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Updated: 21 अक्टूबर, 2015 06:59 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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गंगा की सफाई और संरक्षण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट 'नमामी गंगे परियोजना' को चलते हुए अब एक साल से भी ज्यादा हो चुका है. इस परियोजना के लिए केन्द्र सरकार ने 2037 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था और गंगा के घाटों के निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए अलग से 100 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया था. इस काम को केदारनाथ, हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना और दिल्ली में कराना तय किया गया था. पिछले तीन दशक में नदी की सफाई और संरक्षण पर जितना धन खर्च किया गया है, इस परियोजना में उससे चार गुना ज्यादा बजट को मंजूरी दी गई थी.

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ये परियोजना कागजों में इतनी आकर्षक दिखाई देती है कि अगर सही तरीके से इसका पालन किया जाए तो गंगा का पानी काफी हद तक साफ हो सकता है, लेकिन एक साल हो गया पर इस परियोजना पर कोई काम नहीं किया जा सका. 

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1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 462 करोड़ रुपये की लागत वाले ‘गंगा एक्शन प्लान’ को मंजूरी दी थी. इसपर 987 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद ये प्लान फेल हो गया. फिर 2009 में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी(NGRBA) ने इस पर फिर से काम करना शुरू किया. 2014 तक NGRBA ने गंगा की सफाई पर करीब 910.57 करोड़ रुपए खर्च किए. कुल मिलाकर अब तक गंगा की सफाई पर 1900 करोड रुपए खर्च किए जा चुके हैं. पर आश्चर्य की बात है कि इतना पैसा लगाने के बावजूद भी ये परियोजनाएं असफल हो जाती हैं.

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ये परियोजनाएं इसलिए असफल हुईं क्योंकि नीतियां तैयार करने वाले लोग तकनीकि के आगे कुछ देख नहीं सके. उन्हें लगा कि इस परेशानी से निपटने के लिए सूरज ट्रीटमेंट प्लान जैसे प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाना ही काफी होगा. 1985 से 'नमामी गंगे परियोजना' के शुरू होने तक सरकार देश के शहरी इलाकों में इस तरह के ट्रीटमेंट प्लान चला रही थी, पर ये कोई कमाल नहीं कर सके.

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गंगा के किनारे पर बसे दो बड़े शहर हैं कानपुर और बनारस. कानपुर से 43.5 करोड लीटर सीवेज हर रोज निकलता है. वहां मैजूद प्लांट हर रोज केवल 16.2 करोड़ लीटर पानी ही साफ कर पाता है. शहर का केवल 39% हिस्सा ही प्लांट से जुड़ा है और बाकी के घरों से निकलने वाला प्रदूषित पानी नालियों द्वारा गंगा में छोड़ दिया जाता है.

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बनारस में केवल 30 प्रतिशत घर ही सीवेज लाइनों से जुड़े हुए हैं. बनारस से भी हर रोज करीब 30 करोड़ लीटर सीवेज निकलता है. और यहां के प्लांट में भी केवल 10.2 करोड़ लीटर प्रदूषित पानी ही साफ करने की क्षमता है. बाकी पानी गंगा में छोड़ दिया जाता है. और ये क्रम बस ऐसे ही चलता रहता है.

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इस परियोजना के अंतर्गत जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने अब तक केवल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लान को ही लगाया जो पिछले गंगा एक्शन प्लान में प्रस्तावित थे. इस दौरान इस कार्यक्रम पर कई बैठकें की गईं लेकिन काम नहीं के बराबर किया गया.

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सब जानते हैं कि गंगा को साफ करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन फिर भी अब समय है कि बनाई हुई सभी योजनाओं पर काम करना शुरू किया जाए. हमें तरीकों में थोड़ा बदलाव करना होगा और कुछ ऐसी योजनाएं भी बनानी होंगी जिससे प्रदूषित पानी को गंगा तक पहुंचने से रुक सके. साथ ही ऐसे कारखानों पर सख्ती करनी होगी जो अवैध रूप से कारखानों से निकलने वाला जहरीला तरल बेरोक-टोक गंगा में छोड़ देते हैं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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