताल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट ने भी मुहर लगा दी है कि ये सब कुछ सिर्फ रुटीन का काम था. इसका पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के आगमन से कोई लेना-देना नहीं है. वैसे, अगर ये रुटीन काम इतनी आसानी से होने लगता. तो, यक्ष यूं ही युधिष्ठिर से ये न पूछता कि आश्चर्य क्या है?
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले रातोंरात मोरबी के उस अस्पताल चमका दिया गया. जहां पर मोरबी पुल हादसे के घायलों को भर्ती किया गया था. नए वाटर कूलर से लेकर रंगाई-पुताई तक मोरबी अस्पताल के तो जैसे दिन ही बहुर गए. मतलब जिन सुविधाओं के लिए लोग न जाने कब से तरस रहे थे, वो पीएम नरेंद्र मोदी के एक दौरे से पहले ही मोरबी के अस्पताल में मिलने लगीं. हालांकि, इस रंगाई-पुताई पर सवाल भी खड़े किए गए. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत शायद ही कोई विपक्षी दल बचा होगा. जिसने गुजरात की भाजपा सरकार को ऐसा करने के लिए कठघरे में न खड़ा किया हो. कोई इसे इवेंटबाजी कह रहा था, तो किसी ने इसे फोटोशूट की तैयारी बता दिया. आसान शब्दों में कहें, तो सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे की खूब चर्चा रही.
बात सही भी है कि मोरबी के अस्पताल में ये सुविधाएं बहुत पहले से ही होनी चाहिए थीं. अस्पताल जैसी जगह में साफ-सफाई और पानी की व्यवस्था तो मूलभूत सुविधाओं में आती है. लेकिन, पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले जिम्मेदारों को इसकी याद ही नहीं आई. और, अब मोरबी अस्पताल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट ने भी मुहर लगा दी है कि ये सब कुछ सिर्फ रुटीन का काम था. इसका पीएम नरेंद्र मोदी के आगमन से कोई लेना-देना नहीं है. वैसे, अगर ये रुटीन काम इतनी आसानी से होने लगता. तो, यक्ष यूं ही युधिष्ठिर से ये न पूछता कि आश्चर्य क्या है?
भारत में तो लोग यही मनाते हैं कि उनकी गली-मोहल्ले में पीएम, सीएम या मंत्री का दौरा हो जाए.
अब भारत जैसे देश में ये कोई नई बात भी तो नहीं है. जिस पर इस तरह से हो-हल्ला मचाया जा रहा हो. लोग तो इंतजार करते हैं कि किसी बहाने पीएम, सीएम या कोई मंत्री उनकी भी गली में घूम जाए. तो, ज्यादा कुछ न सही, सड़कें ही सही कर दी जाएंगी. इसी बहाने मोहल्ले में कूड़े के ढेर की जगह एक बढ़िया से कूड़ेदान ही लगा दिया जाएगा. पानी की निकासी से लेकर पानी की उपलब्धता तक की समस्याओं का निराकरण हमारे देश में कई दशकों तक इसी तरह तो होता रहा है. तो, इस बार भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है.
खैर, सुविधाएं देना सरकार का काम है. और, सरकार ने पीएम मोदी के दौरे के सहारे ही सही अपने इस कर्तव्य से छुट्टी पा ली है. इतना ही नहीं, नरेंद्र मोदी के मोरबी दौरे से पहले तो स्थानीय प्रशासन सड़क किनारे पड़े कूड़े को भी सफेद परदे से ढकने में जुटा हुआ था. अब इतनी तत्परता की उम्मीद ऐसे दौरों से पहले की ही जाती है. फिर चाहे बात शासन की हो या प्रशासन की. राज्य सरकार से लेकर प्रशासन की प्राथमिकताएं केवल पीएम नरेंद्र मोदी के सामने अपने नंबरों को बचाए रखना की थीं. लेकिन, अब तक गुजरात के सीएम से लेकर देश के पीएम तक नरेंद्र मोदी का जैसा कार्यकाल रहा है. उसे देखकर शायद ही कोई कह सकता है कि ये छोटी-छोटी चीजें उनकी नजर से बच गई होंगी. और, मान भी लिया जाए कि इन चीजों को पीएम मोदी ने नजरअंदाज कर दिया होगा. लेकिन, मोरबी पुल हादसे को वो शायद ही नजरअंदाज नहीं करेंगे.
जिम्मेदारों की जिम्मेदारी तो तय होगी ही. शासन से लेकर प्रशासन तक सबके पेंच टाइट किए जाने तय हैं. क्योंकि, इसमें किसी एक शख्स की जिम्मेदारी नहीं है. मेंटिनेंस सर्टिफिकेट के बावजूद मोरबी पुल को खोलने वाली कंपनी, उसके खुलने के बावजूद शांत रहने वाले प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर सरकार के जिम्मेदारों को भी पीएम मोदी का संदेश पहुंच ही गया होगा. क्योंकि, अगर इन तमाम लोगों ने अपना काम ठीक से किया होता, तो मोरबी पुल हादसा होता ही नहीं. खैर, वापस मोरबी के अस्पताल में नई सुविधाओं पर लौटते हैं. अब सवाल ये है कि ये तमाम सुविधाएं कब तक चलेंगी? क्योंकि, जिस देश के सरकारी अस्पतालों में ये लिखना पड़ता हो कि यहां गुटखा खाकर न थूकें. और, सबसे ज्यादा लाल जगह वही नजर आती हो. वहां की सुविधाएं कितने दिनों तक चल पाएंगी? इस पर संशय बरकरार ही रहेगा?
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